राजपथ - जनपथ

एक कॉलोनी, हर छापे के निशाने पर
सुबह ईडी की छापेमारी से मची हलचल के बाद खबर की सच्चाई खोजने में हम जब जुटे तो कुछ पुरानी दबिश के रोचक तथ्य सुनने को मिले। वह यह कि धनाढ्य लोगों की एक ही कालोनी ला विस्टा में यह पांचवीं छापेमारी मारी है। पहले इस्पात इंडस्ट्रीज के मालिक, फिर शराब घोटाले में शामिल फिर भारत माला सडक़ घोटाले के जमीन दलाल को घेरा जा चुका था।
इस्पात इंडस्ट्रियलिस्ट के यहां आयकर की दबिश में एक रोचक तथ्य अब मालूम चला। हुआ यूं कि जैसे ही आईटी अफसरों ने सुबह सुबह काल बेल बजाया।तो दरवाजा खोलने वाले परिजन ने जोर से आवाज देकर परिजनों को अलर्ट किया। यह सुनकर मुखिया ने अपने कमरे में रखे कैश, आलमारी में रखे हीरे जेवरात एक बोरी में डालकर पड़ोसी की छत पर फैंक दिया। पड़ोसी ने फेंकते देखा, लेकिन उठाने का जोखिम भला कैसे करते। पड़ोस में टीम जो थी। नेकी के चक्कर में कौन मुसीबत ले। ठीक ही किया क्योंकि आईटी अफसर तो चप्पा-चप्पा छानते हैं, दीवारों तक को तोड़ते हैं। एक अफसर छत पर जाकर छानबीन कर रहे थे तो पड़ोसी के साफ-सुथरे छत पर बोरी दिखी। अफसर ने वहां जाकर बोरी खोला तो आंखें चौंधिया गई। सारा माल असबाब जब्त हुआ। टीम लौटने के बाद जब पड़ोसी मिले तो पूरा वाकया खुला। रायगढ़ के यह उद्योगपति, पड़ोसी से अब तक अफसोस जता रहे कि मुसीबत में घिरे पड़ोसी की मदद करनी चाहिए थी।
बेमन से बिहार की ओर
भाजपा के नवनियुक्त निगम मंडल के पदाधिकारी मायूस हैं। वजह यह है कि पार्टी उन्हें बिहार चुनाव में ड्यूटी लगा रही है। यहां के पार्टी नेताओं को बिहार की 40 विधानसभा सीटों में प्रचार का जिम्मा दिया जा रहा है।
निगम मंडल के पदाधिकारियों के साथ-साथ संगठन के पदाधिकारी भी बिहार जाएंगे। ये सभी चुनाव प्रचार खत्म होने तक वहां रहेंगे। इस सिलसिले में बिहार सरकार के मंत्री, और छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी नितिन नबीन की प्रदेश अध्यक्ष किरणदेव व महामंत्री (संगठन) पवन साय से चर्चा हो चुकी है।
बताते हैं कि प्रदेश के नेता बिहार जाने के इच्छुक नहीं हैं। बिहार में हमेशा से कानून व्यवस्था पर सवाल उठते रहे हैं। यही नहीं, महाराष्ट्र, गुजरात आदि राज्यों की तरह वहां रूकने-ठहरने तक की कोई अच्छी व्यवस्था नहीं है। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ के भाजपा नेता वहां जाने से कतरा रहे हैं। चूंकि प्रदेश प्रभारी, व्यक्तिगत तौर पर यहां के नेताओं से सीधे परिचित हैं। इसलिए मना करते भी उन्हें बन नहीं रहा है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ भाजपा नेता प्रचार के लिए जा रहे हैं। कांग्रेस विधायक देवेन्द्र यादव बिहार कांग्रेस के प्रभारी सचिव हैं, और वो पिछले कुछ महीने से वहां सक्रिय हैं। चूंकि देवेन्द्र यूपी-बिहार मूल के हैं। ऐसे मेें वो बिहार के माहौल से परिचित हैं। मगर छत्तीसगढ़ भाजपा के ज्यादातर नेताओं के लिए बिहार को लेकर कोई ज्यादा अनुभव नहीं है। देखना है आधे-अधूरे मन से प्रचार के लिए जा रहे भाजपा नेता वहां क्या कुछ करते हैं। कौन किस पर भारी पड़ता है।
आदि वाणी में फिलहाल छत्तीसगढ़ी नहीं
नई दिल्ली से आई यह खबर छत्तीसगढ़ के लिए खास मायने रखती है। जनजातीय कार्य मंत्रालय ने एक सितंबर को आदि वाणी नामक एक एआई आधारित अनुवाद टूल का बीटा संस्करण लॉन्च किया है। यह ऐप हिंदी और अंग्रेजी से आदिवासी भाषाओं में अनुवाद करेगा और इसके उलट भी। इसका मुख्य उद्देश्य इन भाषाओं को डिजिटल रूप से संरक्षित करना और बड़े भाषा मॉडलों की नींव रखना है। आईआईटी दिल्ली के नेतृत्व में बिट्स पिलानी, आईआईआईटी नया रायपुर और झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा मेघालय के जनजातीय शोध संस्थानों के सहयोग से विकसित यह ऐप शुक्रवार से गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध होगा। शुरू में यह भीली, गोंडी, संताली और मुंडारी भाषाओं के लिए काम करेगा, बाद में कुई और गारो को जोड़ा जाएगा।
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 10.45 करोड़ अनुसूचित जनजाति जनसंख्या है, जहां 461 जनजातीय भाषाएं हैं, जिनमें 71 मातृभाषाएं। इनमें से 82 कमजोर हैं और 42 गंभीर रूप से संकटग्रस्त। बस्तर, जो गोंडी जैसी समृद्ध बोलियों का गढ़ है, अब इन बोलियों को डिजिटली संरक्षण मिलेगा। हिंदी और छत्तीसगढ़ी में बात करने वालों के लिए गोंडी बोली अभी भी अबूझ है, जबकि वह मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के एक बड़े हिस्से में बोली जाती है। इन बोलियों के शब्दकोश, वाक्य और सांस्कृतिक संदर्भ डिजिटल रूप में अब सुरक्षित हो जाएंगे।
आदि वाणी में फिलहाल छत्तीसगढ़ी शामिल नहीं है। तकनीकी विशेषज्ञ बता सकते हैं कि यदि गोंडी शामिल हो सकता है तो छत्तीसगढ़ी क्यों नहीं? भविष्य में कोई योजना छत्तीसगढ़ी को शामिल करने की है भी या नहीं, इस पर जवाब मिलना बाकी है, क्योंकि आदि वाणी में मोटे तौर पर आदिवासी अंचलों की बोलियों को शामिल किया गया है।
लंबे समय से छत्तीसगढ़ी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग छत्तीसगढ़ से हो रही है लेकिन यदि आदि वाणी जैसे डिजिटल टूल पर छत्तीसगढ़ी को शामिल कर लिया जाए तो वह भी कोई छोटी उपलब्धि नहीं होगी। इस पर गंभीरता से विचार इसलिये भी होना चाहिए क्योंकि छत्तीसगढ़ का इस नवाचार में अहम योगदान है। आईआईआईटी नया रायपुर के छात्रों और शिक्षकों ने इस परियोजना में सक्रिय भूमिका निभाई है। छत्तीसगढ़ के जनजातीय शोध संस्थान ने भी सहयोग किया है।यह योगदान दिखाता है कि छत्तीसगढ़ न केवल प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है, बल्कि तकनीकी नवाचार में भी आगे है। यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर दो हफ्ते में एक भाषा लुप्त हो रही है। आधुनिक शिक्षा और शहरीकरण के कारण नई पीढ़ी अपनी मातृभाषा भूल रही है। लेकिन उम्मीद है कि आदि वाणी ऐप विस्तार लेगा और छत्तीसगढ़ी के साथ ऐसा नहीं होगा कि वह आने वाले समय में लुप्त हो जाए।