राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : वन अधिकार के लिए दिल्ली में लड़ाई
22-Aug-2025 7:05 PM
राजपथ-जनपथ : वन अधिकार के लिए दिल्ली में लड़ाई

वन अधिकार के लिए दिल्ली में लड़ाई

दिल्ली के जंतर मंतर पर हाल ही में बिलासपुर के कोटा इलाके के आदिवासी बड़ी संख्या में इक_ा हुए। वे अपने हक की लड़ाई लडऩे दिल्ली पहुंचे थे। उनका कहना था कि बार-बार दावे जमा करने के बावजूद वन अधिकार कानून (एफआरए) के तहत उनके आवेदन खारिज कर दिए गए, उनके घर तोड़े गए और परिवारों को परेशान किया गया। जिन अधिकारों की रक्षा के लिए यह कानून बना था, वही अब उनके लिए मुसीबत बन गया है।

दरअसल, साल 2006 में जब एफआरए लागू हुआ था, तो इसे आदिवासियों की जिंदगी बदलने वाला ऐतिहासिक कानून बताया गया। वादा किया गया कि जंगल की जमीन पर उनका हक सुरक्षित होगा, वे बिना कागज दिखाए भी खेती कर सकेंगे और किसी तरह का उत्पीडऩ नहीं होगा। लेकिन करीब 19 साल बाद भी यह वादा अधूरा है।

संसद में सरकार ने चौंकाने वाली जानकारी दी थी कि 31 मई 2025 तक पूरे देश में एफआरए के तहत करीब 51 लाख दावे दाखिल हुए। इनमें से 23 लाख व्यक्तिगत अधिकार और 1,21,705 सामुदायिक अधिकार मंजूर किए गए। लेकिन 18 लाख दावे खारिज कर दिए गए और 7 लाख अभी भी लंबित हैं। यह आंकड़े भले ही उपलब्धि के तौर पर पेश किए जाते हों, लेकिन हकीकत यह है कि छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में आदिवासी अब भी अपने हक से वंचित हैं।

अकेले छत्तीसगढ़ में ऐसा नहीं हो रहा है। जैसे, असम के डिमा हसाओ जिले में सरकार ने एक निजी कंपनी को सीमेंट फैक्ट्री बनाने के लिए करीब 990 एकड़ जमीन दे दी। गुवाहाटी हाईकोर्ट ने इस फैसले पर सवाल उठाए, क्योंकि यह इलाका छठी अनुसूची में आता है जहां स्थानीय आदिवासियों के अधिकारों को सबसे ऊपर माना जाता है। कोर्ट ने माना कि विकास के नाम पर आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को नजरअंदाज किया जा रहा है।

दिल्ली के जंतर-मंतर में रोजाना दर्जनों धरना-प्रदर्शन होते हैं। पता नहीं, इनकी आवाज दिल्ली में सरकार तक पहुंची भी या नहीं।

अपनी जात के ही मंत्री

सरकार ने अनुसूचित जनजाति, जाति, और पिछड़ा वर्ग कल्याण के अलग-अलग मंत्रालय बना दिया है। तीनों मंत्रालय की जिम्मेदारी उसी वर्ग के मंत्रियों को दी गई है। ऐसी व्यवस्था पहले कभी नहीं थी। एक विभाग के अधीन सभी आरक्षित वर्ग के विकास का जिम्मा था।

हालांकि अनुसूचित जनजाति, जाति और पिछड़ा वर्ग के विकास योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन के लिए अलग-अलग मंत्रालय बनाने की मांग बरसों से रही है। भूपेश सरकार ने पिछड़ा वर्ग कल्याण के लिए अलग विभाग बनाया था लेकिन पृथक संचालनालय नहीं बना। अब पिछड़ा और अल्पसंख्यक विकास के लिए अलग मंत्रालय बनाकर स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल को प्रभार दिया गया है। जबकि अनुसूचित जाति विकास विभाग का जिम्मा गुरू खुशवंत साहेब को दिया गया है, जो कि इसी वर्ग से आते हैं। सीनियर मंत्री रामविचार नेताम के पास आदिम जाति विकास विभाग का जिम्मा है।

इधर, कहा जा रहा है कि पिछड़ा वर्ग कल्याण की कई योजनाएं, जो फाईलों में दबकर रह गई थी, अलग विभाग बनने से इन योजनाओं के क्रियान्वयन होने की उम्मीद है। मसलन, पिछड़ा वर्ग के विद्यार्थियों को पात्रता में संशोधन के बाद भी बढ़ी हुई छात्रवृत्ति नहीं मिल पा रही थी, जो अब मिल सकती है। इन सबके के बीच मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल के जोरदार स्वागत की तैयारी चल रही है। देखना है कि तीनों मंत्री अपने समाज की बेहतरी के क्या कुछ कर पाते हैं।

राजेश के सामने पहाड़ सी चुनौती

अंबिकापुर के विधायक राजेश अग्रवाल मंत्रिमंडल में जगह बनाने में कामयाब रहे हैं। उनके मंत्री बनने पर इलाके में जश्न भी खूब मना। मगर उनके सामने एक ऐसी समस्या आ खड़ी हुई है जिससे पार पाना आसान नहीं होगा। दरअसल, अंबिकापुर के बाहरी इलाके में ऐतिहासिक रामगढ़ पहाड़ी के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है।

रामगढ़ की पहाड़ी छत्तीसगढ़ ऐतिहासिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक धरोहर है। मान्यता है कि भगवान राम ने वनवास के बीच कुछ दिन रामगढ़ के गुफा में ठहरे थे। यहां मंदिर है, और हर साल मेला भी लगता है। समस्या ये है कि रामगढ़ की पहाड़ी से 10 किमी दूर अडानी का कोयला खदान है। यहां खनन के लिए ब्लास्ट होने से रामगढ़ की पहाड़ी में क्रेक आ सकता है। स्थानीय लोग खनन के विरोध में आंदोलित हैं। राजेश अग्रवाल के पास पर्यटन-संस्कृति, और धर्मस्व विभाग का जिम्मा है। कई लोग उन पर अडानी समूह से संबंधों को लेकर सोशल मीडिया में छींटाकशी करते रहे हैं। उन पर खदान से पहाड़ी के संरक्षण की जिम्मेदारी भी विभागीय मंत्री के रूप में है।

राजेश अग्रवाल के प्रतिद्वंदी पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव ने फेसबुक पर उन्हें मंत्री बनने की बधाई दी, और उम्मीद जताई कि धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग के दायित्वों का निर्वहन करते हुए सरगुजा का ऐतिहासिक धार्मिक एवं सांस्कृतिक धरोहर, रामगढ़ पहाड़ी को बचाने की मुहिम में राजेश अग्रवाल का भी सहयोग मिलेगा। फिलहाल तो राजेश अग्रवाल ने चुप्पी साध रखी है, और वो समर्थकों के बीच मंत्री पद के जश्न में व्यस्त हैं। इस मसले पर उनका क्या रुख रहता है, इस पर लोगों की नजरें टिकी हुई हैं।


अन्य पोस्ट