राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : जाति और राजनीति
23-Aug-2025 5:43 PM
राजपथ-जनपथ : जाति और राजनीति

जाति और राजनीति

प्रदेश में समाज के चुनाव में भी अब राजनीतिक दखल होने लगा है। पिछड़ा वर्ग की सबसे बड़ी आबादी के साहू समाज के चुनाव में तो हमेशा से कांग्रेस-भाजपा नेताओं की दिलचस्पी रही है।  मगर पिछले दिनों रविवार को प्रदेश साहू संघ के चुनाव हुए, तो समाज के प्रमुख नेताओं ने बंद कमरे में बैठक कर सर्वसम्मति से पदाधिकारियों का निर्वाचन किया। राजनांदगांव के डॉ. निरेन्द्र साहू, साहू समाज के अध्यक्ष बने हैं। ये अलग बात है कि वो भी भाजपा से जुड़े हैं, और डोंगरगांव सीट से टिकट के दावेदार रहे हैं।

बताते हैं कि पदाधिकारियों के निर्वाचन से पहले डिप्टी सीएम अरूण साव, पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू, पूर्व मंत्री धनेन्द्र साहू, पूर्व मंत्री रमशीला साहू, संदीप साहू, डॉ. सियाराम साहू, और पूर्व विधायक द्वय चुन्नीलाल साहू, व दयाराम साहू की बंद कमरे में बैठक हुई। बैठक में इन नेताओं के बीच समाज के चुनाव को राजनीति से दूर रखने, और पदाधिकारियों के विशुद्ध रूप से सामाजिक गतिविधियों तक ही सीमित रहने पर चर्चा हुई।

आपसी चर्चा में आरोप-प्रत्यारोप भी हुए। कहा जाता है कि समाज के पदाधिकारियों के पिछले चुनाव में तो भूपेश सरकार के कुछ प्रभावशाली लोगों ने सरकारी तंत्र का प्रयोग किया था, और मतदाताओं को अपने पाले में करने के लिए धन-बल का प्रयोग किया था।  इससे चुनाव काफी हद तक विवादित भी रहा। ऐसी स्थिति दोबारा न आए, इस पर मंत्रणा हुई।

अध्यक्ष पद के तीन प्रमुख दावेदार थे जिनमें डॉ. निरेन्द्र साहू, दीपक ताराचंद साहू, और शांतनु साहू थे। अध्यक्ष के तीनों दावेदार भाजपा से जुड़े हैं। आखिरकार डॉ. निरेन्द्र को सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुन लिया गया। डॉ.निरेन्द्र समाज के मुखिया बनने के बाद राजनीति में सक्रिय रहेंगे या नहीं, यह देखना है।

महिला आयोग में युवतियों की शिकायत...

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर की उन तीन युवतियों ने राज्य महिला आयोग से शिकायत कर दी है, जिन्हें केरल के ननों के साथ आगरा जाना था, मगर जबरदस्ती रोक दी गईं और ननों को गिरफ्तार कर लिया गया। युवतियों का आरोप है कि बजरंग दल के कार्यकर्ताओं और सरकारी रेलवे पुलिस ने न केवल उन्हें रोका बल्कि गाली-गलौज, मारपीट और सामूहिक दुष्कर्म की धमकी भी दी। वे अपनी मर्जी से केरल की ननों के साथ आगरा जा रही थीं, जहां उन्हें काम मिलना था। उनका धर्म परिवर्तन वर्षों पहले हो चुका है और वे ननों के साथ स्वेच्छा से यात्रा कर रही थीं। आयोग से उन्होंने कहा है कि, ऐसे में उन्हें रोकना और अपमानित करना उनके संवैधानिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन है।

एनआईए कोर्ट द्वारा ननों को दी गई जमानत इस तथ्य की ओर इशारा करती है कि मानव तस्करी और जबरन धर्मांतरण के आरोप प्रारंभिक तौर पर टिकते नहीं दिखे। ऐसे में पीडि़त महिलाओं की गवाही और शिकायत और भी मायने रखती है। महिला आयोग ने सीसीटीवी फुटेज और विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। पहली सुनवाई में आयोग के पास वह कोई नहीं पहुंचा। अब आयोग का कहना है कि उन्हें बुलाने के लिए पुलिस की मदद ली जाएगी।

इधर केरल की ननों ने अपने ऊपर दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए अलग दबाव बनाना शुरू किया है। इतनी मुखर आवाज बहुत दिनों बाद दिखाई दे रही है। शायद यह प्रतिकार आगे जोर-जबरदस्ती पर कुछ रोक लगा सके।

 मंत्री विभाग छोडक़र खुश!

कैबिनेट विस्तार के बाद मंत्रियों के विभागों में परिवर्तन हुआ है। खास बात ये है कि नए मंत्रियों के आने के बाद सिर्फ विजय शर्मा को ही फर्क पड़ा है। डिप्टी सीएम विजय शर्मा के पास गृह, पंचायत-ग्रामीण विकास और कौशल उन्नयन-रोजगार, और तकनीकी शिक्षा विभाग भी था। मगर उनसे कौशल उन्नयन, रोजगार, तकनीकी शिक्षा लेकर नए मंत्री गुरू खुशवंत साहेब को दे दिया गया है।

वैसे तो डिप्टी सीएम अरूण साव से विधि-विधायी विभाग लिया गया है, लेकिन बदले में उन्हें खेल-युवा कल्याण जैसा अपेक्षाकृत बड़ा विभाग दे दिया गया है। टंकराम वर्मा से खेल लेकर उच्च शिक्षा जैसा बड़ा विभाग दिया गया है। इसी तरह केदार के पास जल संसाधन विभाग का भी प्रभार था जिसे सीएम ने खुद रखा है, और मलाईदार माने जाने वाला परिवहन विभाग केदार के जिम्मे छोड़ दिया गया है।

चर्चा है कि केदार कश्यप जल संसाधन विभाग छोडऩे के लिए आसानी से तैयार हो गए। वजह यह है कि सरकार बस्तर की बोधघाट परियोजना पर काम शुरू करने की कोशिश कर रही है। केदार बोधघाट परियोजना को लेकर असहज थे। परियोजना के चलते विस्थापन से होने वाली नाराजगी उन्हें ही झेलनी पड़ती। वो बोधघाट के मसले पर चुप्पी साधे हुए हैं। अब सीएम ने खुद जल संसाधन विभाग को अपने हाथों में लिया है। जिससे बोधघाट पर काम प्राथमिकता से शुरू होने की उम्मीद जताई जा रही है। देखना है आगे क्या होता है।

नाराज सीनियर दूर रहे

साय कैबिनेट में पहली बार के तीन विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली है। इससे सीनियर विधायकों में नाराजगी देखी जा रही है। ये अलग बात है कि सार्वजनिक तौर पर कुछ भी कहने से बच रहे हैं। शपथ ग्रहण के दौरान सभी विधायकों को मौजूद रहने के लिए कहा गया था। मगर डेढ़ दर्जन विधायक शपथ ग्रहण समारोह से दूर रहे।

पार्टी हाईकमान को भी सीनियर नेताओं की नाराजगी का अंदाजा हो गया है। उन्होंने तमाम जानकारियां बुलाई भी है। चर्चा है कि सीनियर नेताओं को एडजस्ट करने पर विचार भी हो रहा है। सीनियर नेताओं की नाराजगी दूर होती है या नहीं, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।


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