राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : यही तो है स्वतंत्रता...
16-Aug-2025 6:28 PM
राजपथ-जनपथ : यही तो है स्वतंत्रता...

यही तो है स्वतंत्रता...

कबीरधाम जिले के मुख्यालय कवर्धा में स्वतंत्रता दिवस के दिन आजादी का बेखौफ प्रदर्शन। सांसद संतोष पांडेय थोड़ी देर में ध्वज फहराने वाले ही थे कि एक लडक़े को अचानक तीन लडक़ों ने एक कुर्सी से उठाकर पीटना शुरू किया। लात-घूंसे बेल्ट चलने लगे। सामने की कतार में बैठी छात्राएं घबराकर इधर-उधर भागने लगीं। पुलिस बल तो वहां मौजूद था। मामला समझ में आते ही जवान दौड़े और उनको अलग कराया। पता यह चला है कि सभी लडक़े एक स्थानीय स्कूल में कक्षा नवमीं के छात्र हैं। सामने की कुर्सी पर कौन बैठे, इस बात पर विवाद हो गया था। इसके बाद जो जानकारी पुलिस ने दी है वह ज्यादा चिंताजनक है। पुलिस के मुताबिक ये सभी बच्चे सूखा नशा के आदी हैं। सूखा नशा यानि, नशीली दवा, इंजेक्शन, सिरप, गांजा- कुछ भी हो सकता है। घटना के वक्त भी उन्होंने नशा किया हुआ था। सभी बच्चे नाबालिग हैं। यानि अभी युवा भी नहीं हुए हैं और वे नशे की चपेट में आ चुके हैं।

पुलिस कमिश्नरी ने चौंका दिया

सीएम विष्णुदेव साय ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में राजधानी रायपुर में कानून व्यवस्था को और बेहतर करने के लिए पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की घोषणा की, तो नौकरशाह भी चौंक गए। डीजीपी अरुण देव गौतम, एडीजी विवेकानंद की तरफ देखकर मुस्कुरा दिए। बताते हैं कि गृह विभाग के आला अफसरों को भी सीएम की इस घोषणा का अंदाजा नहीं था। हालांकि साय के सीएम बनने के बाद से पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की बात होती रही है। मगर इस दिशा में कोई कागजी कार्रवाई नहीं हुई। पिछली भूपेश सरकार में भी इसको लेकर काफी बातें हुई थी।

पुलिस कमिश्नर को मजिस्ट्रियल पॉवर होते हैं। एडीजी या आईजी रैंक के अफसर पुलिस कमिश्नर के पद पर बिठाए जाते हैं। ऐसे में एसपी की भूमिका सीमित होती है। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के सीएम रहते पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू की गई थी। मध्यप्रदेश में पुलिस कमिश्नर लागू करने के लिए एक से अधिक कमेटियों का गठन भी किया गया था। एक कमेटी रिटायर्ड डीजी संजय राणा की अध्यक्षता में बनी थी। संजय राणा, अविभाजित मध्यप्रदेश में रायपुर के एसपी रह चुके हैं। संजय राणा ने पुलिस कमिश्नर प्रणाली की रूपरेखा तैयार के लिए महाराष्ट्र, कर्नाटक सहित कई राज्यों का दौरा किया था। उनकी रिपोर्ट के आधार पर ही मध्यप्रदेश में भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, और जबलपुर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू किए गए।

सीएम के घोषणा के बाद गृह विभाग की सक्रियता बढ़ी है, और मध्य प्रदेश से जानकारी बुलाई जा रही है। अंदाजा लगाया जा रहा है कि 1 नवंबर से रायपुर में पुलिस कमिश्नर की पोस्टिंग हो जाएगी। देखना है आगे क्या होता है।

ठुकराने का हौसला

सरकार के निगम-मंडलों के पदाधिकारियों की एक और सूची जारी होने वाली है। इसमें 50 से अधिक नाम हैं। भाजपा संगठन में जगह पाने से रह गए नेताओं को निगम-मंडलों में एडजस्ट किया जा रहा है।

इन नेताओं को निगम-मंडलों के उपाध्यक्ष और सदस्य के पद पर नियुक्त किया जाएगा। खास बात यह है कि ज्यादातर निगम-मंडलों की माली हालत खराब है। कुछ नेताओं ने निगम-मंडलों में नियुक्ति के संकेत के बाद संभावित पद के बारे में जानकारी जुटाई, तो वे मायूस हो गए। एक मंडल में उपाध्यक्ष का प्रावधान तो है। मगर सुविधाएं नहीं के बराबर है।

 

एक मंडल में पहले भी उपाध्यक्ष, और सदस्य पद पर नियुक्तियां होती रही है। सुविधाओं का आलम यह है कि उपाध्यक्ष को गाड़ी का कोई प्रावधान नहीं है। खुद की गाड़ी में महीने में सिर्फ दो सौ लीटर डीजल की पात्रता रहती है। सदस्यों को महीने में एक बार होने वाली बैठक में मानदेय मिलता है। यानी किसी भी निगम-मंडल में उपाध्यक्ष या सदस्य के लिए ज्यादा कुछ गुंजाइश नहीं है। ये अलग बात है कि पद मिलने से थोड़ा रुतबा बढ़ जाता है। हालांकि जिन अनुभवी, और मेहनती नेताओं को संगठन में पद मिलने की आस थी उनमें से कुछ ऐसे भी हैं, जो निगम-मंडल का पद ठुकरा सकते हैं। पार्टी के प्रवक्ता गौरीशंकर श्रीवास तो ऐसा कर चुके हैं। देखना है कौन-कौन गौरीशंकर श्रीवास का अनुकरण करता है। कोई करता भी है या नहीं। कहावत भी है कि भागते भूत की लंगोटी भली।

तब तक अच्छे बकरे मिलते रहें...

इस वीडियो में दो लोग खिलखिलाते हुए दिख रहे हैं। एक जो वर्दी में दिख रहा है वह स्कैमर है, दूसरा कारोबारी, जिसे डिजिटल अरेस्ट करने के लिए वीडियो कॉल किया गया है। बिजनेसमैन समझदार है। उसने तुरंत पकड़ लिया कि उसके साथ धोखाधड़ी की कोशिश हो रही है। फिर भी उसने डांट फटकार कर कॉल समाप्त नहीं किया, स्कमैर से बात करके मजे लेने लगा। बातचीत से पता चला कि पढ़ा-लिखा है। ठगी के इस धंधे में वह इसलिये आया है कि तेजी से पैसे कमा सके। कारोबारी बोला, ऊपरवाले की दया है, ठीक ठाक काम धंधा चल रहा है। मगर, कोई गलत काम नहीं करते। तुम भी किसी अच्छे काम की तलाश करो, जरूर मिलेगा। स्कैमर ने भी हामी भरी, उम्मीद जताई- हां, हां...। कभी न कभी तो कोई अच्छा काम मिल ही जाएगा। यहां तक की नसीहत तो ठीक थी, मगर उसके बाद जो व्यापारी ने कहा- वह ठहाके लगाने की वजह है। कारोबारी ने कहा- मेरी दुआ है, जब तक तुम्हें अच्छा काम नहीं मिलता, अच्छे-अच्छे बकरे मिलते रहें..।

अब बताइये भला, जब अच्छे बकरे मिलने लग जाएंगे तो वह किसी दूसरे काम की तलाश क्यों करेगा? कारोबारी ऐसा भी कर सकता था कि उसे बातों में उलझाकर पुलिस को इत्तला कर देता, लेकिन भागमभाग की जिंदगी में इतना बोझ वह क्यों उठाता?


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