राजपथ - जनपथ
राज्य से रिश्ता
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा को पद से हटाने के लिए लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है। इनमें से एक सदस्य मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एमएम श्रीवास्तव हैं। जस्टिस एमएम श्रीवास्तव का छत्तीसगढ़ से नाता रहा है। वे बिलासपुर हाईकोर्ट में वकील, और फिर जज भी बने।
जस्टिस एमएम श्रीवास्तव, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस रहे। फिर वो राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस रहे। वर्तमान में मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस हैं। जस्टिस श्रीवास्तव, छत्तीसगढ़ के पहले एडवोकेट जनरल रविन्द्र श्रीवास्तव के चचेरे भाई हैं। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में वकील रहते जस्टिस एमएम श्रीवास्तव ने बस्तर में टाटा, और एस्सार स्टील प्लांट के खिलाफ दायर जनहित याचिका की भी पैरवी की थी।
जस्टिस श्रीवास्तव, सुप्रीम कोर्ट के जज अरविंद कुमार, और कर्नाटक हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता बीवी आचार्य के साथ जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की पड़ताल करेंगे। कमेटी की रिपोर्ट के बाद ही जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने के प्रस्ताव पर विचार होगा।
क्या करे डॉग बाइट से निपटने के लिए?
आवारा कुत्तों को पकडक़र डॉग शेल्टरों में शिफ्ट करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पशुप्रेमियों का एक बड़ा वर्ग बेहद कठोर मान रहा है। मगर, कुछ ने खुलकर स्वागत किया है। एक प्रतिक्रिया जगदलपुर के मेयर संजय पांडेय का आया है। उनका कहना है कि शहर के कई वार्डों से रोजाना डॉग बाइट के मामले आ रहे हैं। स्कूली बच्चे, बुजुर्ग, और राहगीर दहशत में हैं। समय-समय पर टीकाकरण और नसबंदी अभियान चलाने के बाद भी समस्या दूरनहीं हुई है। नगर निगम के पास संसाधन पर्याप्त है, पर कानूनी बाधाओं के चलते नियंत्रण नहीं हो पा रहा है। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश केवल दिल्ली-एनसीआर में नहीं, बस्तर तक लागू होना चाहिए।
छत्तीसगढ़ मानवाधिकार आयोग के हवाले से पिछले साल अगस्त 2024 में जानकारी आई थी कि पिछले एक साल के भीतर छत्तीसगढ़ में 1 लाख 19 हजार 928 डॉग बाइट के मामले सामने आए। फरवरी 2025 में विधायक सुनील सोनी के सवाल पर मुख्यमंत्री ने विधानसभा में बताया था कि सन् 2022 से लेकर जनवरी 2025 तक 51 हजार 730 डॉग बाइट के केस आए।
इसी तरह के आंकड़े राज्य के दूसरे जिलों से हैं। कई घटनाएं बेहद खौफनाक भी रही हैं। हाल ही में बलौदाबाजार जिले की वह घटना तो हमारे सामने ही है, जब 78 बच्चों को रेबीज टीका इसलिये लगवाना पड़ा था, क्योंकि उन्होंने कुत्तों का जूठा किया हुआ मध्यान्ह भोजन कर लिया था। अभी 10 दिन पहले रायपुर में एक व्यक्ति की मौत हो गई। 7-8 माह पहले उसे कुत्ते ने काटा था, मगर उसने रेबीज के टीके नहीं लगवाए थे। पिछले साल दिसंबर में जशपुर में एक 12 साल के बच्चे की मौत हो गई। उसका भी टीकाकरण नहीं हो पाया था। कुछ राज्यों में छत्तीसगढ़ से ज्यादा खराब हालत है। जैसे कर्नाटक से रिपोर्ट है कि इस साल की पहली छमाही, यानि जून 2025 तक डॉग बाइट के करीब 2.80 लाख केस आए, इनमें से 25 की मौत हो गई। केरल में पिछले 5 सालों के भीतर डॉग बाइट के मामले दोगुने हो गए हैं। सन् 2024 में यहां 26 मौते हुईं। कुत्तों के काटने के 3 लाख से अधिक मामले आए।
यह गौर करने की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने सुओ मोटो आधार पर आदेश दिया है। जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश को छत्तीसगढ़ में भी लागू करने की बात हो रही हो तो जनप्रतिनिधियों, नागरिकों की डॉग बाइट के बढ़ते मामलों की चिंता जरूर दिखती है पर उसके पहले क्या वे उपाय किये जा चुके हैं, जो कुत्तों की दहशत और हमलों को कम करने में मददगार हो सकें?
रायपुर में इस समय एक स्टरलाइजेशन सेंटर बैरन बाजार में है, जहां 15-20 कुत्तों की हर दिन औसतन नसबंदी हो रही है, जबकि लक्ष्य हर दिन 30 कुत्तों का है। रायपुर के जोन 8 के तहत आने वाले सोनडोंगरी में एक शेल्टर युक्त स्टरलाइजेशन सेंटर का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है, पर अभी तक वह शुरू नहीं किया गया है। इसकी क्षमता 168 कुत्तों की प्रतिदिन नसबंदी करने की है। बाकी शहरों में इस तरह का कोई इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार नहीं किया गया है। कोविड-19 के दौरान बिलासपुर में 10 हजार कुत्तों की नसबंदी का कांट्रेक्ट एक संस्था को सौंपा गया, मगर उसका आंकड़ा 2000 से ऊपर नहीं पहुंचा।
जशपुर जैसी जगह पर बच्चे की मौत एंटी रैबीज टीके के नहीं होने के कारण हो गई तो रायपुर जैसी जगह पर जन-जागरूकता का अभाव है। यहां जिसकी मौत हुई, उसने टीके लगवाने की जरूरत ही नहीं समझी। डॉग बाइट से पीडि़त लोगों के लिए कोई हेल्पलाइन नहीं है कि उन्हें तत्काल सहायता मिल सके। रेबीज में देरी खतरनाक होती है। शायद ही बच्चों और आम लोगों को पता होगा कि कुत्तों के काटने के बाद उस जगह को तुरंत धोकर साफ करना चाहिए और टीके लगवाने के लिए अस्पताल पहुंचना चाहिए। छत्तीसगढ़ ने हाल ही में साफ सफाई को लेकर अवार्ड जरूर हासिल कर लिये हैं, पर कुत्तों को पनपने का वहीं मौका मिलता है जहां खुले में खाना फेंक दिया जाए, या जानबूझकर उनके लिए खाना डाला जाए। बलौदाबाजार के स्कूल की घटना को इससे जोड़ सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू कराने की मंशा भावनात्मक जरूर है, मगर कुत्तों के हमले से बचाव के लिए जो बाकी उपायों को आजमाने के लिए सरकार ने पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं।
प्रदीप गांधी कामयाब

आखिरकार राजनांदगांव के पूर्व सांसद प्रदीप गांधी दिल्ली के प्रतिष्ठित कांस्टीट्यूशन क्लब का चुनाव जीतने में कामयाब रहे। पूर्व केन्द्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी क्लब के अध्यक्ष निर्वाचित हुए हैं। संसद सत्र के बीच कांस्टीट्यूशन क्लब के चुनाव को लेकर मंगलवार को काफी गहमागहमी रही। चुनाव में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी सहित अन्य प्रमुख नेताओं ने भी वोट डाले।
कांस्टीट्यूशन क्लब में सांसद, और पूर्व सांसदों के अलावा चुनिंदा नौकरशाह ही सदस्य हैं। मगर वोट डालने का अधिकार सांसदों, और पूर्व सांसदों को ही है। छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सदस्य राजीव शुक्ला पहले ही खेल सचिव के पद पर निर्विरोध निर्वाचित हो चुके हैं। जबकि पूर्व सांसद प्रदीप गांधी क्लब की कार्यकारिणी के लिए चुनाव मैदान में थेे। उन्हें सबसे ज्यादा 507 वोट हासिल हुए। प्रदीप गांधी, और उद्योगपति सांसद नवीन जिंदल समेत कुल 11 कार्यकारिणी सदस्य बने हैं।
संसद में पैसे लेकर सवाल पूछने के आरोप में बर्खास्त सांसद प्रदीप गांधी को भाजपा ने भी पार्टी से निकाल दिया था। बाद में उनकी वापसी हो गई। वो भले ही अब तक पार्टी की मुख्य धारा में नहीं आए हैं, लेकिन सांसदों, और पूर्व सांसदों का उन्हें भरपूर समर्थन मिला है। कुछ लोगों का अंदाजा है कि कांस्टीट्यूशन क्लब का चुनाव जीतने के बाद प्रदीप गांधी की पार्टी में भी हैसियत बढ़ सकती है। देखना है कि प्रदीप गांधी को क्या फायदा होता है।
रांची जेल में ही खुश हैं हम

छत्तीसगढ़ में हुए शराब घोटाले की नब्ज रांची में दबी हुई है। झारखंड शराब घोटाले के दो घोटालेबाज इन दिनों रांची जेल में बंद हैं। दोनों छत्तीसगढ़ के ही कारोबारी हैं। एक दुर्ग जिले का शराब उत्पादक और बॉटलिंग प्लांट का मालिक है तो दूसरा सप्लायर।
दोनों ने छत्तीसगढ़ में एफएल 10 ए का लाइसेंस लिया था। इसी श्रेणी में ही बड़ा घोटाला हुआ। इस श्रेणी में दो और लाइसेंसी हैं एक भोपाल के डिस्टिलर और दूसरे छत्तीसगढ़ के। मगर आरोपियों की सूची में इन चार में से दो ही हैं ।बहरहाल ईओडब्ल्यू अब इस घोटाले में एक बड़ी गिरफ्तारी का मास्टर स्ट्रोक मारना चाहती है। इसके लिए केंद्रीय कारागार रांची में बंद दोनों कारोबारियों की मदद आवश्यक है।
एजेंसी चाहती है कि दोनों जमानत ले ले और फिर गिरफ्तार कर यहां उनसे पूछताछ कर अपना लक्ष्य साध लिया जाए। पर दोनों ही इसके लिए तैयार नहीं हैं। यहां तक कि रांची कोर्ट ने दोनों की गिरफ्तारी का औचित्य पूछकर वहां की एजेंसी की कार्रवाई पर प्रश्न खड़ा कर रखा है। इसका आशय यह है कि दोनों जमानत याचिका दायर करते हैं तो रिहाई में देर नहीं लगेगी। पर दोनों जमानत लेने तैयार नहीं। जेल में ही खुश हैं। अब उनके रुख पर ही छत्तीसगढ़ में जांच एजेंसी की आगे की रणनीति बनेगी या काम करेगी।


