राजपथ - जनपथ

पप्पू बंसल कमजोर कड़ी?
आबकारी घोटाले की परतें खुलने लगी है। इस प्रकरण में पूर्व सीएम भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल की गिरफ्तारी के बाद राजनीतिक माहौल गरमा गया है। इन सबके बीच एक चर्चा यह भी है कि पूर्व सीएम के करीबी पप्पू बंसल सरकारी गवाह बन सकते हैं।
दरअसल, बंसल के बयान के बाद ही चैतन्य की गिरफ्तारी हुई है। इसके बाद से भूपेश बघेल अपने पुराने सहयोगी के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि गैरजमानती वारंट जारी होने के बाद भी पप्पू बंसल को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया है। पूर्व सीएम ने यह भी कहा कि पप्पू बंसल का ईडी दफ्तर आना-जाना है।
बताते हैं कि ईडी भूपेश के दो करीबी विजय भाटिया, और पप्पू बंसल पर काफी पहले से नजर रखे हुए थे। भाटिया तो ईडी की गिरफ्त में है, लेकिन उनसे ज्यादा कुछ उगलवा नहीं पाई है। मगर पप्पू बंसल से पूछताछ में काफी कुछ नई जानकारी सामने आई है।
पेेशे से बिल्डर पप्पू बंसल, भूपेश बघेल के राजनीतिक जीवन के शुरूआती दौर से जुड़े रहे हैं। उनका चुनाव मैनेजमेंट भी पप्पू बंसल ही देखते थे। जांच एजेंसी ने पप्पू बंसल के अलावा सरायपाली में रहने वाले उनके रिश्तेदारों के यहां भी दबिश दी थी। इसके बाद से पप्पू से काफी कुछ जानकारी जुटाने में ईडी सफल रही है। पप्पू बंसल की गिरफ्तारी न होना इस बात को इंगित कर रहा है कि वो सरकारी गवाह बन सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो चैतन्य के लिए मुश्किलें बढ़ सकती है। वाकई ऐसा होगा यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
तारीफ़ में कोई तंगदिली नहीं
सीएम विष्णुदेव साय की एक विशेषता है कि वो अच्छे कामों पर अपने सहयोगियों का सार्वजनिक तौर पर तारीफ करने से नहीं चूकते हैं, और उनकी हौसला अफजाई करते हैं।
शनिवार को एक निजी कार्यक्रम में सीएम ने अपने साथ मंच पर मौजूद डिप्टी सीएम अरूण साव की खुले तौर पर तारीफ की। उन्होंने कहा कि साव के कार्यों का प्रतिफल है कि प्रदेश के सात नगरीय निकायों को स्वच्छता में ईनाम मिला है।
साय यही नहीं रूके, उन्होंने कहा कि नगरीय निकाय चुनाव के पहले सभी निकायों को विकास कार्यों के लिए धनराशि देकर विकास कार्यों की रफ्तार बढ़ाई। नगरीय निकाय चुनाव में जीत मिली। उन्होंने डिप्टी सीएम के लिए मंच से ताली बजवाई। डिप्टी सीएम अरूण साव ने खड़े होकर सबका अभिवादन भी किया। इसके बाद से सरकार और संगठन में सीएम के सबसे निकट कौन हैं, इसे लेकर चर्चाएं तेज हो गईं हैं।
परिंदों का प्रेमालाप
इस तस्वीर में दिख रहे सुंदर पक्षी को स्पॉटेड मुनिया या नटमेग मुनिया कहा जाता है, जिसका वैज्ञानिक नाम लोंचुरा पंचुलता है। हिंदी में इसे चित्रित मुनिया या सुतरीया चिडिय़ा के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत सहित दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों में दिखाई देते हैं। इसके शरीर पर सुनहरे भूरे रंग के साथ सफेद और काले धब्बेदार पैटर्न होते हैं, जो इसे अन्य पक्षियों से अलग पहचान देते हैं। ये अक्सर झुंड में रहते हैं, और इन दिनों खेतों, झाडिय़ों में दिख रहे हैं। इस तस्वीर में दोनों मुनिया पक्षी एक कांटेदार तार पर पास-पास बैठे हैं। एक पक्षी दूसरे की ओर मुड़ा है, उसकी आँखों में उत्सुकता है, तो दूसरे ने मानो नजऱे चुरा ली हो... यह क्षण किसी प्रेमकाव्य की तरह लग रहा है। (तस्वीर प्राण चड्ढा)
दिव्यांगों की चिंता आखिर कब?
विधानसभा के हालिया सत्र में विधायक अजय चंद्राकर ने एक ऐसी गंभीर सच्चाई सामने रखी, जिस पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता। उन्होंने बताया कि राज्य के 31 दिव्यांगजन महाविद्यालयों में से 30 में प्राचार्य के पद रिक्त हैं। इस पर मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े भी हैरान रह गईं। चंद्राकर ने कहा कि उन्हें आश्चर्य है कि किसी आउटसोर्सिंग एजेंसी से तबलावादक, चित्रकला और गायन के लिए मैनपॉवर लिया जाता है। ऐसी सेवा देने वाले किसी संस्था का नाम तो आज तक उन्होंने नहीं सुना। मंत्री के पास इसका भी कोई साफ जवाब नहीं था। चंद्राकर ने यह भी सवाल उठाया कि दिव्यांगों के लिए बनी योजनाओं का बजट साल-दर-साल घट क्यों रहा है। मंत्री इस पर भी संतोषजनक उत्तर नहीं दे सकीं।
कुछ आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में करीब 70 हजार दिव्यांग बच्चे हैं, लेकिन उनके लिए केवल 270 शिक्षक नियुक्त हैं, जबकि नियमानुसार यह संख्या 6,000 से अधिक होनी चाहिए। विशेष शिक्षक नहीं होने के कारण इन बच्चों को सामान्य विद्यार्थियों के बीच बैठाया जा रहा है, जिससे उनकी शिक्षा और विकास दोनों प्रभावित हो रहे हैं।
समाज कल्याण विभाग ने बीते वर्ष केवल 100 विशेष शिक्षक पदों की भर्ती का प्रस्ताव वित्त विभाग को भेजा था, लेकिन सदन में स्वयं स्वीकार किया गया कि अब तक उसकी स्वीकृति नहीं मिली है। यह स्थिति तब है जब सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में एक याचिका पर आदेश देते हुए ऐसे रिक्त पदों को शीघ्र भरने को कहा था।
सवाल यह है कि जब सामान्य विद्यार्थियों के लिए भी शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो रही, तब दिव्यांगों की परवाह कौन करेगा?