राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : डबल इंजन का फ़ायदा, पटरी...
17-Aug-2024 4:19 PM
राजपथ-जनपथ : डबल इंजन का फ़ायदा, पटरी...

डबल इंजन का फ़ायदा, पटरी...

रेल मंत्रालय ने बीजापुर, और दंतेवाड़ा को रेल लाईन से जोडऩे के प्रस्ताव पर काम शुरू कर दिया है। मंत्रालय इसके लिए सर्वे को मंजूरी दे दी है। दरअसल, बस्तर सांसद महेश कश्यप ने गत 22 जुलाई को लोकसभा में बस्तर को रेल से जोडऩे की मांग पुरजोर तरीके से रखी थी। केन्द्र ने भी पखवाड़े भर के भीतर इस दिशा में काम शुरू कर दिया है।

कश्यप से पहले बीजापुर कलेक्टर अनुराग पांडेय ने गीदम से भोपालपट्टनम और भोपालपट्टनम से तेलंगाना के सिंरोंचा तक रेल लाईन बिछाने के लिए बकायदा प्रेजेंटेशन दिया था। कुल 236 किलोमीटर प्रस्तावित रेल कॉरीडोर के चेन्नई-नागपुर, दिल्ली मेन ट्रंक लाईन में बीजापुर की कनेक्टिविटी हो जाएगी। रेलवे मंत्रालय ने इन प्रस्तावों को संशोधित रूप से मान लिया है।

मंत्रालय ने एक कदम आगे जाकर गढ़चिरौली से बीजापुर होते हुए बचेली तक रेल लाईन के निर्माण के लिए फाइनल सर्वे और डीपीआर बनाने के लिए पौने 17 करोड़ रूपए मंजूर भी किए हैं। इसमें कोरबा से अंबिकापुर प्रस्तावित रेल लाईन भी शामिल है। खास बात यह है कि रमन सरकार ने बरसों पहले अधोसंरचना विकास के लिए पूर्व सीएस एस.के.मिश्रा की अध्यक्षता में कमेटी बनाई थी।

कमेटी ने कोरबा, कटघोरा, और अंबिकापुर तक रेल लाईन की अनुशंसा की थी। प्रस्ताव केन्द्र को भेजा भी गया था, लेकिन बाद में रमन सरकार चली गई, और फिर प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया। अब जाकर दोनों ही प्रस्ताव पर काम शुरू हुआ है। डबल इंजन की सरकार होने का कुछ तो फायदा होता ही है।

इतने पेड़ कहाँ गए? 

प्रदेश में वृक्षारोपण अभियान चल रहा है। इस अभियान को इमोशनल टच दिया गया है, और अभियान का नामकरण एक पेड़ मां के नाम किया गया है। इससे पहले भी बड़े पैमाने पर जून के आखिरी हफ्ते से वृक्षारोपण अभियान चलते रहे हैं। एक जानकारी के मुताबिक राजधानी और आसपास में कागजों पर राज्य बनने के बाद से अब तक सौ करोड़ पेड़ लग चुके हैं। इसमें से कितने जीवित हैं, यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं है।

वृक्षारोपण के लिए सार्थक अभियान राज्य बनने से पहले तत्कालीन कमिश्नर शेखर दत्त के कार्यकाल में चला था। उस समय के पेड़ अब तक जीवित हैं। इसी तरह बाद में कमिश्नर जे.एल.बोस ने भी अभियान चलाया था। 

जे.एल.बोस की बहुत अधिक दिलचस्पी के चलते लोग उनका नाम ही झाड़ लगाओ बोस कहने लगे थे। 
दोनों के कार्यकाल में बलौदाबाजार रोड और वीआईपी रोड में वृक्षारोपण अभियान चला था। उस समय के पेड़ अब तक लहरा रहे हैं। रायपुर स्मार्टसिटी क्षेत्र में अब तक पांच करोड़ पौधे का रोपण दिखाया गया है। स्मार्टसिटी क्षेत्र में शहर का ही इलाका आता है जहां वृक्षारोपण की सीमित गुंजाइश है। स्मार्टसिटी के अस्तित्व में आने के बाद ये वृक्ष कहां लगे हैं इसका कोई भौतिक सत्यापन नहीं हुआ है। कई पार्षद मानते हैं कि वृक्षारोपण के नाम पर सिर्फ भ्रष्टाचार हुआ है। और अब मां के नाम पर पेड़ का क्या होता है यह देखना है। 

पुनर्मिलन में छड़ी का आशीर्वाद

तमिलनाडु के एक स्कूल के 40 वर्ष पुराने छात्रों का पुनर्मिलन हुआ। इस खास मौके पर कलेक्टर, पुलिस अधिकारी, डॉक्टर, वकील, प्रधानाचार्य, शिक्षक, व्यापारी, और स्कूलों के मालिक सभी पहुंचे थे। लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह थी कि इन सबकी एक ही इच्छा थी – प्रधानाचार्य की वही पुरानी छड़ी से पिटाई खाने की!

इन सफल शख्सियतों का मानना है कि वे अपने जीवन में जिन ऊंचाइयों तक पहुंचे हैं, वह प्रधानाचार्य के छड़ी आशीर्वाद का परिणाम है। उनकी सफलता का राज छिपा था उन 'स्नेह भरी पिटाईयों' में, जो उन्हें स्कूल के दिनों में मिला करती थीं। अब, इतने वर्षों बाद, वे फिर से उसी छड़ी का स्पर्श चाहते थे – शायद यह सुनिश्चित करने के लिए कि गुरु- शिष्य के बीच संबंधों की जड़ें अभी भी मजबूत हैं!

कहां से बनेगा कांग्रेस अध्यक्ष?

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार और उसकी समीक्षा के बाद, प्रदेश कांग्रेस में अब महारथी, यानि प्रदेश अध्यक्ष की तलाश हो रही है। ऐसा, जो कुर्सी तक पार्टी को फिर से पहुंचा सके। विधानसभा चुनाव में हार का सदमा कांग्रेस अब तक झेल रही थी कि लोकसभा चुनाव ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। 11 में से सिर्फ एक सीट जीतने के बाद पार्टी का  डगमगाया आत्मविश्वास कई बार आंदोलनों के जरिये सडक़ पर उतर जाने के बाद भी लौटा नहीं है।

बस्तर से लगातार दो अध्यक्ष बनाए गए लेकिन उसका फायदा कांग्रेस को नहीं मिला। अब जब नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत ने कह दिया है कि वे इस पद की दौड़ में नहीं हैं तो पार्टी के भीतर नई हलचल मच गई है। मैदानी छत्तीसगढ़ में दो कद्दावर नेता हैं, भूपेश बघेल और डॉ. महंत। हार का ठीकरा बघेल और उनकी कार्यप्रणाली पर फोड़ा जा चुका है। कुछ लोग इस बात को लेकर बगावत कर पार्टी छोड़ चुके, कुछ लोग पार्टी में रहकर यही बात कर रहे हैं। उनके किसी करीबी को अध्यक्ष बनाने का मतलब होगा, गलतियों से सबक नहीं लेना, अब बच जाते हैं, डॉ. महंत, जिन्होंने रेस से खुद को अलग करने का ऐलान कर दिया है। फिर बच जाता है सरगुजा। वहां से एक ही नाम है- टीएस सिंहदेव का। उन्होंने अब तक न तो इच्छा जताई है और न ही अनिच्छा। शायद कोई उनका नाम उछाले, तब वे प्रतिक्रिया दें। सिंहदेव यह समझ ही रहे होंगे कि प्रदेश अध्यक्ष का पद कांग्रेस में मुख्यमंत्री बनने का रास्ता भी खोलता है। दिग्विजय सिंह से लेकर भूपेश बघेल तक इसका लाभ उठा चुके हैं। सिंहदेव यदि हां करते हैं और कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना पाएं, तो अगली बार उनकी अधूरी रह गई इच्छा पूरी भी हो सकती है।

(rajpathjanpath@gmail.com)


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