राजपथ - जनपथ

अनुशासन समितियों का हाल
पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम खुले तौर पर विधानसभा चुनाव में सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर चुके हैं, लेकिन कांग्रेस उन पर कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही है। नेताम के खिलाफ कार्रवाई का मसला पार्टी की केंद्रीय अनुशासन समिति के पास लंबित हैं।
अनुशासन कमेटी के चेयरमैन एके एंटनी हैं, जो 93 साल के हैं। उनकी सक्रियता लगभग नहीं के बराबर रह गई है। उनके खुद के बेटे अनिल एंटनी पार्टी छोडक़र भाजपा में जा चुके हैं। ऐसे में अब कहा जाने लगा है कि जिस मामले पर कार्रवाई को लटकाना हो, उसे अनुशासन कमेटी को भेज दिया जाता है।
कांग्रेस महामंत्री अमरजीत चावला के खिलाफ भी शिकायत अनुशासन कमेटी में पेंडिंग है। यही नहीं, प्रदेश की अनुशासन कमेटी का हाल भी केन्द्रीय कमेटी की तरह है। यहां पूर्व विधायक बोधराम कंवर कमेटी के चेयरमैन हैं। बोधराम की भी उम्र 90 हो चुकी है। ऐसे में राज्य की कमेटी में भी वो ही मामले भेजे जाते हैं जिन्हें लटकाना होता है। इन सब वजहों से पार्टी के भीतर अनुशासन को लेकर सवाल उठते रहते हैं।
शराबबंदी पर भाजपा का रुख क्या?
शराबबंदी का वादा पूरा नहीं करने को लेकर कांग्रेस सरकार को भाजपा लगातार घेर रही है। इसी कड़ी में भाजपा महिला मोर्चा की ओर से एक हस्ताक्षर अभियान धरसींवा इलाके के मांढर में चलाया गया जिसमें दावा है कि 5 हजार महिलाएं शामिल हुईं। लगातार आंदोलनों के बाद भी भाजपा यह साफ नहीं कर रही है कि यदि उनकी सरकार बनेगी तो क्या शराबबंदी होगी? पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह धरसींवा के कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्होंने भूपेश सरकार की वादाखिलाफी पर आक्रामक तेवर दिखाए, पर यह नहीं बताया कि भाजपा की सरकार आएगी तो उसका रुख क्या होगा? यदि सिर्फ कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाना ऐसे प्रदर्शनों का उद्देश्य है तो सरकार बदलने के बाद भी शराबबंदी की पक्षधर महिलाओं को हासिल क्या होगा। जो समस्या आज वे भोग रही हैं, कल भी रहेगी। भाजपा यदि इसे लेकर कोई वादा नहीं भी करे तब भी उसे सरकार बनने की स्थिति में इसी सवाल का सामना करना पड़ेगा।
हनुमान चालीसा का पाठ
कर्नाटक चुनाव के बाद राजनीतिक संगठनों की बजरंगबली पर आस्था बढ़ती जा रही है। उन्हें ऐसा लगने लगा है कि संकटमोचक हर समस्या हल कर देंगे। शायद इसीलिए दुर्ग में एनएसयूआई के सदस्यों ने स्टेशन के भीतर हनुमान चालीसा का पाठ किया। उनका विरोध यात्री ट्रेनों के घंटों देर से चलाने को लेकर था। रेलवे के अधिकारी इस मामले में सांसद, विधायकों तक की नहीं सुन रहे हैं। हो सकता है भगवान के शरण में जाने से ही बात बने।
राजकीय पशु की संख्या कितनी
वनभैंसा छत्तीसगढ़ का राजकीय पशु है। इसका अस्तित्व संकट में है। पर आज की तिथि में वनभैंसों की संख्या कितनी है यह वन विभाग को ही पता नहीं है। इंद्रावती नेशनल पार्क के कुटरू में सात-आठ साल पहले एक प्रजनन केंद्र बनाने की योजना लाई गई थी लेकिन यह अब तक पूरा नहीं हो सका। न ही जंगलों में घूमकर इनकी गिनती की जा सकी है। ये दोनों काम नक्सलियों के विरोध के चलते नहीं हो पा रहे हैं। स्थिति यह है कि केवल ट्रैप कैमरे ही हैं, जिनके जरिये इंद्रावती में इनकी मोजूदगी का पता चलता है। हर साल इनके संरक्षण के नाम पर लाखों रुपये का बजट मंजूर होता है पर वास्तव में इसका उपयोग इनकी वंशवृद्धि में हो रही है या नहीं यह कोई नहीं बता सकता।
इतनी बेइज्जती...
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की शीर्ष पदों पर भर्ती में हुए कथित घोटाले का विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। सरकार और कांग्रेस नेता चाहे जितनी सफाई दें, लोग भरोसा ही नहीं कर रहे। वैसे भी लोक सेवा आयोग की तरफ से कोई सफाई अब तक आई नहीं है। अखिल भारतीय विद्या,र्थी परिषद् प्रदेश में जगह-जगह इस मुद्दे के खिलाफ सडक़ पर है। बिलासपुर में उन्होंने ठेला लगाया। यह बताने की कोशिश की कि आलू-प्याज की तरह बड़े-बड़े पद बेचे जा रहे हैं। डिप्टी कलेक्टर का रेट केवल 75 लाख रुपए है। हैसियत है तो बोलो।
नार्को टेस्ट से सच सामने आएगा?
झीरम हत्याकांड की 10वीं बरसी पर बीजेपी नेताओं ने प्रदेश के कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा को जमकर घेरा और उनके नार्को टेस्ट की मांग की। अब बस्तर से एक वीडियो सामने आया है जिसमें स्वर्गीय महेंद्र कर्मा के बेटे छबिंद्र कर्मा न केवल कवासी लखमा बल्कि अमित जोगी के भी नार्को टेस्ट की मांग कर रहे हैं। छबिंद्र की मां यानि स्वर्गीय महेंद्र कर्मा की पत्नी देवती कर्मा कांग्रेस विधायक हैं। छबिन्द्र का कहना है कि उन्होंने तो स्वर्गीय अजीत जोगी का भी नार्को टेस्ट कराने की मांग पहले की थी। लखमा का टेस्ट इसलिये होना चाहिए कि एक भीड़ में पांच लोग हों और चार मार डाले जाएं, एक को छोड़ दिया जाए, यह कैसे हुआ?
नार्को टेस्ट किसी जांच में नतीजे तक पहुंचने के लिए एक अच्छा रास्ता होता है। लेकिन यह टेस्ट तभी हो सकता है जब कोई व्यक्ति सहमति दे। इसके अलावा नार्को टेस्ट में दर्ज बयान के बाद उसके समर्थन में दूसरे सबूतों की भी जरूरत पड़ती है। वरना अदालत में वे टिकेंगे नहीं। 11 साल पहले रायपुर के इंदिरा प्रियदर्शनी महिला नागरिक सहकारी बैंक में हुए करीब 54 करोड़ रुपए के घोटाले की जांच के दौरान बैंक के प्रबंधक और कुछ कर्मचारियों का नार्को टेस्ट कराया गया था। इसमें उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह और तब के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल जैसे कई बड़ी हस्तियों का नाम लिया था। मगर उसके समर्थन में जांच एजेंसी दूसरे सबूत नहीं जुटा पाई। मतलब यह है कि नार्को टेस्ट से जांच आगे बढ़ाने में मदद मिल सकती है लेकिन दोषी को पहचान के लिए यह काफी नहीं है।
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