राजपथ - जनपथ

अब आधा रह गया साम्राज्य
आईएएस के 25 अफसरों को इधर से उधर किया गया। कुछ अफसरों के तबादले अपेक्षित थे। एक-दो तबादले ऐसे हैं, जिनको लेकर काफी चर्चा हो रही है। मसलन, डायरेक्टर समग्र शिक्षा नरेंद्र दुग्गा को नया जिला मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर का कलेक्टर बनाया गया है।
विशेष सचिव स्तर के अफसर दुग्गा दो साल कोरिया कलेक्टर रहे हैं। उन्होंने ही पिछले विधानसभा का चुनाव कराया था। मगर अब कोरिया से अलग होकर अस्तित्व में आए मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर के कलेक्टर बनाए गए। यानी वो पहले के मुकाबले आधा जिले के कलेक्टर रह गए। हालांकि कोल माइंस के कारण आधा जिला भी काफी महत्वपूर्ण हो चला है।
प्रसन्ना ही प्रसन्ना
वैसे तो मंत्रालय में अफसरों की कमी है। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव अपने विभाग में अनुभवी, और काबिल अफसरों की पोस्टिंग चाहते रहे हैं। इस बार स्वास्थ्य विभाग में आधा दर्जन अफसरों की पोस्टिंग की गई है, जिनमें से एक-दो तो लकीर के फकीर माने जाते हैं।
एसीएस रेणु पिल्ले को स्वास्थ्य का जिम्मा दिया गया है। रेणु पहले भी स्वास्थ्य विभाग संभाल चुकी हैं। उनके नीचे प्रसन्ना आर तो हैं ही। इसके अलावा चिकित्सा शिक्षा सचिव का दायित्व पी दयानंद को सौंपा गया है।
यही नहीं, डॉ. सीआर प्रसन्ना को आयुक्त स्वास्थ्य सेवाएं बनाया गया है। प्रसन्ना आर, और सीआर प्रसन्ना, दोनों तमिलनाडू में आसपास के गांव के ही रहने वाले हैं। आयुक्त चिकित्सा शिक्षा नम्रता गांधी को संचालक आयुष के पद पर पदस्थ किया गया है। भीम सिंह तो पहले से ही एनआरएचएम का प्रभार संभाल रहे हैं। कुल मिलाकर सिंहदेव एकमात्र मंत्री हैं, जिनके एक विभाग में आधा दर्जन आईएएस बिठाए गए हैं। स्वाभाविक तौर पर चुनावी साल में अब सिंहदेव पर परफॉर्मेंस दिखाने का दबाव बन गया है।
अंकित आनंद लगातार महत्वपूर्ण
प्रशासनिक फेरबदल के बाद सीएम के सचिव अंकित आनंद, और ताकतवर हुए हैं। उन्हें वित्त विभाग, और पेंशन निराकरण समिति का चेयरमैन का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है। जबकि ऊर्जा सचिव, और सीएसईबी के चेयरमैन का दायित्व पहले से ही संभाल रहे हैं। अंकित की साख बहुत अच्छी है, और कई सीनियर अफसरों के मुकाबले ज्यादा तेज रफ्तार से काम करने की क्षमता है। यही वजह है कि अलरमेल मंगई डी के छुट्टी पर जाने की वजह से वित्त जैसा महत्वपूर्ण महकमे का प्रभार उन्हें दिया गया है। यद्यपि वो बजट सत्र के बाद से ही वित्त का काम देख रहे हैं।
लिस्ट अभी बाकी है
खबर है कि दो दर्जन से अधिक आईएएस अफसरों को इधर से उधर करने के बावजूद कुछ कमी अभी भी बाकी है। इस कमी को दूर करने के लिए जल्द ही एक और लिस्ट आ सकती है। इसमें भी एक-दो कलेक्टर को बदला जा सकता है। देखना है कि सूची कलेक्टर कॉन्फ्रेंस के बाद आती है अथवा पहले।
छत्तीसगढिय़ा प्री वेडिंग शूट
अपने यहां खासियत है कि विदेशों की परिपाटी, पर्व, परम्पराओं को आयात करते हैं तो अपने हिसाब से उसमें बदलाव भी कर लेते हैं। मोमबत्ती के साथ केक काटते हैं तो साथ में बर्थडे ब्वाय की आरती भी उतार लेते हैं। वेलेंटाइन डे यहां केवल प्रेमी-प्रेमिका के लिए नहीं रह गया है बल्कि दोस्त, परिवार के प्रिय लोगों के लिए भी मना लिया जाता है।
पिछले कुछ वर्षों से पश्चिम से ही प्रेरित शादी के पहले के इवेंट, प्री-वेडिंग शूट का चलन बढ़ा है। सगाई और शादी के बीच हिल स्टेशन और रिजॉर्ट पर जाकर युगल वीडियो और फोटो शूट कराते हैं। इसे कारपोरेट की हवा कुछ ऐसी लगी कि लडक़े-लडक़ी कुछ ज्यादा ही नजदीकी से तस्वीरें खिंचाने लगे। कुछ सामाजिक बैठकों में इसका विरोध होने लगा। कई समाजों में इसे प्रतिबंधित भी कर दिया गया है। पर यहां बात हो रही है, अनोखे अंदाज में गांव और जड़ों की स्मृतियों को सहेजने वाले प्री वेडिंग शूट की। जांजगीर के पुरानी बस्ती में रहने वाले बिजली विभाग में इंजीनियर देवेंद्र राठौर ने अपने जोड़े रश्मि के साथ छत्तीसगढिय़ा वेशभूषा में तस्वीरें खिंचवाई और वीडियो तैयार कराया। यही नहीं शादी का निमंत्रण पत्र भी छत्तीसगढ़ी में ही है। यह प्रयोग लोगों को भा रहा है। शादी के 20-25 बरस बाद जब ये वीडियो वे देखेंगे तो मालूम होगा कि वह गांव ढूंढने से भी नहीं मिल रहा है।
हसदेव से जुडऩे का न्यौता
विवाह का निमंत्रण पत्र अब अपनी मिट्टी से प्रेम दर्शाने का ही नहीं, सामाजिक जागरूकता लाने का माध्यम भी बनता जा रहा है। इन दिनों अनेक ऐसे निमंत्रण पत्र देखे जा रहे हैं जो छत्तीसगढ़ी में हैं, या फिर उनमें पर्यावरण, स्वास्थ्य आदि से संबंधित संदेश दिए गए हैं। हसदेव आंदोलन को बल देने के लिए भी निमंत्रण पत्रों का उपयोग हो रहा है। ऐसा ही एक कार्ड सीमा और अमित के विवाह का सामने आया है। निमंत्रण पत्र के शीर्ष में हसदेव बचाओ आंदोलन का लोगो है और पीछे आधे कार्ड पर आंदोलन की तस्वीर है। जितने हाथों में यह कार्ड पहुंचेगा, वे हसदेव के लिए किए जा रहे संघर्ष के महत्व को समझेंगे।
गलत दवा खरीद ली तो क्या?
कोविड महामारी की जब दहशत थी तब रेमेडसिविर का ऐसा संकट आया कि देशभर में कालाबाजारी, मुनाफाखोरी होने लगी। इस पर रोक लगाने के लिए जगह-जगह छापामारी भी की गई। कई लोग गिरफ्तार किए गए जिनमें डॉक्टर भी शामिल थे। बाद में पता चला कि रेमडेसिविर कोविड से निपटने में कारगर है ही नहीं। कुछ ऐसा ही टेबलेट डोला के बारे में कहा गया। अब इन दोनों दवाओं की कोई पूछ-परख नहीं रह गई है। पर दवा कंपनियों को जितना कमाना था, कमा चुके। यह एक उदाहरण है कि अपने देश में लोग दवा के मामलों में कुछ भी प्रयोग करने के लिए तैयार हो जाते हैं, उसके दुष्प्रभाव को जाने बिना। सिर, पेट के मामूली दर्द की दवा तो किसी डॉक्टर से पूछने की जरूरत ही पड़ती। दवा दुकानों का सेल्समेन, जो प्राय: केमिस्ट नहीं होता- सिर्फ सेल्समैन होता है, जो दवा बता दे, खरीदकर लोग सेवन कर लेते हैं। ऐसे में कल अखबारों में छपे एक छोटे से विज्ञापन ने ध्यान खींच लिया। यह एबॉट इंडिया लिमिटेड की ओर से है। कंपनी हाईपो थॉयरायडिज्म में काम आने वाली टेबलेट थॉयरोनार्म बनाती है। उसने लोगों से अपील की है कि इस-इस बैच की दवा आपने यदि खरीद ली हो तो उसे वापस कर दीजिए। दवा के लेबल पर उसमें मात्रा गलती से 25 एमसीजी लिखी है, जबकि यह 88 एमसीजी की दवा है। मालूम नहीं एक कोने में छपे विज्ञापन को कितने लोगों ने पढ़ा है, और पढ़ भी लिया हो तो क्या लौटाना जरूरी समझेंगे? कुछ लोग यह समझकर खुश भी हो सकते हैं कि चलो 25 के दाम में 88 मिल गया। (rajpathjanpath@gmail.com)