राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : पार्टी में दावेदारों की होड़
24-Apr-2023 4:20 PM
राजपथ-जनपथ : पार्टी में दावेदारों की होड़

पार्टी में दावेदारों की होड़ 

विधानसभा चुनाव में छह महीने बाकी हैं। लेकिन भाजपा के अंदरखाने में प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया पर चर्चा चल रही है। कई नेता तो प्रत्याशी चयन में गुजरात फार्मूला लागू होने के हल्ला मात्र से घबराए हुए हैं, और प्रतिद्वंदी को किनारे लगाने की कोशिश कर रहे हैं। टिकट वितरण में गुजरात फार्मूला लागू हुआ, तो तमाम हारे हुए, और कई दिग्गज नेताओं  की टिकट खतरे में पड़ सकती है। 

गुजरात फार्मूले के चलते कई नए नेता सक्रिय हो गए हैं, और खुद को विधानसभा के दावेदार के रूप में प्रोजेक्ट करने में लग गए हैं। ऐसे ही पार्टी के जिला मीडिया प्रभारी ने तो एक विधानसभा क्षेत्र का कथित तौर पर सर्वे कराया, और फिर पार्टी के शीर्षस्थ नेता की जगह वहां के जिला अध्यक्ष को बेहतर प्रत्याशी बता दिया। यही नहीं, खुद को भी बेहतर दावेदारों के पैनल में रखा है। मीडिया प्रभारी के सर्वे की जानकारी पार्टी के बड़े नेताओं तक पहुंची है। इसके बाद मीडिया प्रभारी को हटाने की मांग होने लगी है।

दूसरी तरफ, नारायणपुर के भाजयुमो अध्यक्ष जैकी कश्यप को अचानक हटाए जाने की खूब चर्चा हो रही है। जैकी नारायणपुर नगर पालिका में नेता प्रतिपक्ष भी हैं। उन्हें काफी सक्रिय नेता माना जाता है। उन्हें पूर्व मंत्री और टिकट के प्रबल दावेदार केदार कश्यप  के विकल्प के रूप में भी देखा जा रहा है। और चर्चा है कि इसी वजह से उन्हें पद से हटा भी दिया गया। चाहे कुछ भी हो, विशेषकर भाजपा में हर विधानसभा से दर्जनभर दावेदारों के नाम सामने आ रहे हैं, और सभी गुजरात फार्मूले के चलते उम्मीद से है। 

गुजरात मॉडल से यूपी मॉडल तक

दस साल पहले जब भावी प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी की छवि गढऩे का काम भाजपा ने शुरू किया था तो पार्टी की अधिकारिक वेबसाइट बीजेपी डॉट ओरआरजी में गुजरात मॉडल को देशभर के लिए एक आदर्श के रूप में पेश किया गया। इसका मतलब बताया गया था- भरपूर नौकरी, कम महंगाई, ज्यादा कमाई, तीव्र गति से अर्थव्यवस्था का विकास, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, दुरुस्त सुरक्षा और बेहतर जीवन। सन् 2014 में इंतजार खत्म हुआ, जब मोदी के हाथों में देश की कमान आ गई। सन् 2019 के आते-आते गुजरात मॉडल के फैक्ट और फिक्शन पर लोग सवाल उठाने लगे। पर इस बार, आतंकी हमला, शहादत, राष्ट्रवाद और ‘मैं भी चौकीदार’ का डंका ऐसा बजा कि सारे मुद्दे हवा हो गए। लोग गुजरात मॉडल को ही नहीं भूल गए बल्कि नोटबंदी, जीएसटी, राफेल आदि का शोर भी काम नहीं आया। भाजपा ने विधानसभा चुनावों में भी मोदी-शाह के इसी जादू को अब तक आजमाया है। इस दौरान, बाद में तोडऩे-जोडऩे से बनी सरकारों की बात नहीं करें तो हिंदी पट्टी के केवल गुजरात और उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों में एकतरफा जीत मिली। पश्चिम बंगाल, बिहार, राजस्थान, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, ओडिशा, झारखंड, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र के नतीजे भाजपा की उम्मीद के मुताबिक नहीं आए। हालांकि रणनीति तैयार करने में अमित शाह ने और चुनाव प्रचार में नरेंद्र मोदी ने कोई कसर बाकी नहीं रखी थी। सन् 2018 में छ्त्तीसगढ़ में भाजपा का प्रदर्शन ऐतिहासिक रूप से कमजोर रहा। इसीलिए उसने इस बार किसी को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट नहीं किया है। अब उन्हें 2023 के चुनाव में पहले से ज्यादा बड़े असर वाले स्टार प्रचारक तथा नायकों की जरूरत है। क्योंकि, बीजेपी के सामने सवाल है कि सन् 2018 में मोदी-शाह ने यहां भी धुआंधार चुनावी सभाएं ली थीं, तो क्या 2023 में इन्हीं नायकों से बेड़ा पार लग जाएगी?

पिछले दो दिनों से प्रदेश की राजनीति प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव और उसके बाद दूसरे भाजपा नेताओं के उस बयान को लेकर गरमाई हुई है कि उनकी सरकार आएगी तो भू-माफिया और अपराधियों पर बुलडोजर चलाया जाएगा। बुलडोजर का नाम लेते ही सबके जेहन में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम आता है। जो लोग बुलडोजर ही नहीं, एनकाउंटर और आक्रामक हिंदुत्व भी की पैरवी करते हैं उनके लिए वे ऐसे नायक की तरह हैं, जिसके हाथ में अगर देश की बागडोर आ गई तो वे भारत को हिंदू राष्ट्र के रूप में स्थापित कर देंगे।

मध्यप्रदेश ने यूपी के बुलडोजर कल्चर को अपना लिया है। यूपी में एफआईआर दर्ज होने के बाद, अदालत से अपराधी घोषित करने से पहले ही बुलडोजर चलाए जा रहे हैं, न्यायिक प्रक्रिया के बिना ही दर्जनों अपराधी मौत के घाट उतार दिए गए हैं। बेरोजगारी, महंगाई, डूबते व्यापार से चिंताग्रस्त लोगों के बीच ऐसी खबरें सनसनी और उन्माद फैलाती है। बस्तर और बेमेतरा में हाल ही में हुए तनाव की घटनाएं भी इसी दिशा की ओर छत्तीसगढ़ को ले जाने की कोशिश है। हो सकता है लक्ष्य केवल 2023 के चुनाव का नहीं, 2024 का भी हो।

विधायक पर हमले के बाद सफाई

राज्य के सबसे दक्षिण के जिले बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर को माओवादियों के आखिरी गढ़ के रूप में माना जा सकता है। देश के बाकी हिस्सों में यह जरूर सिमटती गई है लेकिन यहां अब भी इनकी जीवंत मौजूदगी है। बीजापुर विधायक विक्रम मंडावी के काफिले पर बीते दिनों हुआ हमला इसका सबूत देता है। बस्तर में टीसीओसी, एक सामरिक जवाबी आक्रमण अभियान है, जो मार्च से जून माह के बीच, जब जंगलों में हरियाली कम हो जाती है और दृश्यता बढ़ जाती है तब नक्सली चलाते हैं। वे अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए हमला करते हैं। यह संयोग ही था कि विक्रम मंडावी के काफिले को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। अब इधर नक्सलियों की ओर से सफाई दी गई है कि विक्रम मंडावी उनके टारगेट में नहीं थे। यह उनके टीसीओसी अभियान का एक हिस्सा था। यानि सुरक्षा बलों की कार्रवाई के विरोध में वे केवल अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। नक्सली बस्तर में अपनी स्वीकार्यता बनाये रखने के लिए कई मौकों पर इस तरह की सफाई दे चुके हैं। विक्रम मंडावी के काफिले पर हुए हमले के बाद भी यही किया गया है। हमले के बाद अगले दिन विक्रम मंडावी क्रिकेट खेलते नजर आए थे। इस पर भाजपा नेता पूर्व वन मंत्री महेश गागड़ा का बयान आया कि यह हमला सस्ती लोकप्रियता के लिए विधायक की ओर से बनाई गई रणनीति थी। वैसे 9 अप्रैल 2019 इसी अवधि मार्च-जून के बीच की एक तारीख है। इस दिन दंतेवाड़ा के तत्कालीन भाजपा विधायक भीमा मंडावी नक्सली हमले में मारे गए थे। बीते दो तीन महीनों में भाजपा के चार स्थानीय नेताओं की नक्सलियों ने हत्या कर दी। एक कांग्रेस कार्यकर्ता की भी मार डाला गया। नक्सली अपनी स्वीकार्यता बनाए रखने के लिए भले ही विक्रम मंडावी के मामले में सफाई दे लेकिन इस पर यकीन करना मुश्किल है कि वे हमला करने के बावजूद यह चाहते थे कि कोई नुकसान न हो।

रायफल और बांसुरी एक साथ

अंबिकापुर में पदस्थ छत्तीसगढ़ पुलिस में प्रधान आरक्षक रामसाय की विभाग में ही नहीं, बल्कि शहर में भी अलग पहचान बन गई है। कोविड महामारी के समय जब पुलिस कर्मी चौबीसों घंटे काम करते थे और लोग मौतों और अस्पतालों की दौड़ में हताश-निराश हो रहे थे, तब रामसाय अपनी ड्यूटी के दौरान बांसुरी की धुन से लोगों को सुकून देते थे। अब यह उनकी दिनचर्या में शामिल हो गया है। ड्यूटी के दौरान जब भी आराम का समय मिलता है वे बांसुरी लेकर शास्त्रीय व फिल्मी गीतों पर बांसुरी बजाते हैं। सोशल मीडिया पर इनका वीडियो वायरल हो रहा है। अफसर इसे रोक टोक नहीं रहे हैं क्योंकि इसका नतीजा अच्छा ही निकल रहा है। बांसुरी की मिठास से सहकर्मियों तक सकारात्मकता पहुंचती है। रामसाय सशस्त्र बल में हैं। ए के 47 लेकर चलना उनकी ड्यूटी का हिस्सा है पर बांसुरी उनके पास हमेशा होती है।    (rajpathjanpath@gmail.com)


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