राजपथ - जनपथ

राज्य से रॉ के मुखिया तक?
छत्तीसगढ़ कैडर के आईपीएस अफसर रवि सिन्हा देश की सर्वोच्च खुफिया संस्थान रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के चीफ बन सकते हैं। रॉ के चीफ सामंत गोयल 30 जून को रिटायर हो रहे हैं। उनके उत्तराधिकारी के नामों पर मंथन चल रहा है। जिन नामों पर चर्चा हो रही है, उनमें रवि सिन्हा भी हैं।
रवि सिन्हा रॉ में स्पेशल डायरेक्टर के पद पर हैं। रवि सिन्हा दुर्ग, और रायपुर में एडिशनल एसपी रहे हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद कुछ दिन पीएचक्यू में भी पदस्थ रहे। इसके बाद वो केंद्र सरकार में चले गए, और फिर बाद में उनकी रॉ में पोस्टिंग हो गई। रवि सिन्हा केंद्र सरकार में डीजी पद के लिए भी इम्पैनल हो चुके हैं।
सिन्हा जब दुर्ग में एएसपी थे तब वहां अनिल धस्माना एसपी थे, जो कि बाद में रॉ में चले गए, और फिर रॉ के चीफ भी बने। यह भी संयोग है कि धस्माना के मातहत एएसपी के तौर पर काम कर चुके रवि सिन्हा का नाम रॉ के संभावित चीफ के रूप में लिया जा रहा है। हालांकि सिन्हा से ऊपर श्रीधर राव, और शशि भूषण सिंह भी है। नए चीफ को लेकर अगले कुछ महीनों में सारी तस्वीर साफ हो जाएगी। सिन्हा रॉ के चीफ बनते हैं, तो देश के सर्वोच्च खुफिया संस्थान में शीर्ष पद पर पहुंचने वाले छत्तीसगढ़ पुलिस कैडर के पहले अफसर होंगे। इसके पहले रायपुर से नौकरी शुरू करने वाले ऋषि कुमार शुक्ला एम पी के डीजीपी बनने के बाद सीबीआई के डायरेक्टर बन चुके हैं।
छापों के बीच वाह-वाही
ईडी के छापों की खबर सुर्खियां बटोर रही है। इन सबके बीच सीएम भूपेश बघेल ने दीवाली त्योहार को लेकर ऐसा कुछ किया, जिन्हें मीडिया में ज्यादा महत्व तो नहीं मिला, लेकिन लोगों की जुबान पर हंै। सीएम ने शहीदों के परिजनों तक दीवाली का उपहार और शुभकामना संदेश भिजवाया है।
दूर-दराज के इलाकों में सीएम का उपहार लेकर पुलिस के आला अफसर शहीदों के घर पहुंचे। पुलिस के आला अफसरों ने शहीद के परिजनों का कुशलक्षेम पूछा, और उन्हें सीएम का शुभकामना संदेश भी दिया। राज्य बनने से पहले, और बाद में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। यह शहीदों के परिजनों के लिए आश्चर्य, और शहादत पर गर्व का क्षण था। सीएम की इस पहल की खूब चर्चा हो रही है। लोग इस सरकारी पहल की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं।
बहुत कम लोगों को जानकारी है कि पूर्व आईएएस शेखर दत्त जब राज्यपाल थे, तब उन्हीं की पहल पर शहीदों की याद को अक्षुण रखने के लिए वीआईपी रोड पर शहीद वाटिका का निर्माण हुआ था। प्रशासनिक सेवा में आने से पहले सेना के अफसर रह चुके शेखर दत्त शहीद-परिवारों को लेकर काफी संवेदनशील रहे हैं। और तत्कालीन सीएस विवेक ढांड बीजापुर प्रवास के दौरान शहीदों के परिजनों का कुशलक्षेम पूछने उनके घर पहुंचे, तो इसकी जानकारी मिलने पर शेखर दत्त ने उन्हें फोन कर सराहा।
उन्हें नसीहत दी कि जब भी वो जिलों के दौरे पर जाए, तो शहीदों के परिजनों से मेल मुलाकात के लिए समय जरूर निकाले। ढांड ने काफी हद तक इसका पालन भी किया, लेकिन उनके बाद के अफसर तो दौरा करना ही भूल गए। कभी कभार विशेष मौकों पर ही अपने कक्ष से बाहर निकल पाते हैं। और अब जब सीएम के निर्देश पर शहीद-परिवारों की सुध ली जा रही है, तो तारीफ बनती ही है।
छोटे-छोटे बच्चे और सौ-सौ मोबाइल चोरी
राजधानी रायपुर के एसपी प्रशांत अग्रवाल और उनकी टीम ने अभी बहुत से लोगों को उनके गुमे हुए, या चोरी गए मोबाइल फोन लौटाए। पाने वाले लोगों की तस्वीरें बताती हैं कि बड़ी मामूली माली हालत के लोगों को भी उनके फोन वापिस मिले हैं जिन्हें पुलिस दूसरे प्रदेशों से भी ढूंढकर लेकर आई है। आज लोगों की जिंदगी में मोबाइल फोन कोई शान-शौकत नहीं रह गया है, बल्कि वह रोजाना की जरूरत है, और जो जितने गरीब हैं, उनके कामकाज के लिए वह उतना ही अधिक जरूरी है। इसलिए छोटे-छोटे कुछ हजार के मोबाइल भी अपने मालिकों के लिए बहुत मायने रखते हैं।
दो दिन पहले ही रायपुर के तेलीबांधा थाने मेें सुबह-सुबह आठ-दस बरस के एक बच्चे को लाया गया था जिसने दस-बारह मोबाइल चोरी किए थे। नाबालिग बच्चे को कोई सजा नहीं मिल सकती है, उसे अधिक से अधिक सुधारगृह में कुछ समय गुजारना पड़ता है, इसलिए कई लोग बच्चों को इस काम में झोंक देते हैं। थाने की एक महिला अफसर ने बताया कि कुछ वक्त पहले झारखंड के दस-बारह बरस उम्र के दो बच्चों को पकड़ा गया था, जिन्होंने रायपुर में सौ से अधिक मोबाइल चोरी किए थे, और उनके पास से वे सारे मोबाइल बरामद भी हो गए थे। दरअसल इस थाने के इलाके में बहुत सी होटलें हैं, और बहुत से विवाह मंदिर हैं, इसलिए वहां लोगों की भीड़ जुटती है, और वहां चोरी की गुंजाइश निकल आती है। झारखंड के उन बच्चों को भी सोच-समझकर इस काम में झोंका गया था।
लोगों को याद होगा कि हिन्दुस्तान के कुछ शहरों में मोबाइल चोरी करते हुए बच्चे इसी तरह पकड़ाए थे, वे भी झारखंड के थे, और झारखंड के जामताड़ा नाम के गांव में साइबर-ठगी का काम गृहउद्योग की तरह चलता है, वहां पर घर-घर नौजवान बैठे हुए देश भर में फोन करके लोगों को ठगते हैं, उनके बैंक खाते साफ करते हैं, और इस काम के लिए उन्हें अलग-अलग मोबाइल फोन लगते हैं, इसलिए इस घरेलू जरूरत को पूरा करने के लिए झारखंड के बच्चों को देशभर में ले जाकर उनसे वहां चोरी करवाई जा रही है।
सौ कदम आगे चलते ठग
इन दिनों इंटरनेट और टेलीफोन की मेहरबानी से ठगी का कारोबार खूब चलता है। छत्तीसगढ़ में अभी लोगों को टेलीफोन आते हैं कि उनका बिजली बिल का भुगतान बचा हुआ है, और आधी रात उनकी बिजली बंद हो जाएगी, और इसके बाद उन्हें फोन पर भेजे गए किसी लिंक तक जाने को कहा जाता है, और उसके बाद उनके बैंक खाते से रकम ठगों के खाते में चली जाती है। लेकिन सरकारी नाम लेकर ठगने से परे अभी एक नया मामला सामने आया जिसमें लोग इंटरनेट पर ऑर्डर करके किताब खरीद रहे हैं, तो उन्हें वॉट्सऐप पर संदेश आ रहा है कि उनकी किताब पहुंच गई या नहीं? और यह पूछने वाले उन्हें लूटने वाले एक लिंक की तरफ ले जाते हैं। मतलब यह कि अमेजान जैसी निजी कंपनी, या उस पर किताब बेचने वाले लोगों से भी जानकारी निकलकर चोरों और ठगों तक पहुंच रही है। लगातार अपनी सावधानी बढ़ाने के अलावा लोगों के पास बचने का और कोई जरिया नहीं है।
अर्जी वाली दीदी सुधा भारद्वाज
भीमा कोरेगांव मामले में तीन साल तक जेल में रहने के बाद अधिवक्ता व मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज पिछले जनवरी माह में ही जमानत पर बाहर आ चुकी थीं, पर अब जाकर वे पूरी तरह वकालत फिर से शुरू कर पाई हैं। रिहा होने के बाद उन्होंने बिलासपुर में अपनी बेटी से जो दो चीजें लाने के लिए कहीं, उनमें एक था काला कोट, दूसरा वकालत संबंधी दस्तावेज। महंगे मुंबई में ठिकाना मिलना बहुत कठिन था। कई बार बदलना पड़ा। आखिर अंधेरी में एक बेडरूम वाला फ्लैट उन्होंने किराये पर ले लिया है। यरवदा और बायकुला के जेलों में महिला कैदियों के साथ रहने के दौरान उन्होंने पाया कि विचाराधीन बंदियों की बड़ी संख्या है। इनकी कोई परवाह नहीं करता। इनके लिए वे जेल में ही अर्जियां लिखती थीं। महिला बंदी उन्हें अर्जी वाली दीदी के नाम से बुलाया करते हैं। पहला केस उन्होंने इसी जेल की एक महिला कैदी का लड़ा। सुधा भारद्वाज को इस शर्त पर कोर्ट ने जमानत दी है कि उन्हें मुकदमे की सुनवाई तक मुंबई में ही रहना होगा।
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