राजपथ - जनपथ

जंगल में प्रमोशन
आईएफएस अफसर एसएस बजाज को 6 माह का एक्सटेंशन मिल गया है। वो लघु वनोपज संघ में एडिशनल एमडी के पद पर यथावत काम करते रहेंगे। वैसे तो बजाज जून में ही रिटायर हो गए थे, लेकिन उनका एक्सटेंशन ऑर्डर निकलने में विलंब हुआ। बजाज पीसीसीएफ हैं, और एडिशनल एमडी के पद को पीसीसीएफ के समकक्ष घोषित किया गया।
बजाज को एक्सटेंशन मिलने से जयसिंह मस्के पीसीसीएफ बनने से रह गए। वो अब सितंबर में हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स राकेश चतुर्वेदी के रिटायर होने के बाद ही पीसीसीएफ हो पाएंगे। चतुर्वेदी के रिटायर होने के बाद वन विभाग में एक बड़ा फेरबदल होगा। ऐसे में पीसीसीएफ स्तर के तमाम अफसरों को इधर से उधर किया जा सकता है। फिर भी पीसीसीएफ (प्रशासन) कौन होगा, इसको लेकर ही अभी अटकलें लगाई जा रही है। चर्चा है कि जो भी प्रशासन संभालेगा, उनका चुनावी अंकगणित में फिट बैठना जरूरी है। देखना है आगे क्या होता है।
पहली बार तिरंगा देखने वाले लोग...
बस्तर के कई इलाके ऐसे हैं जहां राष्ट्रीय पर्वों पर तिरंगा नहीं फहराया जाता। माओवादी इन स्थानों पर काला झंडा फहराकर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस का विरोध करते हैं। छह साल पहले सन् 2016 में सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी ने ऐसे इलाकों में पहुंचने के लिए दंतेवाड़ा से गोमपाड़ तक करीब 180 किलोमीटर की तिरंगा यात्रा की थी। उन्होंने तब के आईजीपी एसआरपी कल्लुरी को चुनौती दी थी कि वे आदिवासियों के हिमायती हैं तो गोमपाड़ पहुंचकर तिरंगा फहरायें। सोरी ने यात्रा के दौरान जगह-जगह कहा कि ऐसा ठीक नहीं कि आप सोनी सोरी का समर्थन करें और तिरंगा फहराने से मना करें। उनकी तिरंगा यात्रा पहले रोकने की कोशिश की गई, फिर उनकी यात्रा को सुरक्षा मुहैया कराई गई, जो उन्होंने मांगी नहीं थी। आजादी के 75 साल होने के बावजूद बस्तर के अनेक गांव अब भी तिरंगे से अछूते हैं। इस बार हर घर तिरंगा का अभियान चलाया जा रहा है। शहर, शांत इलाकों में तिरंगा बांटना और फहराना तो आसान है पर क्या इस अभियान का हिस्सा बस्तर के इन दूर-दराजों के लोग बनेंगे? बस्तर में तैनात सीआरपीएफ ने यह बीड़ा इस बार उठाया है। वे धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में घुस रहे हैं। ग्रामीणों की छोटी-छोटी सभाएं ले रहे हैं। तिरंगा और आजादी के महत्व पर उनसे बात कर रहे हैं और तिरंगा भी बांट रहे हैं। 14 अगस्त तक यह लक्ष्य रखा गया था कि कम से कम ऐसे गांवों तक तो पहुंचा जाए, जो थानों और कैंप से 8-10 किलोमीटर के दायरे में हैं। ये जवान अपना अनुभव बता रहे हैं कि कई गांवों में तो लोगों ने पहली बार तिरंगा देखा। वे यह भी नहीं जानते थे कि तिरंगा क्या है। ग्रामीण इसे पाकर खुश भी हुए और इसे अपने घरों में तुरंत फहराने के लिए भी तैयार हो गए।
अध्यक्ष और पुनिया का बयान
कांग्रेस में संगठन चुनाव चल रहा है। इस कड़ी में प्रदेश अध्यक्ष का औपचारिक निर्वाचन अक्टूबर में होगा। चुनाव से पहले ही प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया के उस बयान की काफी चर्चा हो रही है, जिसमें उन्होंने कह दिया कि प्रदेश अध्यक्ष नहीं बदले जाएंगे। पुनिया के बयान से मोहन मरकाम के विरोधियों को झटका लगा है, जो यह मानकर चल रहे थे कि मरकाम की जगह नए अध्यक्ष की नियुक्ति हो सकती है। हालांकि विरोधियों ने अभी आस नहीं छोड़ी है। लेकिन मरकाम-समर्थक तो राहत की सांस ले रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।