राजनांदगांव
राजनांदगांव, 2 मार्च। श्रीमद भागवत महापुराण का रस के पृथ्वी में ही है, यह बैंकुठ व कैलाशपुरी में भी उपलब्ध नही है, तभी देवता भी पृथ्वी में आकर अवतार लेने लालायित हुए। वेदरूपी पका हुआ फल श्रीमद भागवत हैं, यह फल शुक द्वारा चखा हुआ है, जिस प्रकार वृक्ष में लगे फल की मिठास पक्षी के चखने से होती है, उसी प्रकार श्रीमद भागवत शुक द्वारा चखा हुआ है। भागवत के परिपक्व फल के रस का पान तब तक करें, जब तक देह का लय नहीं हो जाता। कुछ फल के छिलके त्याज्य हैं अर्थात कुछ बातें ग्रहण योग्य हैं और कुछ त्याज्य हैं। उक्त उदगार श्री अग्रसेन भवन में आयोजित श्रीमदभागवत महापुराण कथा के दूसरे दिन व्यासपीठ पर विराजित भगवताचार्य पंडित अर्पित शर्मा ने सभागृह में व्यक्त किया। पं. शर्मा ने कहा कि जब जन्म जन्मांतर के पुण्य फलों का उदय होता है, तब भागवत रस रूपी वेद श्रवण करने का अवसर मनुष्य को प्राप्त होता है।
मन लगाकर कथा श्रवण करने से ही कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा।


