राजनांदगांव
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 2 फरवरी। बसंतपुर क्षेत्र के भवानी नगर में इन दिनों पं. विनोद बिहारी गोस्वामी के श्रीमुख से श्रीमद देवी भागवत महापुराण कथा की ज्ञान गंगा निसृत हो रही है। शनिवार की कथा में पं. गोस्वामी ने महाभारत युद्ध के बाद की कथा बताते कहा कि जन्मेजय जब नाग यज्ञ कर रहे थे, तब नाग सर्पों को बचाने का कार्य आस्तिक मुनि ने किया। उस दिन से नाग सर्पादि ने आस्तिक मुनि का नाम लेने वालों पर हमला नहीं करने का प्रण लिया।
गोस्वामी ने कश्यप ऋषि और उनकी तेरह रानियां में से एक कद्रू और विनिता के संबंध में कथा बताई। कद्रू नागों की माता थी और विनिता गरुड़ की माता थी। दोनों में नहीं पटने पर घोड़े के रंग को लेकर बहस हुई और कद्रू ने अपने नाग पुत्रों को सफेद घोड़े में लिपट जाने कहकर उसे काला रंग का साबित कर दिया और शर्त के अनुसार विनिता के हार जाने पर उसे अपनी दासी बना ली।
बाद में विनिता के पुत्रों को पता चलने पर इंद्र के साथ युद्ध कर के अमृत कलश लाकर अपनी विमाता कद्रू को दासता से छुड़ाया। इससे गरुड़ की माता विनिता दासता से मुक्त हो गई, लेकिन अमृत कलश को चटाई में रखे जाने से इंद्र कुपित होकर उसे उठा ले गया। इस हड़बड़ाहट में स्वर्ग ले जाते समय कलश से अमृत की बुंदे धरती के जिन स्थानों पर गिरी उन स्थानों पर हर बारह साल में कुंभ का मेला भरता है। गोस्वामी ने कथा की शुरूआत जरत्सुथ से करते बताया कि उनके पूर्वज पेड़ से उल्टा लटके हुए थे। उनकी मुक्ति के लिए विवाह कर संतानोंत्पत्ति कहे जाने पर जरत्सुथ का विवाह जरत्सुथ नामक कन्या से हुआ। जिसके ही पुत्र आस्तिक मुनि है।
कथा श्रवण के लिए पहुंची समाजसेवी कुसुम रायचा व अर्चना दास ने गोस्वामी को शाल ओढ़ाकर तथा फल-फूल र्पण सहित गजमोतिन माल्य पहनाकर स्वागत किया। इस अवसर पर यजमान के रूप में शारदा तिवारी, विद्या पांडे, अरविंद मिश्रा, रचना मिश्रा के अलावा समाजसेवी किरण अग्रवाल, मंजू श्रीवास्तव, टीना यादव, जानकी गुप्ता, ममता, सरिता सोनी आदि उपस्थित थे।


