रायपुर

रायपुर, 24 जुलाई। दादाबाड़ी में चल रहे आत्मोत्थान चातुर्मास प्रवचन में गुरुवार को साध्वी हंसकीर्ति ने कहा कि यह संसार ऐसा है कि कोई आपकी मदद एक-दो बार कर सकता है, कुछ पल साथ दे सकता है, लेकिन बार-बार सहायता करने कोई नहीं आता। बिना स्वार्थ के कोई आपको एक गिलास पानी भी नहीं पिलाने वाला। जब शरीर स्वस्थ होता है तो धर्म या आत्मचिंतन की ओर मन नहीं जाता, लेकिन जब बीमार होते हैं तो धर्म की याद आती है, पर तब शरीर साथ नहीं देता और असहायता महसूस होती है।
साध्वीजी एक प्रसंग सुनाती हैं—एक संत रास्ते से गुजरते हुए एक भीड़ देखते हैं। जिज्ञासावश वह वहां पहुंचते हैं तो पाते हैं कि एक घायल बच्चा वहां बैठा है, शरीर घावों से भरा है।
उसके पास एक तख्ती रखी है, जिस पर लिखा है—मेरी आवाज नहीं है, मेरी जीभ कटी है, कृपया सहायता करें। और पास ही एक बर्तन रखा है जिसमें लोग पैसे डाल रहे हैं। सभी लोग दया प्रकट करते हुए कहते हैं कि ऐसी हालत दुश्मन के बच्चे की भी न हो। कोई-कोई तो यह तक कह देता है कि भगवान इसे उठा ही लेते, इतनी पीड़ा क्यों दी? लेकिन साध्वीजी समझाती हैं कि ऐसा कहना भारी पाप है। किसी के लिए भी ऐसा नहीं सोचना चाहिए।