रायपुर

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 11 जुलाई। दादाबाड़ी में आत्मोत्थान चातुर्मास 2025 के अंतर्गत चल रहे प्रवचन श्रृंखला के दौरान शुक्रवार को परम पूज्य श्री हंसकीर्ति श्रीजी म.सा. ने कहा कि आज के समय में हम शरीर की देखभाल पर तो पूरा ध्यान देते हैं लेकिन आत्मा की चिंता करना भूल जाते हैं। शरीर को पुष्ट करने के लिए दिनभर मेहनत करते हैं, पौष्टिक आहार देते हैं, और जब मैल जम जाए तो साबुन से धो भी देते हैं। लेकिन जिस उद्देश्य से यह शरीर मिला है, उसकी ओर ध्यान नहीं देते। जब तक शरीर स्वस्थ है, प्रभु की आराधना कर लेनी चाहिए।
साध्वीजी कहती हैं कि अगर आप अस्पताल में भर्ती हो जाएं और शरीर में जगह-जगह पाइप लगे हों, उस हालत में कोई आपको धार्मिक ग्रंथ पढक़र सुनाए तो वह मन को अच्छा नहीं लगेगा, क्योंकि आपने कभी सत्संग सुना ही नहीं। इसीलिए जीवन में धर्म और संस्कारों की नींव बचपन से ही डालनी चाहिए।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि आपने गन्ना रस निकालने वाली मशीन देखी होगी – उसमें गन्ना डालने पर एक ओर सूखा भाग निकलता है और दूसरी ओर रस की धार। लेकिन रस पूरी तरह निकालने के लिए गन्ने को बार-बार मशीन में डाला जाता है, ताकि एक-एक बूंद भी व्यर्थ न जाए। गन्ने का सूखा भाग भी बेकार नहीं जाता, उसे पेपर बनाने वाली कंपनियों को दे दिया जाता है। ठीक वैसे ही जीवन का एक-एक पल मूल्यवान है, उसका सार्थक उपयोग होना चाहिए।
एक प्रेरक प्रसंग बताते हुए उन्होंने कहा – एक युवक बहुत तेजी से जा रहा था, रास्ते में एक साधु ने पूछा कि इतनी जल्दी कहां जा रहे हो? युवक ने जवाब दिया – बीमा कराने, ताकि समय रहते कर लूं तो फायदा होगा। साधु ने पूछा – क्या धर्म करते हो? युवक ने कहा – धर्म तो बुढ़ापे में होता है, अभी बहुत समय है। इस पर साधु ने कहा कि ये सोच ही सबसे बड़ी भूल है।