रायपुर

कंकाली मंदिर के शस्त्र राम-रावण युद्ध के दौरान प्रकट हुए थे
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 30 सितंबर। पुरानी बस्ती के पास कंकालीपारा में मां कंकाली अष्ठभुजा रूप में तालाब के किनारे विराजमान है। कहा जाता है की इस मंदिर में मां कंकाली की स्थापना नागा बाबा साधुओं ने 4 सौ साल पहले की थी। श्मशान घाट पर बने इस मंदिर में अस्त्र और शस्त्र के दर्शन भी होते हैं, लेकिन साल में सिर्फ एक बार ही मुख्य मंदिर में दशहरा को शस्त्रागार का पट खोला जाता है। मान्यता राम-रावण के युद्ध के दौरान भगवान राम के अराधना से प्रगट होकर सेना को अस्त्रों-शस्त्रों से सुसज्जित किया था।
शहर की पुरानी बस्ती क्षेत्र में स्थित मां कंकाली मंदिर का इतिहास सबसे अलग और पुराना है। कंकाली मंदिर का शस्त्रागार साल में केवल एक ही दशहरा की सुबह खुलता है। फिर शाम ढलते ही शस्त्रागार पूरे एक साल के लिए बंद हो जाता है। इस दौरान दर्शनार्थियों की भारी भीड़ लगती है। लोग माता के सामने माथा टेकते हैं और पुराने अस्त्र-शस्त्र के दर्शन करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि जब भगवान राम और रावण का युद्ध हो रहा था तब देवी युद्ध के मैदान में प्रकट हुई थीं और श्रीराम को अस्त्रों व शस्त्रों से सुसज्जित किया था। इसी मान्यता के चलते शस्त्रागार का महत्व है और लोग इसके दर्शन मात्र के लिए दूर-दूर से आते हैं। ये शस्त्रागार केवल दशहरा के दिन खुलता है क्योंकि इसी दिन राम ने रावण का वध किया था।
कहा जाता है कि महंत कृपाल गिरी को स्वप्न में देवी मां ने दर्शन दिए और उनकी मूर्ति स्थापित करने की बात कही, लेकिन उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया। इसके बाद जब बार-बार स्वप्न में देवी आईं तो उन्हें अपनी भुल का अहसास हुआ और पुरानी बस्ती स्थित तत्कालीन श्मशान घाट की खोदाई कराई गई।
खोदाई के दौरान तालाब से मां कंकाली की मूर्ति निकली, वहीं इतने ज्यादा शस्त्र और अस्त्र और कंकाल निकले थे। जिसके नाम से यहां विराजी माता को कंकाली के नाम से जाना गया। तालाब मां कंकाली के मंदिर के ठीक सामने ही स्थित है। इसमें लोग पूजन के साथ ही स्नान आदि कर पुण्य कमाते हैं। वहीं खुदाई में निकले शस्त्र और अस्त्र अब मंदिर के ही शस्त्रागार की शोभा हैं। मां कंकाली मंदिर का निर्माण शमशानघाट पर हुआ है। नागा साधुओं के तांत्रिक साधना केंद्र के रूप में इसकी ख्याति रही है। नागा साधुओं की समाधि इसी के आसपास है। महंत कृपाल गिरि ने कंकाली मंदिर का निर्माण करवाया था। सत्रहवीं सदी में अर्थात रायपुर नगर की स्थापना से पूर्व इसे निर्मित माना जाता है।
मंदिर के भीतर नागा साधुओं के कमंडल, वस्त्र, चिमटा, त्रिशूल, ढाल, कुल्हाड़ी आदि रखे हुए है। शस्त्रों का पूजन इसी दिन होता है। कहते हैं कि महंत कृपाल गिरी स्वप्न की उपेक्षा करने से इतने आहत हुए कि उन्होंने मंदिर निर्माण के बाद वहीं समाधि ले ली।
पुरानी बस्ती स्थित महामाया, दंतेश्वरी, समलेश्वरी, ग्रामदेवी शीतला मंदिरों में शुक्रवार को पंचमी के दिन पंच रंग श्रृंगार सभी देवियों का किया गया है। शाम रात्रि को वर्षा की आशंका से श्रद्धालुओं का सैलाब दर्शन के लिए उमड़ा मंदिरों में लंबी लाइन महिलाओं की संख्या सर्वाधिक है। महामाया मंदिर के न्यासी पं विजय कुमार झा ने सभी भक्तजनों की मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना मां भगवती से आज पंचमी के पंचरंग श्रृंगार उपरांत की है।
पंचमी से दशहरा तक होती है विशेष पूजा
कंकाली मंदिर में नवरात्र पंचमी से अष्ठभुजी मां की अस्त्र-सस्त्र के साथ होता है पूजा। मंदिर से जुड़ी कई मान्यता है आज भी होती है यहां आने वाले भक्तों की मनोंकामना पूरी। कंकाली मंदिर के नौवे पीढ़ी के पूजारी आशीष शर्मा ने बताया की मंदिर का निर्माण सत्रहवीं सदी का माना जाता है। रायपुर का पुराना काली मंदिर जो आज के समय में ब्राम्हण पारा में है जंहा मां काली की पूजा में बली की प्रथा प्रचलित थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार तालाब खुदाई के दौरान माता की मूर्ति के साथ अस्त्र-सस्त्र और असंख्य कंकाल निकाला गया। माता की मूर्ति को तालाब से बाहर निकालने नर बली दी गई तब जाकर माता तालाब से निकलकर मंदिर प्रंागण में स्थापित किया गया। तब से लेकर आज तक माता अपने भक्तों की मनोंकामनाएं पूरी करती है। देश ही नहीं विदेशों में भी माता के चमत्कार को मानते है लोंग। हर नवरात्र आस्ट्रेलिया,अमेरीका,जापान और अन्य देशों के भक्त माता का दर्शन और मनोंकामना ज्योति जलाते हैं।