रायपुर

मन में शांति नहीं तो छप्पन भोग भी फीके-राष्ट्र संत ललितप्रभ जी
17-Sep-2022 3:29 PM
मन में शांति नहीं तो छप्पन भोग भी फीके-राष्ट्र संत ललितप्रभ जी

रायपुर 17 सितंबर। राष्ट्र-संत महोपाध्याय ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि मन की शांति जीवन की सबसे बड़ी दौलत है। जिसके पास मन की शांति है समझो वह दुनिया का सबसे अमीर आदमी है। अगर मन में शांति है तो लुक्खी रोटी भी अच्छी लगती है और मन में शांति नहीं तो छप्पन भोग भी फीके लगते हैं।

उन्होंने कहा कि शांति चाहिए तो शांत रहने का फैसला लीजिए और अपने इस फैसले पर हर हाल में अडिग रहिए। हम जितना महत्त्व पत्नी, पैसे और बच्चों को देते हैं अगर उतना ही महत्त्व मन की शांति को देना शुरू कर देंगे तो  शांति पाने में अवश्य सफल हो जाएँगे।

सफलता पाने का सूत्र है जिसे पसंद करते हो उसे हर हाल में हासिल करो और शांति पाने का सूत्र है जो हासिल है उसे पसंद करना शुरू करो। संतप्रवर श्री मेघराज बेगानी धार्मिक एवं परमार्थिक ट्रस्ट द्वारा न्यू राजेंद्र नगर स्थित जैन मंदिर में आयोजित प्रवचन माला के समापन पर श्रद्धालुओं को जीने की कला सिखाते हुए संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि जब कोई मर जाता है तो उसकी श्रद्धांजली सभा आयोजित होती है और उसमें कोई भी व्यक्ति श्रद्धांजली देते हुए यह नहीं कहता कि भगवान उसे परलोक में अच्छी पत्नी दे, अच्छा बंगला दे, अच्छी सम्पत्ति दे, सब यही कहते हैं कि भगवान उसकी आत्मा को शांति दे क्योंकि उसने दुनिया में सब कुछ प्राप्त कर लिया था, पर मन की शांति प्राप्त न कर पाया।

उन्होंने कहा कि हम ऐसा जीवन जीकर जाएँ कि हमारे मरने के बाद लोगों को हमारी सद्गति और आत्मशांति की प्रार्थना न करनी पड़े वरन् हम खुद जीते जी सद्गति और आत्म शांति की व्यवस्था करके जाएँ।
न सुख में डूबें न दुख से घबराएँ-संतप्रवर ने कहा कि सांसारिक सुखों से इंसान को न शांति मिलती है न तृप्ति। आज तक न कोई पैसे से तृप्त हो पाया न पत्नी से। अगर सत्ता, सम्पत्ति के राग-रंग में शांति मिलती तो महावीर और बुद्ध जैसे लोग राजमहलों को छोडक़र क्यों जंगलों में जाते। जब लौकिक सुखों में तृप्ति नहीं है तो फिर इनमें डूबकर मन की शांति को क्यों दाँव पर लगाया जाए। उन्होंने दुखों से न घबराने की सीख देते हुए कहा कि सीता लक्ष्मी का अवतार, भगवान राम की पत्नी और रघुकुल की महारानी थी, फिर भी जन्म लेने के लिए माँ की कोख न मिली, शादी करके अयोध्या पहुँची तो थोड़े दिनों बाद वनवास जाना पड़ा, वनवास में रावण उठा ले गया, वापस आई तो अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ा, धोबीड़े ने उंगली उठाई तो फिर जंगल जाना पड़ा, अपने बच्चों को जन्म देने के लिए किसी ऋषि की शरण लेनी पड़ी, बच्चों के पालन-पोषण करने के लिए कठोर मेहनत करनी पड़ी और अंत में वापस अयोध्या आई तो धरती माँ की गोद में समाना पड़ा। जब सीता के साथ ऐसा हो सकता है तो हम तो है ही किस बाग की मूली। उन्होंने श्रीकृष्ण के जीवन से सीखने की प्रेरणा देते हुए कहा कि कृष्ण जब पैदा हुए तब कोई थाली बजाने वाला न था और जब वे मरे तब कोई रोने वाला न था फिर भी वे जिंदगी भर हँसते-मुस्कुराते हुए जीएँ। हम भी जीवन में चाहे जैसी परिस्थिति आए, हर हाल में खुश, प्रसन्न और शांत रहें इसी में हमारे जीवन की जीत है।


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