रायगढ़

रायगढ़ में जमीन घोटाला : ढाई एकड़ नजूलभूमि सांठगांठ कर बेच दी
11-Feb-2025 2:53 PM
रायगढ़ में जमीन घोटाला : ढाई एकड़ नजूलभूमि  सांठगांठ कर बेच दी

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

रायगढ़ / रायपुर, 10 फरवरी। रायगढ के  ग्राम छोटे अतरमुडा  स्थित शासकीय भूमि को सांठगांठ कर अवैध रूप से  एक निजी परिवार के नाम दर्ज करने का मामला सामने आया है । इसके लिए  गलत प्रतिवेदन पर अवैध रूप से शासकीय भूमि बेच दी गई है । इस मामले की शिकायत, कलेक्टर के साथ साथ राज्यपाल, भू- राजस्व मंत्री और राजस्व सचिव से भी की गई है।

इसमें कहा गया कि ग्राम छोटे अतरमुडा तहसील व जिला रायगढ नगर निगम क्षेत्र के भीतर खसरा नम्बर-3 रकबा 2.46 एकड भूमि स्थित है जो सन 1950-51 से शासकीय नजूल भूमि के रूप में दर्ज है। उक्त भूमि के संबंध में बहादुर सिंह आ0 स्व0 जगमोहन सिंह राजपूत निवासी छोटे अतरमुडा रायगढ के द्वारा एक व्यवहार वाद कमाक- 67-अ/2002 वहादुर सिंह विरुद्ध छ0ग0 राज्य वगैरह के रूप में प्रस्तुत किया गया था। इसमें प्रतिवादी के रूप में अध्यक्ष केलो विहार शासकीय कर्मचारी गृह निर्माण संस्था रायगढ़ एवं संस्था के सदस्य कीर्ति चन्द्र आचार्य, ज्वाला प्रसाद पटेल, राजेन्द्रकुमार पण्डा महेन्द्र सिंह ठाकुर राजेश कुमार पण्डा, जोगेश्वर प्रधान श्रीमती प्यारी गुप्ता एवं श्रीमती शैल गुप्ता भी प्रतिवादी के रूप में पक्षकार थी। उक्त व्यवहार वाद का निर्णय 25 सितंबर 23 को पारित किया गया है । बहादुर सिंह के द्वारा प्रस्तुत वाद निरस्त कर दिया गया है।

 इसके उपरान्त तहसीलदार  लोमश मिरी के समक्ष नामान्तरण के लिए एक आवेदन पत्र प्रस्तुत किया गया था और व्यवहार वाद कमाक- 67-अ/2002 में पारित निर्णय एवं डिकी  25 सितंबर 23 के निर्णय को छुपाते हुए पूर्व में  पारित एकपक्षीय निर्णय 26 अप्रैल 02 के आधार पर नामान्तरण आवेदन पत्र प्रस्तुत किया गया था।  सक्षम न्यायालय के द्वारा बहादुर सिंह के वाद को खारिज किये जाने के उपरान्त भी  निरस्त आदेश के आधार पर शासकीय भूमि पर बहादुर सिंन्द का नाम दर्ज करने का आदेश  14 जून 24 को पारित कर दिया गया है।

 तहसीलदार के इस आदेश के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि पटवारी के द्वारा जानबुझ कर नजूल भूमि पर बहादुर सिंह का नाम दर्ज कराये जाने का प्रतिवेदन दिया ।इतना ही नहीं सिविल न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत व्यवहार वाद कमाक-67-ए/2002 निर्णय एवं डिक्री  25 सितंबर 23 में तत्कालीन नजूल अधिकारी रमेश कुमार गोर जो कि वर्तमान में घरघोडा तहसील में अनुविभागीय अधिकारी के पद पर पदस्थ है का बयान भी दर्ज हुआ है। इससे यह स्पष्ट है कि रायगढ़ तहसील के सभी पटवारी और राजस्व निरीक्षकों को उक्त प्रकरण एवं पारित निर्णय आदेश 25 की जानकारी थी।

 आरोप है कि बहादुर सिंह की मृत्यु 25 जुलाई 24 में होने के बाद आनन-फानन में बहादुर के उत्तराधिकारी समुन्द बाई माधुरी, राजेन्द्र सन्तोषी शंकर सिंह पूर्णिमा सिंह, सरस्वती सिंह एवं अंकिता राजपूत के नाम से 13 अगस्त 2024 को फौती दर्ज किया गया है और उसके तत्काल उपरान्त उक्त शासकीय भूमि को बहादुर सिंह के उत्तराधिकारी के द्वारा पटवारी तहसीलदार से सांठगांठ करते हुए मनीष कुमार देवांगन आ0 हरिलाल देवांगन निवासी कोष्टापारा पैलेश रोड रायगढ के पक्ष में 3,70,00,000/- रूपये (तीन करोड सत्तर लाख रूपये) की राशि प्राप्त कर अगस्त 24 में पंजीकृत विक्रय पत्र निष्पादित कर दिया गया है एवं उक्त मनीष देवांगन के द्वारा वर्तमान में नामान्तरण हेतु तहसीलदार रायगढ के समक्ष आवेदन पत्र प्रस्तुत किया गया है। यह कि तहसीलदार के द्वारा बहादूर सिंह की ओर से प्रस्तुत नामान्तरण प्रकरण में व्यवहार वाद 67-31/2002 के निर्णय  25. 09.2023 का कोई उल्लेख नहीं किया है जबकि सम्पूर्ण वाद निरस्त हो चुका है एवं तहसीलदार के द्वारा सांठ गांठ करने के फलस्वरूप वाद के साक्ष्य विवेचन में जिन तथ्यो का उल्लेख किया है उसको आधार मानते हुए नामान्तरण का आदेश दिया है।

जबकि बहादूर सिंह ओर से पवत्व की उदघोषणा और स्थायी निषेधाज्ञा का दावा प्रस्तुत किया गया था और उसका दावा सम्पूर्ण रूप से निरस्त कर दिया गया है और किसी भी प्रकार से स्वत्याधिकारी और स्थायी निषेधाज्ञा का अनुतोष पाने की पात्रता नहीं पाया है किसी भी सिविल वाद के अंतिम निर्णय का सार डिकी ही होता है और साक्ष्य विवेचना को निष्कर्ष नहीं माना जा सकता और वाद निरस्त हो गया है इस कारण से तहसीलदार और पटवारी का मिलीभगत कर बहादुर सिंह के नाम से अवैधानिक रूप से नामान्तरण आदेश पारित किया है जबकि किसी सिविल के निष्कर्ष पर निर्णय देने का कोई अधिकार राजस्व न्यायालय को नहीं है यह भी उल्लेखनीय है कि बहादुर सिंह की ओर से वाद निरस्त होने के विरूद्ध कोई अपील नहीं किया है इस कारण उक्त व्यवहार वाद के आधार पर कोई भी अनुतोष पाने की पाने की पात्रता नहीं रखता है।

यह भी उल्लेखनीय है कि पूर्व में बहादुर सिंह के पूर्वजों के नाम से भूमि थी किन्तु उनके द्वारा मध्य प्रदेश स्वमित्व अधिकारों एवं मालिकाना हक के अन्त करने के अधिनियम 1980 के अनुसार खसरा नम्बर- 3 रकबा 2.46 एकड भूमि निस्तारी हेतु सरकार के पक्ष में गर्ज किया गया था और उपरोक्त प्रकरण की सम्पूर्ण कार्यवाहियों में बहादुर सिंह के पिता जगमोहन सिंह की उपस्थिति दर्ज है और उक्त कार्यवाहियों को बहादुर सिंह के पिता के द्वारा कहीं भी चुनौती नहीं दी गई है। इस कारण से शासन में गर्ज होने के उपरान्त पुन: मालिकाना हक के दावे को अवधि बाहय मानते हुए सिविल न्यायालय के द्वारा अंतिम रूप से  25. 09.2023 को सम्पूर्ण दावा को निरस्त कर दिया गया है।

यह भी उल्लेखनीय है कि शासन के पक्ष में स्वेच्छा से बहादुर सिंह के पूर्वजों के द्वारा जमीन समर्पित किया गया है और उक्त भूमि पर पुन: अवैध रूप से बिना किसी हक अधिकार के नाम दर्ज करा लिया गया है इस कारण से नामान्तरण आदेश  14 जून 24 को स्वत: संज्ञान लेते हुए नामान्तरण को निरस्त करने का आदेश पारित किया जाना चाहिए ।

यह भी उल्लेखनीय है कि उक्त सिविल वाद में केलो बिहार शासकीय गृह निर्माण सहकारी समिति और सिविल वाद में अन्य उल्लेखित आठ पक्षकारों को राजस्व न्यायालय में पक्षकार भी नहीं बनाया है और केलोविहार शासकीय गृह निर्माण समिति के पीठ पीछे उन्हें आबंटित भूमि पर राजस्व अधिकारियों से सांठगांठ कर अवैधानिक रूप से विक्रय कर शासन को करोडों रूपयों की क्षति हो रही है।

 उक्त भूमि सन 1991-92 से कैलो विहार शासकीय गृह निर्माण समिति मर्यादित रायगढ को आबंटित कर दिया गया है।यह कि उक्त परिस्थितियों में संबंधित तहसीलदार सिंह वैधानिक उत्तराधिकारी समुन्द बाई माधुरी सिंह पटवारी एवं बहादुर राजेन्द्र सिंह, सन्तोषी सिंह, शंकर सिंह, पूर्णिमा सिंह सरस्वती सिंह एवं अंकिता सिंह सभी निवासी छोटे अतरमुढा  एवं मनीष देवांगन के विरूद्ध एफ.आई.आर.  विभागीय जांच से एक बड़े जमीन घोटाले का खुलासा होगा।


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