महासमुन्द

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
पिथौरा, 2 अक्टूबर। स्थानीय वन परिक्षेत्र के तहत एन एच 53 पर स्थित ग्राम लोहरिन डोंगरी के समीप जंगल काटकर अब वहां कब्जा करने की तैयारी कर ली गई है।
ज्ञात हो कि उक्त जंगल की कटाई एवं इससे लगी राजस्व भूमि पर अतिक्रमण की खबर ‘छत्तीसगढ़’ में प्रकाशित की गई थी, परन्तु उक्त अवैध कटाई में वन विभाग की चुप्पी रहस्यमय हो गई है।
राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे की बेशकीमती राजस्व एवं वन भूमि पर नजरें लगी है। पहले लोहरिन डोंगरी के जंगल का हाइवे से लगा हिस्सा पेड़ पौधों से मुक्त करने के बाद अब उस खाली भूमि पर एक तालपत्री लगा कर कब्जा कर लिया गया है।
ज्ञात हो कि उक्त जंगल की अवैध कटाई के दौरान ‘छत्तीसगढ़’ ने इसे प्रमुखता से उठाया था। जंगल काटने से बचाने वाले जिम्मेदार अफसर एवं जनप्रतिनिधि खुद ही इस जंगल को काट कर ग्रामीणों की आस्था का एक मंदिर बनाने की अनुशंसा कर चुके हंै, जिससे ग्रामीण अपने बुलंद हौसलों के साथ उक्त जंगल काट कर अब वहां एक तालपत्री बांध कर अवैध कब्जे की शुरुआत कर दी है।
बार के विस्थापितों को बसाया जाना चाहिए
लोहरिन डोंगरी के समीप जिस स्थान पर वन भूमि के पेड़ पौधे काटे गए हैं, वहां सैकड़ों एकड़ वन भूमि है। यह माना जा रहा है कि आगामी कुछ ही वर्षों में काटे गए स्थान की तरह सैकड़ों एकड़ वन भूमि पर ग्रामीणों का कब्जा होगा।
जानकारों का मानना है कि बसे बसाए ग्रामीणों को कब्जा करने की छूट देने की बजाय बार अभ्यारण्य के एक ग्राम को उस स्थान पर बसाया जा सकता है, जिससे पर्यावरण की एक स्थान पर क्षति होगी तो उसकी पूर्ति अभ्यारण्य से विस्थापित ग्राम के स्थान पर जंगल बनने से हो सकेगी।
ग्रामीणों को समझाया गया है- प्रभारी रेंजर
इधर स्थानीय वन परिक्षेत्र के प्रभारी रेंजर टी आर सिन्हा ने बताया कि लोहरिन डोंगरी मामले में उच्च स्तर के जनप्रतिनिधि उन्हें समर्थन कर रहे हैं। वन विभाग के नियमों के तहत ग्रामीण आस्था के लिए भूमि दी जा सकती है।जिसका अधिकार डीएफओ को है। वैसे उन्होंने ग्रामीणों से अस्थायी कब्जा हटाने का निर्देश दिया है।