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भारत में आग के छल्ले जैसा दिखेगा सूरज?
20-Jun-2020 2:31 PM
भारत में आग के छल्ले जैसा दिखेगा सूरज?

प्रतीकात्मक तस्वीर


नई दिल्ली, 20 जून। देश के कुछ हिस्सों में ये वलयाकार दिखेगा, जहां खगोल विज्ञान में दिलचस्पी रखने वाले लोग रिंग ऑफ फायर या आग के छल्ले का दीदार कर पाएंगे। हालांकि, देश के ज्यादातर हिस्सों में सूर्य ग्रहण आंशिक ही दिखेगा।
सूर्यग्रहण कब दिखेगा?
समाचार एजेंसी पीटीआई ने कोलकाता स्थित एमपी बिरला तारामंडल के निदेशक देबी प्रसाद द्वारी के हवाले से बताया कि सूर्य ग्रहण की शुरुआत राजस्थान के घरसाणा में सुबह 10.12 मिनट पर होगी और ये 11.49 बजे से वलयाकार दिखना शुरू होगा और 11.50 बजे खत्म हो जाएगा।
राजस्थान के सूरतगढ़ और अनूपगढ़, हरियाणा के सिरसा, रतिया और कुरुक्षेत्र, उत्तराखंड के देहरादून, चंबा, चमोली और जोशीमठ जैसी जगहों पर ये आग का छल्ला एक मिनट के लिए दिखेगा।
हालांकि पिछले साल 26 दिसंबर की तरह, इस बार ये आग का छल्ला उतनी प्रमुखता से नहीं दिखेगा। देबी प्रसाद द्वारी का कहना है कि इस बार का रिंग ऑफ फायर थोड़ा संकरा होगा। उन्होंने बताया, वलयाकार सूर्य ग्रहण तब होता है जब सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक सीधी रेखा में आते हैं।
असल में यह खगोलीय घटना चंद्रमा के सूरज और धरती के बीच आ जाने के कारण होती है और कुछ समय के लिए एक विशेष इलाके में अंधेरा छा जाता है। रविवार का सूर्य ग्रहण इसलिए भी खास है क्योंकि इस दौरान सूर्य रिंग ऑफ फायर की तरह दिखेगा। 
देश के ज्यादातर हिस्सों में लोग आंशिक सूर्य ग्रहण ही देख पाएंगे। कोलकाता में आंशिक सूर्य ग्रहण की शुरुआत सुबह 10.46 बजे होगी और ये 2.17 बजे खत्म हो जाएगा। दिल्ली में इसकी शुरुआत सुबह 10.20 बजे होगी और ये 1.48 बजे खत्म हो जाएगा। मुंबई में इसका समय सुबह 10 बजे से दोपहर 1.27 बजे तक है। चेन्नई में 10.22 बजे से 1.41 बजे तक और बेंगलुरु में 10.13 बजे से 1.31 बजे तक ये सूर्य ग्रहण दिखेगा।
अफ्रीका महादेश में कांगो के लोग दुनिया में सबसे पहले वलयाकार सूर्य ग्रहण का दीदार कर पाएंगे और ये भारत के राजस्थान पहुंचने से पहले दक्षिणी सूडान, इथोपिया, यमन, ओमान, सऊदी अरब, हिंद महासागर और पाकिस्तान से होकर गुजरेगा। भारत के बाद तिब्बत, चीन और ताइवान के लोग इसे देख पाएंगे। प्रशांत महासागर के बीच पहुंचकर ये समाप्त हो जाएगा।
हिंदू मिथकों में इसे अमृतमंथन और राहु-केतु नामक दैत्यों की कहानी से जोड़ा जाता है और इससे जुड़े कई अंधविश्वास प्रचलित हैं। ग्रहण सदा से इंसान को जितना अचंभित करता रहा है, उतना ही डराता भी रहा है। असल में, जब तक मनुष्य को ग्रहण की वजहों की सही जानकारी नहीं थी, उसने असमय सूरज को घेरती इस अंधेरी छाया को लेकर कई कल्पनाएं कीं, कई कहानियां गढ़ीं।
17वीं सदी के यूनानी कवि आर्कीलकस ने कहा था कि भरी दोपहर में अंधेरा छा गया और इस अनुभव के बाद अब उन्हें किसी भी बात पर अचरज नहीं होगा। आज जब हम ग्रहण के वैज्ञानिक कारण जानते हैं तब भी ग्रहण से जुड़ी ये कहानियां, ये विश्वास बरकरार हैं।
कैलिफोर्निया की ग्रिफिथ वेधशाला के निदेशक एडविन क्रप कहते हैं, सत्रहवीं सदी के अंतिम वर्षों तक भी अधिकांश लोगों को मालूम नहीं था कि ग्रहण क्यों होता है या तारे क्यों टूटते है. हालांकि आठवीं शताब्दी से ही खगोलशास्त्रियों को इनके वैज्ञानिक कारणों की जानकारी थी।
क्रप के मुताबिक, जानकारी के इस अभाव की वजह थी-संचार और शिक्षा की कमी। जानकारी का प्रचार-प्रसार मुश्किल था जिसके कारण अंधविश्वास पनपते रहे। वो कहते हैं, प्राचीन समय में मनुष्य की दिनचर्या कुदरत के नियमों के हिसाब से संचालित होती थी। इन नियमों में कोई भी फेरबदल मनुष्य को बेचैन करने के लिए काफी था।
प्रकाश और जीवन के स्रोत सूर्य का छिपना लोगों को डराता था और इसीलिए इससे जुड़ी तरह-तरह की कहानियां प्रचलित हो गई थीं. सबसे व्यापक रूपक था सूरज को ग्रसने वाले दानव का।
एक ओर पश्चिमी एशिया में मान्यता थी कि ग्रहण के दौरान ड्रैगन सूरज को निगलने की कोशिश करता है और इसलिए वहां उस ड्रैगन को भगाने के लिए ढोल-नगाड़े बजाए जाते थे।
वहीं, चीन में मान्यता थी कि सूरज को निगलने की कोशिश करने वाला दरअसल स्वर्ग का एक कुत्ता है। पेरुवासियों के मुताबिक़, यह एक विशाल प्यूमा था और वाइकिंग मान्यता थी कि ग्रहण के समय आसमानी भेडिय़ों का जोड़ा सूरज पर हमला करता है।
खगोलविज्ञानी और वेस्टर्न केप विश्वविद्यालय में प्रोफेसर जरीटा हॉलब्रुक कहते हैं, ग्रहण के बारे में विभिन्न सभ्यताओं का नजरिया इस बात पर निर्भर करता है कि वहां प्रकृति कितनी उदार या अनुदार है। जहां जीवन मुश्किल है, वहां देवी-देवताओं के भी कू्रर और डरावने होने की कल्पना की गई और इसीलिए वहां ग्रहण से जुड़ी कहानियां भी डरावनी हैं। जहां जीवन आसान है, भरपूर खाने-पीने को है, वहां ईश्वर या पराशक्तियों से मानव का रिश्ता बेहद प्रेमपूर्ण होता है और उनके मिथक भी ऐसे ही होते हैं।
मध्यकालीन यूरोप में, प्लेग और युद्धों से जनता त्रस्त रहती थी, ऐसे में सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण उन्हें बाइबल में प्रलय के वर्णन की याद दिलाता था। प्रोफेसर क्रिस फ्रेंच कहते हैं, लोग ग्रहण को प्रलय से क्यों जोड़ते थे, इसे समझना बेहद आसान है। बाइबल में उल्लेख है कि कयामत के दिन सूरज बिल्कुल काला हो जाएगा और चांद लाल रंग का हो जाएगा।
सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण में क्रमश: ऐसा ही होता है। फिर लोगों का जीवन भी छोटा था और उनके जीवन में ऐसी खगोलीय घटना बमुश्किल एक बार ही घट पाती थी, इसलिए यह और भी डराती थी। (bbc.com/hindi)


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