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एमपी में कांग्रेस-भाजपा दोनों पर भारी रहे राजा-महाराजा !
19-Jun-2020 9:36 PM
एमपी में कांग्रेस-भाजपा दोनों  पर भारी रहे राजा-महाराजा !

पंकज मुकाटी

भोपाल, 19 जून। मध्यप्रदेश में राजयसभा  चुनाव हो गए। नतीजे वही रहे जो अपेक्षित थे। कांग्रेस से दिग्विजय सिंह भाजपा से ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुमेर सिंह सोलंकी चुने गए। दिग्विजय सिंह को 57, ज्योतिरादित्य सिंधिया को 57 और सुमेरसिंह को 55 वोट मिले। कांग्रेस के एक अन्य प्रत्याशी फूलसिंह बरैया को 36 मत मिले। जीत के लिए जरुरी वोट 51 है। कांग्रेस को अंत तक क्रॉस वोटिंग का डर था। वो अपने विधायकों को दो बसों में भरकर लाई। कोंग्रस के कोरोना संक्रमित विधायक कुणाल चौधरी हॉस्पिटल से एम्बुलेंस में लाये गए। सबसे आखिरी में पूरा सदन खाली करवाकर उनका वोट डलवाया गया। उनके आने के पहले और जाने के बाद पूरा सदन सेनिटाइज करवाया गया। सदन तो सेनिटाइज हो गया पर जिस मार्च में जिस ढंग से कमलनाथ सरकार गिरी और शिवराज सरकार बनी, उस बगावत का संक्रमण अभी भी प्रदेश के सदन में घूमता दिख रहा है। 

भाजपा के लिए ये एक अच्छी खबर रही की बसपा के दो और समाजवादी पार्टी के एक सदस्य ने भी उसके पक्ष में वोट दिया। राज्यसभा की ये पूरी लड़ाई मुख्य रूप से दिग्विजय और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच थी। दोनों राज्य सभा जाना चाहते थे। कांग्रेस इन दोनों में किसी एक को ही टिकट देती। ऐसे में सिंधिया ने अपने टिकट के लिए बगावत का पास फेंका। इस खेल के पुराने खिलाड़ी इस मौके तो पकड़ लिया। अपने 23 विधायकों के साथ बगावत पर उतरे सिंधिया को दिग्विजय ने वापस लौटने ही नहीं दिया। वे अंत तक कमलनाथ और कांग्रेस आलाकमान को ये  भरोसा देते रहे कि कांग्रेस के 23 बागी में से 15 लौट आएंगे। वे बंधक बनाये गए हैं। उन विधायकों को वापस लाने दिग्विजय बेंगलुरु तक जा पहुंचे। पर शायद, अंदर से वे उन विधायकों की वापसी चाहते भी नहीं थे। खुद कमलनाथ भी कह चुके है कि वे दिग्विजय सिंह के भरोसे रहे। इसी भरोसे में सरकार गिर गई। 

परिणामों के बाद राजा और महाराजा दोनों ने अपनी महत्वकांक्षा पूरी कर ली। अब दिग्विजय और सिंधिया दोनों राज्यसभा सांसद हैं। दिग्विजय अगर सिंधिया की कांग्रेस में वापसी कराते तो उनका राज्यसभा का टिकट कटना तय था। सिंधिया भाजपा में इसी टिकट की शर्त पर गए। राजा महाराजा की इस जीत में आम कार्यकर्ता और 23 विधायक अभी तो ठगे से दिख रहे हैं। इन 23 विधायकों को उप चुनाव का सामना करना है। वही कांग्रेस  का कार्यकर्त्ता सरकार गिरने से हताश है, भाजपा 23 कोंग्रेसियों को अपनी पार्टी में एडजस्ट करने में कई स्तर पर जूझ रही है।
 
कुल मिलाकर ये चुनाव भाजपा या कांग्रेस की नहीं दिग्विजय और सिंधिया की अपनी अहम की जीत है। आने वाले छह साल ये दोनों नेता सांसद बने रहेंगे। प्रदेश में शिवराज कितने वक्त बचे या बने रहेंगे ये सवाल अभी भी बरकरार है। कमलनाथ की सत्ता, रणनीति और भाजपा के कार्यकर्ता के लिए तो ये जीत भी एक हार जैसी  है, क्योंकि इसी जीत को पाने रची गई शतरंज में सबकी मात हुई। 


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