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हाईकोर्ट ने कहा-याचिका वैकल्पिक उपाय अपनाए बिना लगाई गई
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 2 नवंबर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कांकेर जिले के कुछ गांवों में लगे उन होर्डिंग्स के खिलाफ दाखिल दो जनहित याचिकाओं का निपटारा कर दिया है, जिनमें ईसाई पादरियों और धर्मांतरण करने वाले ईसाइयों के प्रवेश पर रोक लगाने की बात कही गई है। कोर्ट ने कहा कि जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए ऐसे होर्डिंग्स असंवैधानिक नहीं हैं और याचिकाकर्ता चाहें तो पेसा नियमों के तहत वैकल्पिक उपाय अपना सकते हैं।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की पीठ ने 28 अक्टूबर को सुनाए फैसले में कहा कि याचिकाकर्ताओं का यह आरोप निराधार है कि सरकार ने ऐसे होर्डिंग्स लगवाने के लिए उकसाया। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि संविधान का अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, लेकिन जबरन या लालच से धर्मांतरण पर रोक लगाना सार्वजनिक व्यवस्था के लिए जरूरी है।
याचिकाकर्ता दिग्बल टांडी और नरेंद्र भवानी ने दावा किया था कि ये होर्डिंग्स संविधान के अनुच्छेद 19(1)(डी) और 25 का उल्लंघन करते हैं, जो आवागमन और धर्म की स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं। उन्होंने होर्डिंग्स हटाने और ईसाई समुदाय को सुरक्षा देने की मांग की थी। लेकिन कोर्ट ने कहा कि पेसा नियम 2022 के नियम 14 के तहत पहले ग्राम सभा और फिर अनुविभागीय दंडाधिकारी से शिकायत करें। अगर जान-माल को खतरा हो तो पुलिस से सुरक्षा मांगें।
कोर्ट ने याचिकाओं को निपटाते हुए याचिकाकर्ताओं द्वारा जमा सुरक्षा राशि जब्त करने का भी आदेश दिया। कोर्ट ने साफ किया कि वैकल्पिक उपाय अपनाए बिना सीधे हाईकोर्ट नहीं आना चाहिए।
मालूम हो कि छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के कई गांवों, जैसे टेकाठोडा, कुड़ाल, जामगांव और जुनवानी में ग्रामीणों ने अपने गांवों में पादरियों और ईसाई धर्म प्रचारकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है। इसके लिए गांवों की सीमा पर चेतावनी बोर्ड और पोस्टर लगाए गए हैं। कहा गया है कि यह कदम धर्मांतरण की बढ़ती गतिविधियों और आदिवासी परंपराओं पर पड़ रहे प्रभाव को देखते हुए उठाया गया है।
ग्रामीणों का कहना है कि कुछ बाहरी पादरी और मिशनरी लालच या झूठे वादों के ज़रिए धर्मांतरण की कोशिश कर रहे हैं, जिससे गांवों का सामाजिक संतुलन और पारंपरिक संस्कृति प्रभावित हो रही है। आदिवासी समुदायों का मानना है कि उनकी लोक आस्था और परंपरागत जीवनशैली की रक्षा के लिए यह कदम आवश्यक है।
इन गांवों की ग्राम सभाओं में हुई बैठकों में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर यह निर्णय लिया गया। ग्रामीणों ने इसे सामुदायिक संरक्षण का अधिकार बताया और कहा कि किसी भी बाहरी व्यक्ति को गांव की सामाजिक संरचना से छेड़छाड़ करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
गांवों में लगाए गए बोर्डों पर पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 यानी पेसा एक्ट का उल्लेख किया गया है। इस कानून के तहत ग्राम सभाओं को अपनी परंपराओं, संसाधनों और सामाजिक व्यवस्था की रक्षा का अधिकार प्राप्त है।
धर्मांतरण को लेकर इलाके में तनाव का माहौल है। कई बार विरोध प्रदर्शन भी हो चुके हैं। इसी विवाद से जुड़े मामलों पर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर की गई थीं, जिन पर न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं को पेसा नियम 2022 के तहत उपलब्ध कानूनी उपाय अपनाने की सलाह दी है।


