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एक माह कम, आदिवासी और गरीब मतदाता वंचित होंगे
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 5 नवंबर। छत्तीसगढ़ में मतदाता सूची के एस.आई.आर. नवीनीकरण की प्रक्रिया तेज़ी से चल रही है, लेकिन मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल (पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज) ने इसे लेकर आपत्ति दर्ज की है। संगठन का कहना है कि एक माह में बीएलओ द्वारा घर-घर जाकर सत्यापन और नवनीकरण का कार्य पूरा करना व्यवहारिक रूप से असंभव है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ आदिवासी, गरीब और विस्थापित परिवार रहते हैं।
पीयूसीएल की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, एक बूथ पर लगभग 1200 मतदाताओं तक तीन बार पहुंचना बीएलओ के लिए एक बड़ी चुनौती है। जंगलों में बसे आदिवासी परिवारों के पास अक्सर आवश्यक दस्तावेज जैसे जन्म प्रमाणपत्र, जाति प्रमाणपत्र या वन अधिकार पत्र नहीं होते। ऐसे में वे सत्यापन प्रक्रिया से वंचित हो सकते हैं।
संगठन ने बिहार के हालिया अनुभव का हवाला देते हुए कहा कि वहां भी कई लोग सत्यापन न हो पाने के कारण मतदाता सूची से बाहर रह गए थे।
विवाह के बाद महिलाओं के स्थान परिवर्तन, या विस्थापन से प्रभावित परिवारों के पते बदल जाने के कारण भी बीएलओ का उन तक पहुंचना मुश्किल है। फॉर्म-9 और आधार को पहचान के लिए अनिवार्य करने जैसी प्रक्रियाएँ कई लोगों को मताधिकार से वंचित करने का जोखिम पैदा कर सकती हैं।
पीयूसीएल की मांग है कि एसआईआर के लिए न्यूनतम छह माह की समय-सीमा दी जाए ताकि दूरस्थ और पहाड़ी इलाकों में भी सही तरीके से काम हो सके। दस्तावेजी लचीलापन रखा जाए, पारंपरिक पहचान या सामुदायिक प्रमाणों को स्वीकार किया जाए। जन-जागरूकता अभियान और प्रशिक्षण शिविर चलाए जाएँ, बीएलओ के साथ आंगनबाड़ी व स्वास्थ्यकर्मियों को जोड़ा जाए। मोबाइल रजिस्ट्रेशन और विशेष कैंप दूरस्थ व विस्थापित क्षेत्रों में लगाए जाएं साथ ही यदि कोई नाम छूट जाए तो पुनः पंजीकरण का अवसर दिया जाए।
पीयूसीएल के अध्यक्ष जुनस तिर्की और महासचिव कलादास डेहरिया ने कहा कि संविधान के अनुरूप हर नागरिक को मतदान का अधिकार है। एस.आई.आर. का उद्देश्य सराहनीय है, लेकिन जल्दबाजी और कागजी सख्ती से आदिवासी, दलित और गरीब तबके प्रभावित होंगे। सरकार व चुनाव आयोग को चाहिए कि वे समय-सीमा बढ़ाएं, प्रक्रिया को मानवीय और लचीला बनाएं।


