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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : रजत जयंती के जलसे के बीच गंभीर सोचने का भी एक बड़ा मुद्दा है
31-Oct-2025 4:11 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : रजत जयंती के जलसे के बीच गंभीर सोचने का भी एक बड़ा मुद्दा है

किसी के भी अस्तित्व में 25 बरस पूरे होना एक ऐतिहासिक मौका रहता है। शादी की सिल्वर जुबली होती है, तो लोग बड़ी दावत देते हैं। उम्र के 25 बरस पूरे होते हैं, तो लोग उम्मीद करते हैं कि अब लोग कामकाज करने लगेंगे। ऐसे में जब छत्तीसगढ़ राज्य के रूप में 25 बरस पूरे कर रहा है, तो यह एक बड़ा ऐतिहासिक मौका है, और इसका जलसा भी इस बार कुछ अधिक बड़ा इसलिए हो रहा है कि राज्य की विधानसभा का नया भवन बनकर तैयार हो गया है, और उसका भी उद्घाटन है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कल अपने दूसरे कार्यक्रमों के साथ-साथ इसके उद्घाटन में भी शामिल होंगे। यह विधानसभा भवन राज्य की नई बनी राजधानी में बना है, और भविष्य की सारी संभावनाओं को पूरा करने की गुंजाइश इसमें रखी गई है। लेकिन हम कल के कार्यक्रम तक अपनी बात सीमित रखना नहीं चाहते, इस मौके पर पूरे प्रदेश को लेकर बात होनी चाहिए।

छत्तीसगढ़ ने अविभाजित मध्यप्रदेश से बाहर आकर लगातार आर्थिक विकास देखा है। भोपाल से जब छत्तीसगढ़ का शासन चलाया जाता था, तो वह कमोबेश लंदन से चलने वाले भारत के अंग्रेजी राज जैसा रहता था। छत्तीसगढ़ कोयला उगलता था, बिजली पैदा करता था, और मध्यप्रदेश उस बिजली को पीता था। छत्तीसगढ़ में बिजली पहुंचाने का ढांचा तक बाकी मध्यप्रदेश के मुकाबले बड़ा कमजोर था। छत्तीसगढ़ ने इन 25 वर्षों में असाधारण आर्थिक विकास देखा है, और इस दौर में कांग्रेस और बीजेपी दोनों की सरकारें आई-गई हैं। इस दौर में केन्द्र में भी यूपीए और एनडीए की सरकारें आती-जाती रही हैं। छत्तीसगढ़ ने रमन सिंह सरकार के यूपीए सरकार से दस बरस के मधुर संबंध भी देखे, और भूपेश सरकार के एनडीए सरकार से पांच बरस के लड़ाकू संबंध भी देखे। छत्तीसगढ़ के विकास का एक बड़ा हिस्सा खदानों से निकलकर आया, कुछ कमाई जंगलों से हुई, और राज्य की अर्थव्यवस्था खेतों के माध्यम से चलती रही। यह राज्य इस पूरे दौर में देश के बहुत से दूसरे राज्यों के मुकाबले बेहतर आर्थिक अनुशासन का राज्य रहा, और रिजर्व बैंक से लेकर योजना आयोग, नीति आयोग के आंकड़े भी इसे एक बेहतर राज्य साबित करते रहे। आज भी देश भर के लिए छत्तीसगढ़ अपने जंगलों को खोकर, अपनी छाती पर गड्ढा झेलकर कोयला भेजता है, लोहा निकालकर फौलादी कारखाने चलाता है, और देश भर के लिए सीमेंट भी बनाता है।

लेकिन जो बात खटकती है, वह मानव संसाधन की है। छत्तीसगढ़ के लोग राज्य के बाहर जाकर काम करने के मामले में जब भी खबरों में आते हैं, तो वे बंधुआ मजदूरी से छुड़ाकर वापिस लाए जाते रहते हैं, या फिर वे उत्तर भारत के ईंट भट्ठों पर कैद करके मजदूरी कराए जाते दिखते हैं। ऐसी खबरें बहुत कम आती हैं कि छत्तीसगढ़ से लोग बाहर जाकर कोई बड़ा काम कर रहे हों, देश के बाहर पहुंच रहे हों। छत्तीसगढ़ के भीतर भिलाई नाम का एक छोटा सा शैक्षणिक टापू है जहां भिलाई इस्पात संयंत्र से जुड़े हुए स्कूल ही आईआईटी में पहुंचने वाले छात्र-छात्राओं को तैयार करते हैं, और उसमें राज्य सरकार का योगदान कुछ भी नहीं रहता। राज्य की नौजवान पीढ़ी को देश-विदेश के मुकाबले के लिए तैयार करने के लिए भी यह राज्य अभी तक कुछ नहीं कर पाया है। बीते बरसों में सरकार ने कुछ लाइब्रेरी शुरू की हैं, और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए लोगों को तैयार किया जाता है, लेकिन यह सब मोटेतौर पर गिनी-चुनी सरकारी नौकरियों के लिए होने वाले मुकाबले तक सीमित रहता है। देश की सरकारी नौकरियों से परे किसी हुनर के लायक नौजवानों को तैयार करना अभी तक यह राज्य नहीं कर पाया है, और यह खुद 25 बरस का नौजवान हो चुका है।

छत्तीसगढ़ के साथ एक दिक्कत भी है, खनिज आधारित राज्य होने की वजह से कुदरत ने ही इसे इतना कुछ दे दिया है कि इसके भूखे रहने की नौबत नहीं आती। एमपी से अलग होने के बाद से इस राज्य में कभी तनख्वाह की भी दिक्कत नहीं रही। राज्य ने ढांचागत विकास भी खूब देख लिया है। नया रायपुर नाम की राजधानी जिसमें अभी कल से कई दिन जलसे चलेंगे, वह देश में किसी भी प्रदेश की अपनी किस्म की सबसे बड़ी नियोजित राजधानी है। लेकिन राज्य की युवा शक्ति अब तक संभावनाओं को छूने की ऊंचाई से खासी नीचे है। हम पड़ोस के ही महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र को देखें, तो दुनिया का एक भी ऐसा विकसित देश नहीं है जहां इन राज्यों से गए हुए लोग काम न कर रहे हों। इन राज्यों के भीतर भी लोगों की स्थानीय सफलता बहुत अधिक है। छत्तीसगढ़ की प्रति व्यक्ति आय मोटेतौर पर खनिज आय की वजह से बढ़ी हुई दिखती है, लेकिन नौजवान आबादी की खुद की आय को अगर देखें, तो छत्तीसगढ़ अभी बहुत पीछे है। केन्द्र और राज्य सरकारों की कौशल विकास योजनाएं इस राज्य में छोटे-मोटे मैकेनिक ही बना पाई होगी, उससे अधिक कोई असर तो दिखता नहीं है। हम कारखानों और कारोबार के विकास को स्थानीय नौजवान पीढ़ी का विकास नहीं मानते। उन्हें मामूली रोजगार जरूर मिल सकता है, लेकिन यहां की युवा पीढ़ी का बेरोजगारी से उबर जाना काफी नहीं माना जाना चाहिए।

छत्तीसगढ़ को रजत जयंती के इस मौके पर यह संकल्प लेना चाहिए कि वह यहां की युवा पीढ़ी को देश और दुनिया के मुकाबलों के लिए तैयार किया जाए, क्योंकि आज दुनिया में किसी भी देश की विकास की संभावना को इसी से जोडक़र देखा जाता है कि वहां की आबादी में युवा पीढ़ी का अनुपात क्या है। इस मामले में भारत को बड़ी संभावनाओं वाला देश माना जाता है क्योंकि यहां नौजवान आबादी भरपूर है। लेकिन पड़ोस का चीन अपनी नौजवान आबादी को हुनरमंद बनाकर उसे जितना उत्पादक बना चुका है, भारत उससे बहुत पीछे है, और भारत में भी दक्षिण के राज्य और महाराष्ट्र को छोड़ दिया जाए, तो बाकी प्रदेश उनसे पीछे हैं। न सिर्फ छत्तीसगढ़ को बल्कि मानव संसाधन के मामले में ऐसे तमाम अपेक्षाकृत पिछड़े हुए प्रदेशों को अपनी युवा-कामगार शक्ति की ताकत बढ़ानी चाहिए। महज कॉलेज की पढ़ाई आज किसी भी काम की नहीं रह गई है। छत्तीसगढ़ के इस रजत जयंती वर्ष में हमें 25 बरस की यही सबसे बड़ी असफलता, सबसे बड़ी चुनौती, और सबसे बड़ी संभावना लगती है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


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