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लंदन में उठी हसदेव में कोयला खनन के खिलाफ आवाज, अडानी के साथ विज्ञान संग्रहालय के समझौते का विरोध
भारत सहित ऑस्ट्रेलिया व इंडोनेशिया के आदिवासी प्रतिनिधि हुए शामिल
दक्षिण केन्सिंगटन, लंदन 27 जनवरी। यहां के विज्ञान संग्रहालय के बाहर ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और भारत के आदिवासी समुदायों के प्रतिनिधियों ने 26 जनवरी को विरोध प्रदर्शन किया।
दुनिया के अनेक देशों में कोयले की खदानें संचालित कर रहे अडानी समूह के साथ विज्ञान संग्रहालय के साथ हुए समझौते के विरोध में यह प्रदर्शन था। इसमें भारत के अलावा इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया से भी समूह शामिल थे।
अडानी समूह के साथ विज्ञान संग्रहालय ने एक समझौता किया है, जिसके अंतर्गत 2023 में यहां एक हरित ऊर्जा क्रांति गैलरी प्रारंभ की जायेगी, जिसमें यह दर्शाया जायेगा कि भविष्य में जीवाश्म ईंधन पर वैश्विक निर्भरता कम कैसे की जायेगी और ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री तक सीमित कैसे किया जा सकेगा।
लंदन का विज्ञान संग्रहालय सीओपी 26 सम्मेलन का हिस्सा था, जिसमें ग्लोबिंग वार्मिंग को कम करने के लिये अनेक देशों और संगठनों ने नवंबर महीने में भाग लिया था।
प्रदर्शनकारियों ने संग्रहालय के निदेशक इयान ब्लैचफोर्ड को पत्र लिखकर अडानी समूह के साथ अपने संबंधों को तोडऩे का आग्रह किया है। उनका कहना है कि यह समूह भारत, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया व अन्य देशों में आदिवासी समुदाय की भूमि हथियाने, उनका दमन करने, नैसर्गिक भूमि का विनाश करने, जंगल, जमीन और जल के प्रदूषण को बढ़ाने के लिये जिम्मेदार है।
भारत में आदिवासी समुदाय के भारी प्रतिरोध के बावजूद छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा के वनाच्छादित भागों में सरकार द्वारा अनुमोदित कोयला खदानों से बेशुमार खुदाई कर प्रकृति को नष्ट किया जा रहा है।
सर्वाइवल इंटरनेशनल का कहना है कि अडानी समूह ने इस समय छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य को लक्षित किया है। इससे यहां 20 हजार आदिवासियों की आजीविका पर संकट खड़ा हो रहा है। अडानी समूह यहां पहले से ही एक खदान संचालित कर रहा है और दूसरी को अभी-अभी मंजूरी मिली है।
झारखंड के एक उरांव कार्यकर्ता फिलिप ने कहा कि हम आदिवासी पृथ्वी को बचाने में लगे हैं, लेकिन सरकार इसकी कोई कीमत नहीं समझती है। वह चाहती है कि हम अडानी और अंबानी के लिए मर जाएं। हम आदिवासी अपनी जमीन आपके लिए नहीं छोड़ सकते। दुनिया को कोई अगर बचा सकता है तो वह आदिवासियों की विश्व दृष्टि है, और कोई रास्ता नहीं।
सर्वाइकल इंटरनेशनल के डॉ. जो वुडमैन ने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार देश के आदिवासी लोगों के अधिकारों का हनन कर अपने कार्पोरेट सहयोगियों की संपत्ति को प्राथमिकता देते हैं। अडानी के साथ लंदन साइंस म्यूजियम का सौदा सबसे खराब किस्म का उदाहरण है। संग्रहालय को अडानी के साथ अपने सौदे को तत्काल रद्द कर देना चाहिए।
यह विज्ञान संग्रहालय पहले ही गैस और तेल उत्पादकों की मदद लेने के कारण भारी दबाव में है। पर्यावरण संरक्षण और आदिवासियों की जमीन की लड़ाई लड़ रहे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का कहना है कि अडानी मानवाधिकारों के उल्लंघन और आदिवासियों की पुश्तैनी जमीनों के विनाश में संलिप्त है और ऊर्जा क्रांति के लिए विज्ञान संग्रहालय को उनके साथ समझौता नहीं करना चाहिए। ज्ञात हो कि लंदन का विज्ञान संग्रहालय जलवायु शिखर सम्मेलन में एक महत्वपूर्ण में था।


