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-सुरिंदर मान
पंजाब के फ़िरोजपुर ज़िले के प्यारेना गांव में सन्नाटा है. जब मैं गांव में पहुंचा तो लोग आपस में गुपचुप तरीके से बात करते तो दिखे लेकिन कोई भी खुल कर बोलने को तैयार नहीं था.
गांव के ठीक बाहर मिले शख़्स ने प्रधानमंत्री के काफ़िले के बारे में पूछे जाने पर कहा कि वह जानता तो है लेकिन इस पर कुछ बोलेगा नहीं.
पांच जनवरी के बाद लोगों को इस गांव के बारे में मालूम हुआ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का काफ़िला इसी गांव से वापस लौटा था.
पांच जनवरी को प्रधानमंत्री पीजीआई के सेटेलाइट सेंटर का शिलान्यास करने के लिए फ़िरोजपुर जा रहे थे लेकिन उनके काफ़िले को लुधियाना-फ़िरोजपुर नेशनल हाईवे पर प्यारेना गांव के पास से वापस लौटना पड़ा था.
प्यारेना फ्लाईओवर शहर से 13 किलोमीटर दूर है जबकि बीजेपी की प्रस्तावित रैली से यह आठ किलोमीटर दूर है.
गांव वालों के मुताबिक़, मीडिया के अलावा प्रधानमंत्री की सुरक्षा के बारे में पंजाब और केंद्र की ख़ुफ़िया एजेंसियां भी लोगों से पूछताछ कर रही है. प्रधानमंत्री के काफ़िला को प्यारेना फ्लाईओवर से लौटते वक्त वहां मौजूद एक मूंगफली विक्रेता ने भी देखा था.
अब्दुल हनान काम की तलाश में 10 साल पहले बिहार से पंजाब आए थे, इन दिनों वे मूंगफली बेचते हैं. उन्होंने अचानक से फ्लाईओवर पर सशस्त्र पुलिस और वाहनों को लौटते हुए देखा था.
उन्होंने बताया, "मैं तो यह सब देखकर हैरत में पड़ गया था. हालांकि मुझे नहीं मालूम था कि उस काफ़िले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गाड़ी भी थी."
वे बताते हैं, "मैं प्रधानमंत्री को सुनने के लिए फ़िरोजपुर जाने की तैयारी कर रहा था क्योंकि पुलिस ने नेशनल हाईवे की सभी दुकानों को बंद करा दिया था. मैं मूंगफली नहीं बेच सकता था, लेकिन मुझे उम्मीद थी कि जब प्रधानमंत्री फ़िरोजपुर से लौट जाएंगे तब दुकान खोलने की अनुमति मिल जाएगी और मेरी कुछ आमदनी हो जाएगी."
"पहले तो मुझे सबकुछ सामान्य ही लग रहा था लेकिन जब कैमरामैन और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी वहां पहुँचे तो मुझे डर लगा था. तब मुझे पता चला कि प्रधानमंत्री उस सशस्त्र काफ़िले में मौजूद हैं और काफ़िला वहां से लौट रहा था."
क्या बताया प्रदर्शनकारी किसान ने
इसके बाद हमारी मुलाकात प्यारेना गांव एक किसान से हुई जो उस दिन फ्लाईओवर पर प्रदर्शन कर रहे थे. प्रदर्शन में शामिल बलदेव सिंह को डर है कि प्रधानमंत्री के काफ़िले के लौटने के बाद पुलिस उनको गिऱफ़्तार कर सकती है.
हालांकि, निर्धारित जगह पर ही उनसे हमारी मुलाकात हुई.
बलदेव सिंह ने बताया, "क़रीब डेढ़ सौ किसान मेरे नेतृत्व में फ़िरोजपुर जा रहे थे. प्रधानमंत्री की नीतियों को लेकर हमें डिप्टी कमिश्नर के दफ़्तर के सामने विरोध प्रदर्शन करना था."
"जब हम किसानों का समूह प्यारेना गांव के पास पहुंचा तो पुलिस ने नेशनल हाईवे पर हमारे काफ़िले को रोक दिया था. हमें पुलिस प्रशासन ने बताया कि यहां से बीजेपी कार्यकर्ताओं की बस से रैली निकलेगी और हम सहमत हो गए थे. लेकिन जब बीजेपी कार्यकर्ताओं ने हिंसा की तो हमने पुलिस प्रशासन को कहा कि अब किसी भी हालात में रास्ता नहीं खुलेगा."
बलदेव सिंह ने यह भी बताया, "हमें नहीं मालूम कि प्रधानमंत्री प्यारेना गांव वाले फ्लाईओवर से लौट गए. जब प्रधानमंत्री मिसरी वाला गांव के फ्लाईओवर पर पहुंचे होंगे तभी उन लोगों को मालूम हो गया होगा कि इस रोड पर किसान प्रदर्शन कर रहे हैं."
महिला किसान नेता ने मामले को अप्रत्याशित बताया
महिला किसान नेता सुखविंदर कौर ने कहा कि किसानों ने पहले से ही ज़िला मुख्यालय पर धरने का आह्वान किया हुआ था.
उन्होंने बताया, "यह अप्रत्याशित घटना है और इसका राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए."
उन्होंने बताया कि लखीमपुर खीरी में दो किसानों की गिरफ़्तारी और दिल्ली की सीमा पर किसानों के प्रदर्शन को समाप्त करते वक्त सरकार के वादों को पूरा नहीं किए जाने के चलते विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया था.
सुखविंदर कौर के मुताबिक बरनाला में किसान संगठनों की बैठक में विरोध प्रदर्शन करने का फ़ैसला किया गया था. उनके मुताबिक लोग फ़िरोजपुर में विरोध प्रदर्शन के लिए जमा हुए थे लेकिन पुलिस वालों को लगा कि ये लोग रैली की ओर जाएंगे.
पुलिस रास्ता हटाने आयी थी
यह भी पता चला है कि प्यारेना गांव के फ़्लाईओवर ब्रिज पर भारतीय किसान यूनियन क्रांतिकारी के किसान धरना दे रहे थे. इस संगठन के प्रदेश अध्यक्ष सुरजीत सिंह फूल ने टेलीफ़ोन पर बताया कि उनका संगठन वहां विरोध प्रदर्शन कर रहा था.
सुरजीत सिंह फूल ने अपने संगठन की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि उनके संगठन को अंदाज़ा नहीं था कि प्रधानमंत्री उस सड़क से गुजरने वाले थे जहां धरना चल रहा था.
सुरजीत सिंह फूल ने बताया, "प्रधानमंत्री का काफ़िला लौटने से कुछ मिनट पहले ज़रूर पुलिस अधिकारी धरना प्रदर्शन की जगह पहुंच थे, उन्होंने कहा था कि सड़क खाली करो क्योंकि प्रधानमंत्री को यहां से गुजरना है.
लेकिन हमारे कार्यकर्ताओं ने इसे गंभीरता से नहीं लिया क्योंकि हमलोग जानते हैं कि जब सड़क पर वीआईपी मूवमेंट होता है तो कई घंटे पहले सड़क खाली करा ली जाती है, हमें नहीं मालूम कि प्रधानमंत्री के साथ ऐसा क्यों नहीं हुआ?"
पंजाब के किसान संगठन मोदी सरकार के तीन कृषि क़ानूनों का लगातार विरोध कर रहे थे, एक साल से भी ज़्यादा समय तक चले विरोध के बाद सरकार ने तीनों क़ानूनों को वापस लेने की घोषणा की थी.
इन संगठनों ने प्रधानमंत्री मोदी के पंजाब दौरे के दौरान विरोध प्रदर्शन करने का आह्वान किया था. हालांकि यह जानना ज़रूरी है कि संयुक्त मोर्च में शामिल 32 किसान संगठन इस फ़ैसले में शामिल नहीं थे.
भारतीय किसान यूनियन उग्रहां, भारतीय किसान यूनियन सिद्धूपुर, भारतीय किसान यूनियन क्रांतिकारी, किसान मज़दूर संघर्ष समिति, भारतीय किसान यूनियन एकता दाकोंडा और कीर्ति किसान यूनियन ने प्रधानमंत्री के विरोध प्रदर्शन में शामिल होने का एलान किया हुआ था.
इनके नेताओं ने सोशल मीडिया पर ऐलान किया हुआ था कि वे प्रधानमंत्री के फ़िरोजपुर दौरे का विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
हमारा प्रदर्शन पीएम के ख़िलाफ़ नहीं था- सुरजीत सिंह फूल
भारतीय किसान यूनियन क्रांतिकारी के अध्यक्ष सुरजीत सिंह फूल ने यह भी कहा कि केंद्र और पंजाब सरकार जो दावा कर रही है कि किसानों के प्रदर्शन के चलते नरेंद्र मोदी के काफ़िले को लौटना पड़ा यह सही दावा नहीं है.
उन्होंने कहा, "हमारे ख़्याल से प्रधानमंत्री की सुरक्षा में कहीं कोई चूक नहीं हुई जिसके चलते उन्हें लौटना पड़ा हो. प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ हमलोगों ने कोई विरोध प्रदर्शन नहीं किया था, हम लोगों की ओर से किसी तरह का कोई हमला नहीं किया गया, इसलिए स्थिति बेहद स्पष्ट है."
सुरजीत सिंह फूल ने कहा, "केवल भारतीय किसान यूनियन क्रांतिकारी के सदस्य ही प्रधानमंत्री का विरोध नहीं कर रहे थे लेकिन संयोग ऐसा हुआ कि प्रधानमंत्री का काफ़िला उस सड़क पर आ गया जहां हमारा धरना प्रदर्शन चल रहा था. दूसरे संगठन भी अलग अलग जगहों पर प्रधानमंत्री का विरोध प्रदर्शन कर रहे थे."
उन्होंने यह भी कहा, "यह सही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि क़ानूनों को वापस ले लिया लेकिन इन क़ानूनों का विरोध करते हुए 700 से ज़्यादा किसानों की मौत हुई. जिनके चलते लखीमपुर खीरी की घटना हुई वो अजय मिश्र टेनी अभी भी मोदी सरकार में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री बने हुए हैं, इसलिए किसानों का विरोध ग़लत नहीं है."
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फ़रीदकोट से फ़िरोजपुर बारस्ता तलवंडी भाई से जाना था लेकिन तलवंडी भाई चौक पहुंचने के बदले वे नज़दीक के मिसरी वाला पहुंच गए और वहां उन्हें रास्ता बंद होने की जानकारी मिली. हालांकि इस मुद्दे पर कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने संपर्क किए जाने के बाद कुछ भी बताने से इनकार कर दिया.
हालांकि, पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने बयान दिया है कि फ़िरोजपुर की रैली में भीड़ नहीं जुटने की जानकारी प्रधानमंत्री को दी गई, इसके बाद ही कार्यक्रम में बदलाव किया गया.
हालांकि पंजाब प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने फ़िरोजपुर में संवाददाताओं से कहा कि पंजाब की सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पर्याप्त सुरक्षा देने में नाकाम रही.
अश्विनी शर्मा ने कहा, "ऐसी सरकार जो सीमावर्ती इलाके में देश के प्रधानमंत्री को सुरक्षा मुहैया नहीं करा सके, उसे सत्ता में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है. कार्यकर्ताओं से भरे बसों को विभिन्न जगहों पर रोका गया और कहा गया कि किसी को भी रैली में जाने की इजाजत नहीं है. यह सब प्रधानमंत्री की रैली को नाकाम बनाने के लिए किया गया."
भारतीय जनता पार्टी के दावे के मुताबिक अमृतसर-तरन तारन बायपास, काथू नांगल, हरिके पाटन, श्री मुक्तसर साहिब, माखू जैसे कई इलाकों में बीजेपी के 3443 बसों को रोका गया.
वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली को कवर करने पहुंचे एक पत्रकार ने नाम ज़ाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा कि प्रधानमंत्री के रैली में नहीं आने की वजह ख़राब मौसम और भारी बारिश बताया.
प्यारेना गांव के धरने के बारे में किसान बलदेव सिंह बताते हैं कि बीजेपी की बसों को रोकने की वजह से रैली में लोग नहीं पहुंचे हों, ये बात नहीं है, लोग खुद ही रैली में नहीं आए.
प्रधानमंत्री का काफ़िला जहां से लौटा वहीं नज़दीक में राताखेरा गांव है.
गांव के सरपंच राजदीप सिंह कहते हैं कि यह बड़ी बात है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री को थोड़े से विरोध के चलते वापस लौटना पड़ा.
उन्होंने बताया, "इस बात में कोई संदेह नहीं है कि हमें प्रधानमंत्री से ढेरों उम्मीद थी कि वे हमारे इलाके के लिए कुछ बड़ी घोषणाएं करेंगे. हमारे दिमाग़ में यह सवाल भी बना हुआ था कि एक साल के किसानों के संघर्ष के दौरान पंजाब ने क्या खोया और क्या पाया?"
राजदीप सिंह ने यह भी कहा, "सच्चाई तो यही है कि ऐसा नहीं होना चाहिए लेकिन यह हुआ और एक सवाल भी सामने आया है कि क्या प्रधानमंत्री बड़े हैं या लोकतंत्र बड़ा है?"
उन्होंने कहा, "जब प्रधानमंत्री का कार्यक्रम तय हो गया था तो उनका रास्ता क्यों नहीं निर्धारित किया गया. यही मेरा सवाल आज है और कल भी रहेगा कि यह केवल तकनीकी समस्या थी, इसे प्रधानमंत्री की सुरक्षा से जोड़कर देखना ग़लत होगा. अगर ऐसा शांतिपूर्ण पंजाब में हो रहा है तो प्रधानमंत्री को इनकी वजहों को भी समझना चाहिए."
सुखविंदर कौर कहती हैं, "सही है कि यह सीमावर्ती इलाका है लेकिन देश की आंतरिक सुरक्षा को प्रधानमंत्री से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. पंजाब में शांति और सद्भाव की स्थिति है. हमलोग एकसाथ मिल जुलकर अपने अधिकार के लिए लड़ रहे है. ऐसी स्थिति में आंतरिक सुरक्षा की बात केवल बीजेपी सोच सकती है, देश का आम आदमी नहीं."
प्रधानमंत्री के फ़िरोजपुर दौरे में सुरक्षा व्यवस्था में चूक के मामले पर मैंने कई पुलिस अधिकारियों से बात करने की कोशिश की लेकिन इस संवेदनशील मामले पर हर किसी ने लगभग एकसमान ही जवाब दिया, कि 'सबकुछ ठीक है, जांच चल रही है और सबकुछ ठीक ही होगा.' (bbc.com)


