ताजा खबर
-नितिन श्रीवास्तव
पिछले नवंबर की शाम थी. 55 साल के रामराज अपने छोटे से खेत वाले घर के पिछवाड़े एक प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठे फ़सल की निगरानी कर रहे थे.
अचानक, बग़ल के गन्ने वाले खेतों से निकलते हुए एक ग़ुस्साए हुए साँड़ ने उन पर हमला बोल दिया.
पहला वार पीठ पर था जिससे रामराज ज़मीन पर पलट गए. फिर साँड़ ने उनके मुँह और पेट को रौंद डाला.
रामराज की बहू अनिता कुमारी ने बताया, "पूरे दांत टूट गए थे. पेट और हाथ में भी ज़ख़्म था, सीने में भी चोट आई थी. फिर चीरखाना (पोस्ट मॉर्टम के लिए) ले गए थे. उनकी मौत देखी नहीं जा रही थी".
इस दर्दनाक हादसे के बाद से रामराज की पत्नी निर्मला ने खाना-पीना छोड़ सा दिया है. सिर्फ़ चारपाई पर पड़े-पड़े पति के लिए बिलखती रहती हैं. परिवार को चिंता है "ये बहुत दिन नहीं जी सकेंगी".
उत्तर प्रदेश के अयोध्या ज़िले में हुई ये घटना पहली नहीं है. प्रदेश के क़रीब-क़रीब हर ज़िले में आवारा मवेशियों ने किसानों, ख़ास तौर पर छोटे किसानों की नाक में दम कर रखा है. मसला जान-माल दोनों के नुकसान का है.
चिरौंधापुर के रहने वाले 37 साल के भूपेन्द्र दुबे दिल्ली में नौकरी करते थे और कोरोना की पहली लहर के लॉकडाउन में घर लौट आए थे.
23 जून, 2020 की एक शाम अपने डेढ़ साल के बच्चे के लिए टॉफ़ी लेने गए थे कि गाँव के पास वाली बाज़ार में एक सांड़ ने उन पर हमला बोल दिया.
उनकी पत्नी पूनम देवी उस दिन को याद कर सिहर उठती हैं.
"मैंने ही कहा था घर का सामान ख़त्म हो रहा है. बोले, बच्चे की टॉफ़ी लानी ही है, सामान भी ले आता हूँ. फिर मैंने पौने नौ बजे फ़ोन किया, बोले पांच मिनट में घर पहुंच रहा हूं. उसके बाद बात नहीं हो सकी मेरी", कहते हुए पूनम रो पड़ीं.
कुछ मिनट बाद मैंने पूछा, "अब घर कैसे चल पाता है, छोटा बच्चा भी है आपका?".
पूनम दुबे ने जवाब दिया, "कैसे चलता है क्या, मेरे पिताजी हैं. खाने-पीने की व्यवस्था वही करते हैं, वैसे चल रहा है. कोई है थोड़ी ना देखने वाला".
इस कहानी को समझने के लिए रुख़ करते हैं 2017 का.
उत्तर प्रदेश में 15 साल बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी और योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद संभाला.
चंद महीनों में ही उन्होंने कुछ बड़े फ़ैसले लिए जिसमें प्रदेश में हज़ारों अवैध बूचड़खानों को बंद करना प्रमुख था.
एक जनसभा को संबोधित करते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा था, "ये पहली सरकार है, जिसने प्रदेश के अंदर अवैध बूचड़खानों को पूरी तरह प्रतिबंधित करके गो-तस्करी को भी उत्तर प्रदेश में पूरी तरह प्रतिबंधित किया है. जो व्यक्ति उत्तर प्रदेश के अंदर, गो-हत्या की बात तो दूर, जो भी गाय से क्रूरता करेगा उसकी जगह जेल में होगी".
अवैध बूचड़खानो के बंद होने के साथ कथित गोमांस खाने और गाय की तस्करी के नाम पर कई हिंसक वारदातें भी हुईं. थानों में गो-तस्करी के मामले दर्ज होने बढ़े और मुज़फ़्फ़रनगर, अलीगढ़, बलरामपुर, बाराबंकी, हमीरपुर जैसे कई अन्य ज़िलों में गोहत्या के मामले दर्ज किए गए.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में तो 2018 में कथित गो-हत्या के मामले की छानबीन कर रहे एक पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की एक गुस्साई भीड़ के साथ झड़प के दौरान गोली मार कर हत्या कर दी गई थी.
उधर प्रदेश की सड़कों पर आवारा मवेशियों की तादाद बढ़ती जा रही थी. बढ़ रही थी उनकी भूख भी.
राजधानी लखनऊ से चंद घंटे दूर मिल्कीपुर इलाक़े के सिंधौरा मौजा में मुलाक़ात शिव पूजन से हुई. रोडवेज़ की बस से उतरते दिखे और दाहिने हाथ में बंधी पट्टियों से खून बाहर तक दिख रहा था.
उन्होंने बताया, "चार दिन पहले दोपहर, मैं अपने खेत में घुस आए जानवरों को हांकने गया था. उन्होंने मुझे दौड़ा लिया. फिर मैं वहां से भागा. वहां तार बंधा हुआ था, तार से नहीं निकल पाया, फिर भागने की कोशिश की, हाथ उसमें फंस गया. किसी तरह अपनी जान बची".
सियासत और आवारा मवेशी
भारत में क़रीब 20 करोड़ मवेशी हैं, जिनमें से सबसे ज़्यादा उत्तर प्रदेश में हैं.
सरकारी आंकड़ों को खंगालने पर पता चला कि औसतन जहां देश में आवारा मवेशियों की आबादी कम होकर 50 लाख पहुंची है, उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में ये 15% से ज़्यादा बढ़ी है.
उत्तर प्रदेश चुनाव क़रीब हैं और सभी राजनीतिक दलों के अपने-अपने दावे हैं. दावे, वोटरों के भरोसे पर हैं और चुनावी मुद्दों पर पकड़ के. चुनाव के मौसम में गाय को लेकर भी सियासत गर्म है.
हाल ही प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, "गाय कुछ लोगों के लिए गुनाह हो सकती है, हमारे लिए गाय माता है, पूजनीय है. गाय-भैंस का मज़ाक़ उड़ाने वाले लोग ये भूल जाते हैं कि देश के आठ करोड़ परिवारों की आजीविका ऐसे ही पशुधन से चलती है".
वहीं समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव का दावा है कि 'भाजपा की नीतियों की वजह से प्रदेश में लाखों आवारा मवेशियों ने किसानों के सपनों को तोड़ दिया है'.
और कांग्रेस पार्टी नेता प्रियंका गांधी को लगता है कि 'पिछले साढ़े चार सालों में भाजपा सरकार ने सिर्फ़ मुसीबतें बढ़ाईं हैं, काम कुछ नहीं किया है'.
बहराल, प्रदेश में किसानों की एक बड़ी तादाद है, जो आवारा मवेशियों के मुद्दे पर साफ़ तौर से असहज दिख रही है.
सुल्तानपुर-अयोध्या ज़िले के बॉर्डर पर रहने वाले किसान दीनानाथ यादव का मत है, "पहले हमारी फ़सल को नुक़सान सिर्फ़ नीलगाय से होता है. आज वो समस्या तिगुनी हो गई है क्योंकि जिन मवेशियों ने दूध देना बंद कर दिया है या जो बूढ़े हो चले उनके रखरखाव की न तो किसान की क्षमता है और न ताक़त".
उन्होंने बताया, "अगर किसी पर दैवी आपदा आती थी, कोई बीमार होता था या कोई मर जाता था, तो जानवर को बेच देते थे और घर चला लेते थे. आज स्थिति ऐसी है कि इन्हें कोई पूछ नहीं रहा है, जैसे घर में कोई कबाड़ हो जाए, बाहर निकाल देते हैं".
पिछले कुछ वर्षों में आवारा मवेशियो के बढ़ते प्रकोप से परेशान किसान दिन में खेती करते हैं लेकिन रात में भी फ़सल बचाने के डर से चैन से सो भी नहीं पाते.
हमें सैकड़ों खेत ऐसे मिले जिनमें किसानों ने रात में रखवाली के लिए पाँच से आठ फ़ीट ऊँची मचानें बना रखी हैं.
सुल्तानपुर और अयोध्या के दो गँवों में देर रात इन किसानों के साथ हम भी ये समझने निकले कि दिक़्क़त कितनी बड़ी है.
ज़्यादातर खेतों में बिजली नहीं पहुँची है और साँपों के काटने की घटनाएँ आम बात हैं.
इसलिए हाथों में टॉर्च लिए किसानों के झुंड रात में गश्त पर निकलते हैं. क़रीब चार घंटे बाद इनके गांव का एक और किसान गश्ती दल आता है जिससे मौजूदा लोग वापस जाकर कुछ घंटे सो सकें.
इस इंतज़ाम ये ज़्यादातर किसान नाख़ुश हैं. 64 वर्षीय बिमला कुमारी भी रात की गश्त में शामिल थीं.
उन्होंने कहा, "हमारे पास विकल्प नहीं है, जो आवारा पशु रात को फ़सल खाने आते हैं वो सब आस-पास के गांवों से ही तो छोड़े गए हैं. वो भी तो हर खेत को जानते हैं, कहाँ से घुसना है, कहाँ से भाग जाना है".
बड़े शहर या छोटे गांव, यूपी ने मवेशियों का ऐसा आतंक पहले शायद ही देखा हो. पालतू जानवर, सड़कों पर आते ही हिंसक भी होते गए.
उत्तर प्रदेश सरकार ने डेढ़ साल पहले गोहत्या क़ानून को सख़्त करते हुए 10 साल तक की सज़ा तय कर दी थी.
सरकार का कहना है कि प्रदेश में 5,300 से ज़्यादा गो आश्रय हैं, जिनमें लाखों मवेशियों को रखा गया है. इनमें से अधिकतर आवारा रहे होंगे.
लेकिन प्रदेश की सत्ताधारी भाजपा सरकार के प्रवक्ता समीर सिंह इस बात से इत्तेफ़ाक नहीं रखते.
उन्होंने कहा, "आप उन्हें आवारा पशु ना कहिए, मैं कहूंगा कि वो गोवंश कहे जा सकते हैं. अगर कोई गाय हमको कल दूध देती थी, आज नहीं दे रही है, तो हम उसे भगा नहीं सकते. निश्चित रूप से सरकार ने इसकी योजना बनाई है समाज से भी सहयोग लेकर, आगे भी बनेगी. ये अभी थोड़ी-मोड़ी समस्या दिख रही है, तो हम उसका समाधान भी तलाश चुके हैं".
मिल्कीपुर के राजेश कुमार वैसे तो अपने चाइनीज़ खाने वाले ठेले के लिए मशहूर हैं, लेकिन खेती भी करते हैं.
गर्म-गर्म चाऊमीन बनाते हुए उन्होंने हमें बताया, "हफ़्ते या पंद्रह दिन में एक-दो दिन दुकान बंद कर खेत में जाते हैं, वहां खूंटा गाड़ के तार-रस्सी वग़ैरह बांध कर उसे देखते हैं जिससे आवारा मवेशी दूर रहें. सात दिन में फिर जा कर देखते हैं. दुकान बंद करने से हर्जा बहुत होता है, लेकिन क्या करें हम कुछ कर भी नहीं सकते"
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में निर्देश जारी किए हैं कि बाहर घूम रहे सभी मवेशियों को गो आश्रय पहुंचाया जाए और गो-आश्रयों की तादाद बढ़ाई जाए. मगर ये उतना आसान नहीं जितना दिखता है.
गो-आश्रयों और सरकारी गोशालाओं को समझने के लिए हम अयोध्या के हरिंगटनगंज के शाहाबाद गांव में बने 'वृहद गो संरक्षण केंद्र' पहुंचे. दोपहर तीन बजे का समय था और इस विशालकाय गोशाला के फाटक में ताला पड़ा हुआ था.
पता चला यहां रहने वाला व्यक्ति भोजन अवकाश पर गया है. थोड़ी देर में वो ग्राम प्रधान शत्रुघ्न तिवारी के साथ मौक़े पर पहुंचे.
ये गोशाला ग्राम प्रधान शत्रुघ्न तिवारी की देखरेख में ही चलती है. उनके मुताबिक़, "पूरे इलाक़े में जितनी गोशालाएँ हैं वो काफ़ी हैं. हालाँकि इस वाली में दो सौ मवेशी है- जितनी इसकी क्षमता है-लेकिन इलाक़े में अभी भी सात सौ से लेकर हज़ार तक आवारा मवेशी भी घूम रहे हैं".
उत्तर प्रदेश में आवारा मवेशियों के मुद्दे पर चुनाव में पड़ने वाले वोट पर कितना असर पड़ेगा, इसका पता नतीजों में ही चलेगा.
मगर कुछ परिवार ऐसे भी हैं जो इस समस्या के समाधान से अब नाउम्मीद हैं.
80 साल की राम कली मिश्रा पिछले दो साल से कोमा में बिस्तर पर हैं. उनपर भी एक साँड़ ने हमला किया था.
लेकिन राम कली को ये तक नहीं पता कि उस घटना के बाद उनके बेटे को कोरोना निगल चुका है.
चुनावों में ऐसे परिवारों की दिलचस्पी अब ख़त्म सी हो चुकी है. (bbc.com)


