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नहीं होंगे इस साल भी कॉलेज चुनाव
06-Jan-2022 1:32 PM
नहीं होंगे इस साल भी कॉलेज चुनाव

   कोरोना संक्रमण के चलते आयुक्त ने भेजा प्रस्ताव    
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 6 जनवरी।
प्रदेश के कालेजों में इस साल छात्रसंघ के चुनाव नहीं होंगे। उच्च शिक्षा डायरेक्टरोरेट ने कोरोना से उत्पन्न स्थिति को देखते हुए इन चुनावों के लिहाज से सत्र 2021-22 को जीरो ईयर घोषित करने का प्रस्ताव मंत्री उमेश पटेल को भेजा है। लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के अनुसार छात्रसंघ के चुनाव कराए जाने थे।

सूत्रों के अनुसार अक्टूबर में कालेजों में प्रवेश प्रक्रिया पूरी होने के बाद रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर और हेमचंद यादव विश्वविद्यालय दुर्ग के कुलपतियों ने आयुक्त उच्च शिक्षा से गाइडलाइन मांगा था। बता दे कि सत्र 21-22 के लिए जारी शैक्षणिक कैलेंडर के अनुसार कालेजों और विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के गठन सितंबर कर पूरा कर लिया जानाा था। लेकिन  इस साल कालेजों में बड़ी संख्या में सीटें रिक्त होने से शासन ने प्रवेश की तिथि को बढ़ाने का फैसला किया था। इसके मुताबिक कुलपतियों की अनुमति से 10 अक्टूबर तक प्रदेश के कालेजों में छात्रों को प्रवेश दिए जाते रहे हैं। इसके चलते छात्रसंघ गठन की प्रक्रिया शुरू नहीं की जा सकी। और  उसके बाद कोरोना की स्थितियां सामने आईं। इन स्थितियों के मद्देनजर इन विश्वविद्यालय के कुलपतियों ने  आयुक्त से गाइडलाइन मांगा था। कुलपतियों ने यह भी पूछा था कि छात्रसंघ के चुनाव मतदान से कराएं या लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के तहत मेरिट बेस पर मनोनयन से गठन कराए जा सकते हैं।

 डायरेक्टोरेट के सूत्रों के अनुसार इस पर आयुक्त उच्च शिक्षा शारदा वर्मा ने उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल को एक प्रस्ताव भेजकर अनुमति मांगी है। इसमें कहा है कि कोविड की असामान्य स्थितियों में छात्रसंघ गठन के लिहाज से 21-22 सत्र को जीरो ईयर घोषित किया जाए। उन्होंने कहा है कि अक्टूबर तक कालेजों में प्रवेश के चलते गठन में विलंब हो गया है। और अब परीक्षाएं भी नजदीक आ गईं हैं इसलिए चुनाव कराना संभव नहीं है। सूत्रों ने बताया कि मंत्री पटेल की सहमति मिलने के बाद चुनाव स्थगित करने के आदेश विभाग की ओर से जारी कर दिए जाएंगे।

यहां होने थे चुनाव-छात्रसंघ के ये चुनाव प्रदेश के करीब 235 सरकारी, 60 निजी कालेजों और दो दर्जन विश्वविद्यालयों में कराए जाने थे। अब छात्रों को अगले सत्र तक इंतजार करना होगा।
आगे क्या— इस साल चुनाव न होने की स्थिति में छात्र जीवन से राजनीति में कदम रखने के इच्छुक युवाओं को मायूसी हो सकती है। कालेजों के ये चुनाव राजनीति की पाठशाला कहे जाते हैं। प्रदेश में आज जितने भी राजनेता हैं वे भी छात्रसंघ चुनावों से ही आए हैं।
इसके पहले भी नहीं हो पाए थे चुनाव— बता दें कि राज्य गठन के बाद से छात्रसंघ के चुनाव लगातार नहीं कराए जाते रहे हैं। दरअसल इन चुनावों को सत्ताधारी दल एक तरह से शक्ति प्रदर्शन के रुप में देखते रहे हैं। इस वजह से पहले साल 2000 से 03 के दौरान जोगी सरकार ने एक बार कराया और फिर भाजपा सरकार के कार्यकाल में पहले वोटिंग, उसके बाद मेरिट आधार पर कराए जाते रहे हैं। वैसे राज्य में जब-जब विधानसभा के चुनाव हुए हैं उन वर्षों में भी छात्रसंघ के चुनाव टलते रहें हैं।

 

 


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