कोण्डागांव
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कोण्डागांव, 4 फरवरी। कोण्डागांव इलाके को नक्सलमुक्त कराने के लिए शासन-प्रशासन से कई योजनाएं भी चलाई जा रही है। जिसमें से नक्सल पूर्नवास नीति के तहत इलाके में अब तक 200 से ज्यादा माओवादियों ने आत्मसमपर्ण कर माओवाद व लालआतंक से तौबा तो कर दिया है,।
वहीं कुछ परिवारों ने माओवादियों के डर से अपना सबकुछ छोडक़र पुलिस प्रशासन की शरण में आ तो गए है, लेकिन इन्हें पूर्नवास नीति के तहत जो सुविधा मिलनी चाहिए वो अब तक नहीं मिल पाई है। ऐसे कुछ नक्सल पीडित व आत्मसमर्पित माओवादी सोमवार को कलेक्टर जनदर्शन में अपनी समस्याएं व मांग लेकर पहुंचे थे।
जनदर्शन में पहुंचे लोगों ने बताया कि, वे कई दफे अपना आवेदन अधिकारियों के साथ ही राजनेताओं को भी दे चुके है पर हमारी सुनने वाला कोई नहीं है। लेकिन अब हमारा कोई नहीं है तो हम लोग आवेदन देकर मांग करने के सिवाय कुछ कर भी नहीं सकते, पर उम्मीद है कि, हमें सुविधा मिल जाएगी। हांलांकि जिला पुलिस व जिला पंचायत ने संयुक्तरूप से तकरीबन दो साल पहले ऐसे आत्मसमर्पित व नक्सल पीडि़त परिवारों के लिए एक कार्यशाला का भी आयेजन किया था। जिसमें ऐसे लोगों की समस्या आदि का निराकरण भी किया गया था। ज्ञात हो कि, इस कार्यशाला के लिए पहले ही पंचायतों इसकी सूचना भी भेजी गई थी। जिससे कि, ऐसे लोगों को पुर्नवास निति का लाभ मिलने के साथ ही अन्य सुविधाएं भी मिल पाए इस दौरान तकरीबन 150 से ज्यादा लोगों को आंकड़ों के अनुसार रोजगार व अन्य सुविधाएं मुहैया कराई गई थी।
नौकरी दी पर हटा दिया
आत्मसमर्पित नक्सल पीडि़त संपत कोर्राम ने बताया कि, वह 7 साल तक माओवादी संगठन से जुडक़र काम किया और जब नक्सल पूर्नवास नीति की जानकारी मिली तो उसने आत्मसमर्ण कर दिया। इस दौरान उसे पुलिस ने अपना गोपनीय सौनिक भी बनाया पर छह माह के बाद उसे हटा दिया गया। उसने बताया कि, उस पर तीन लाख का ईनाम भी घोषित था, लेकिन समर्पण करने के बाद भी उसे अब तक इसका कोई लाभ नहीं मिल पाया है। समर्पण करने के साथ ही वह अपने गांव के साथ ही सबकुछ छोडक़र परिवार के साथ शहर आ गया। लेकिन हमें योजना का लाभ नहीं मिल पाने से अब कई तरह की आर्थिक दिक्कते झेलनी पड़ रही है।
परिवार को नहीं मिली कोई सुविधा
नक्सल पीडि़त परिवार के रामसिंग ने बताया कि, उसके बड़े भाई को माओवादी उठाकर ले गए थे और वह उनके साथ चार माह तक रहा। इसी बीच उसका भाई वापस गया तो उसे पुलिस वालो ने पकडक़र अपने साथ रख लिया। और जब इसकी सूचना माओवादियों तक पहुंची तो उन्होंने हम परिवार वालों को यह कहते हुए घर व गांव छोडक़र निकल जाने का फरमान सुनाया कि, उसका भाई पुलिस की मुखबीर बन गया है। फरमान सुनाए जाने डर के मारे हम लोग केशकाल आ गए और पुलिस ने नियमानुसार सुविधा मुहैया कराने की बात तो कही थी। लेकिन अब तक हम लोगों को कोई खास सुविधा नहीं मिल पाई है, जिससे हम परिवार वाले काफी परेशान है और बड़ी दिक्कतों से अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
दुर्जन कोर्राम ने बताया कि, वह आत्मसमर्पित नक्सली है और समर्पण के बाद उसे सहायक आरक्षक की नौकरी तो दी गई पर 12 साल सेवा करने के बाद भी परमोशन नहीं किया जा रहा था। इसके साथ उसे प्रताडि़त भी होना पड़ रहा था, जिससे वह काफी परेशान हो चला था। और इसके चलते वह परेशान होकर काफी दिनों तक ड्यूटी पर नहीं गया। और जब लिखा-पढ़ी कर आपना आदम दिया इसके कुछ दिनों बाद ही उसे सेवा से पृथक कर दिया गया। जिसके चलते अब वह कुली-मजदूरी करने को मजबूर हो गया है। गांव भी नहीं जा पा रहे है, उसने बताया कि, बारदा दलम के साथ ही अन्य माओवादियों दलम से जुड़े लोगों ने बड़ी संख्या में समर्पण तो किया। पर उनमें से कुछ लोगों की रोजगार व सुविधा दी गई शेष लोगों को अब तक सुविधाए नहीं मिल पा रही है।


