कोण्डागांव

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कोण्डागांव, 27 अक्टूबर। आदिवासियों के आरक्षण में कटौती करने के विरोध में सर्व आदिवासी समाज ने राज्योत्सव और राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का विरोध करने का फैसला किया है।
सर्व आदिवासी समाज के पदाधिकारियों का कहना है कि छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा 1 से 3 नवम्बर तक तृतीय राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस आयोजन का सर्व आदिवासी समाज, जिला कोण्डागांव बहिष्कार करता है।
आगे कहा कि आदिवासियों का घर हसदेव जंगल उजाडक़र आप उत्सव मना रहे हंै। आदिवासी समाज ने हसदेव जंगल बचाने के लिए अनेक प्रदर्शन किया। लेकिन, अपनी हठधर्मिता के कारण हजारों पेड़ों को कटवा दिये।
छत्तीसगढ़ राज्य में आदिवासियों की बहुलता के कारण अनुसूचित क्षेत्र बस्तर संभाग व सरगुजा संभाग में स्थानीय भर्ती पर 100 प्रतिशत और प्रदेश स्तर पर 32 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त था। आदिवासियों के आरक्षण को छीनकर आप राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का ढोंग कर रहे हैं। पेशा कानून में ग्राम सभा के अधिकारों को कमजोर किया गया। पेशा कानून लागू करने का वादा कर आदिवासियों के साथ आपके द्वारा छलावा किया गया।
सरकार में बैठे राजनीतिक जनप्रतिनिधि आरक्षण पर मुंह खोलने को तैयार नहीं है और उनके रहते आदिवासियों के साथ बहुत बड़ा धोखा हो रहा है। वर्ष 2001 से 2012 तक वैसे भी 12 प्रतिशत आरक्षण कम मिला। सभी आदिवासी नेताओं पर भरोसा करके चुप रहे, लेकिन अब समय आ गया है। सरकार सता और शासन चलाने वाले जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध विरोध का बिगुल एवं स्वर उठने लगे हैं, जो लगातार दिखाई दे रहे हैं।
सरकार अभी तक 1 महीने से ज्यादा हो गया, सुप्रीम कोर्ट नहीं पहुंच पाई है। मुख्यमंत्री सिर्फ आश्वासन देते रहे हैं और हमारे मंत्री, विधायक बोल भी नहीं पा रहे हैं, ऐसी स्थिति में समाज ने निर्णय लिया है कि, जो आदिवासियों की काम नहीं करेगा उनका विरोध सडक़ पर आकर गांव गांव में, नगर नगर में, जनजाति के प्रत्येक सामाजिक समूहों द्वारा आदिवासी नेताओं का बहिष्कार किया जाएगा और यह सिलसिला तब तक चलता रहेगा। आदिवासियों को उनके हक अधिकार संविधान प्रदत संवैधानिक व्यवस्था लागू नहीं हो जाता। इस घटना से आदिवासी समाज में गहरा आक्रोश व्याप्त है और यह आक्रोश लगातार बढ़ते जा रहा है। कहीं-कहीं अप्रिय घटना होने की भी संभावना दिखाई दे रही है, समाज के आक्रोश को अगर सरकार द्वारा समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया।
सरकार को पूरे प्रदेश में आदिवासियों का विरोध का सामना करना पड़ेगा, जिसका परिणाम आरक्षण नहीं तो वोट नहीं आरक्षण नहीं तो विधायक नहीं और आरक्षण नहीं तो सांसद नहीं आरक्षण नहीं जो जनपद और जिला पंचायत अध्यक्ष नहीं, आरक्षण नहीं तो पंच सरपंच नहीं आरक्षण नहीं तो भर्ती में त्रुटिपूर्ण व्यवस्था को समाप्त किया जाए।