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पाकिस्तान: 'धोखे से' ईशनिंदा मामलों में फंसाए जा रहे हैं लोग
15-Oct-2024 1:34 PM
पाकिस्तान: 'धोखे से' ईशनिंदा मामलों में फंसाए जा रहे हैं लोग

पाकिस्तान में ऐसे कई "निगरानी समूह" सक्रिय हैं, जो झूठे सबूत बनाकर लोगों को ईशनिंदा मामलों में फंसा रहे हैं. कैसे काम करते हैं ये कथित विजिलेंटी ग्रुप और उनका मकसद क्या है?

 (dw.com)

पाकिस्तान की आरूसा खान अपने 27 साल के बेटे के लिए परेशान हैं. वह बताती हैं कि उनका बेटा वॉट्सएप पर चैटिंग कर रहा था और एकाएक उसपर ऑनलाइन ईशनिंदा करने का आरोप लग गया. "निगरानी समूहों" (विजिलेंटी ग्रुप्स) ने आरोप लगाया कि आरूसा खान के बेटे ने ईशनिंदा की है. अब उसपर मुकदमा चल रहा है. पाकिस्तान में इस अपराध की सजा मौत है.

आरूसा खान का बेटा उन सैकड़ों युवाओं में है, जिनपर पाकिस्तान की विभिन्न अदालतों में मामले चल रहे हैं. उनपर ऑनलाइन या वॉट्सएप ग्रुप पर ऐसी सामग्री डालने का आरोप है, जो ईशनिंदा मानी जाती हैं. हालिया सालों में ईशनिंदा आरोपों में होने वाली गिरफ्तारियां विस्फोटक रूप से बढ़ी हैं.

समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक, पाकिस्तान में ऐसे कई 'विजिलेंटी ग्रुप' (सतर्कता या निगरानी समूह) सक्रिय हैं, जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों या मैसेजिंग ऐप्स पर ईशनिंदा के कथित मामलों पर नजर रखते हैं. ईशनिंदा के कई मामलों में ऐसे ही समूह शिकायत कर गिरफ्तारी करवाते हैं.

एएफपी ने मानवाधिकार संगठनों और पुलिस के हवाले से बताया है कि ऐसे कई निजी समूहों की कमान वकीलों के हाथ में है और इन्हें ऐसे स्वयंसेवकों से समर्थन मिलता है, जो इंटरनेट पर संदिग्धों या "अपराधियों" की तलाश करते रहते हैं. स्थानीय पुलिस की रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि निगरानी समूहों की इस मोडस ऑपरेंडी के पीछे वित्तीय लाभ जैसी मंशा हो सकती है. 

निगरानी समूहों पर लोगों को धोखे से फंसाने का आरोप
गिरफ्तार युवाओं के परिजनों का कहना है कि उनके बच्चों को धोखे से फंसाया गया. जैसा कि आरूसा खान कहती हैं कि धोखा देकर उनके बेटे से वॉट्सएप पर ब्लासफेमस सामग्री साझा करवाई गई. वह बताती हैं कि उनका बेटा वॉट्सएप पर एक ग्रुप में शामिल हुआ. यह ऐसे लोगों के लिए था, जो नौकरी की तलाश में हैं. यहां एक महिला ने उससे संपर्क किया. आरूसा के मुताबिक, उस महिला ने उनके बेटे को एक तस्वीर भेजी, जिसमें कुछ महिलाओं के शरीर पर कुरान की पंक्तियां अंकित थीं.

आरूसा बताती हैं, "बाद में उस महिला ने ऐसा कुछ भेजने की बात से इनकार कर दिया. उसने अहमद से कहा कि वह उसे वही फोटो भेजे, ताकि वह समझ सके कि अहमद क्या कह रहा है." इस घटना के बाद आरूसा के बेटे को फेडरल इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी (एफआईए) ने गिरफ्तार कर लिया. आरूसा कहती हैं, "हमारी जिंदगी सिर के बल उलट गई है." यह अपनी तरह का पहला मामला नहीं है. ऐसे एक समूह के कारण पिछले तीन साल में 27 लोगों को ईशनिंदा आरोपों में उम्रकैद या मौत की सजा सुनाई जा चुकी है.

अपना क्या मकसद बताते हैं जांच समूह?
पाकिस्तान में ईशनिंदा ऐसा आरोप है, जहां महज शक के आधार पर या निराधार आरोपों के दम पर लोग बौखला जाते हैं. ऐसे मामलों में भीड़ द्वारा लिंच किए जाने की घटनाएं भी हो चुकी हैं. इसी साल जून में खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में ईशनिंदा के आरोप में सियालकोट के एक सैलानी को भीड़ ने थाने से बाहर निकाल कर मार डाला था.

एएफपी ने बताया है कि हालिया समय में उसके संवावदाता राजधानी इस्लामाबाद में ऐसी कई अदालती कार्यवाहियों में मौजूद रहे हैं, जहां निजी निगरानी समूहों और एफआईए की ओर से ईशनिंदक सामग्रियां ऑनलाइन साझा करने के आरोपों में युवाओं पर केस चलाया जा रहा है. लीगल कमीशन ऑन ब्लासफेमी पाकिस्तान (एलसीबीपी), सबसे सक्रिय निजी जांच समूह है. एलसीबीपी ने एएफपी को बताया कि वो 300 से ज्यादा लोगों पर केस चला रहे हैं.

ऐसे ही एक जांच समूह के नेता शेराज अहमद फारूकी ने बताया कि एक दर्जन से ज्यादा लोग इस काम में जुड़े हैं. फारूकी के मुताबिक, ये लोग मानते हैं कि "ऊपरवाले ने उन्हें इस काम नेक काम के लिए चुना है." एक अदालत के बाहर मिले फारूकी ने कहा, "हम किसी का सिर नहीं काट रहे हैं. हम तो कानूनी प्रक्रिया का पालन कर रहे हैं." फारूकी जिस कोर्टरूम के बाहर मिले, वहां ईशनिंदा के 15 मामलों पर सुनवाई हुई थी. सभी केस फारूकी के ही संगठन ने दायर किया था. फारूकी ने यह भी माना कि पुरुषों को खोजने और गिरफ्तार करवाने में महिलाएं शामिल हैं, लेकिन वे ग्रुप की सदस्य नहीं हैं.

"ब्लासफेमी बिजनस" रिपोर्ट में की गई सिफारिश
ऐसे मामले अदालतों में सालों साल चलते हैं, हालांकि जिन्हें मौत की सजा सुनाई जाती है वे सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं. यहां ज्यादातर मामलों में आजीवन कारावास दे दिया जाता है. पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) का कहना है कि ज्यादातर निगरानी समूह एक निश्चित एजेंडे के तहत काम कर रहे हैं और सोशल मीडिया के जरिए लोगों के खिलाफ ईशनिंदा के आरोप पुख्ता करने के लिए सबूत इकट्ठा करते हैं. एचआरसीपी एक स्वतंत्र और गैर-सरकारी संगठन है.

आयोग ने 2023 की अपनी एक रिपोर्ट में बताया, "ऐसे समूह बहुसंख्यक इस्लाम के स्वघोषित रक्षकों द्वारा बनाए जाते हैं." 2024 में पंजाब प्रांत के पुलिस विभाग की रिपोर्ट मीडिया में लीक हो गई थी. इसमें कहा गया था कि "एक संदिग्ध गिरोह युवाओं को ईशनिंदा के मामलों में फंसा रहा है."

"ब्लासफेमी बिजनस" नाम की यह रिपोर्ट एफआईए को इस अनुशंसा के साथ भेजी गई थी कि वह एक व्यापक जांच शुरू कर विजिलेंटी ग्रुपों की फंडिंग की जांच करे. एफआईए के दो अधिकारियों ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि उनके विभाग को यह रिपोर्ट मिली थी. हालांकि, उन्होंने इससे इनकार किया कि उनका विभाग निगरानी समूहों से मिली जानकारियों के आधार पर कार्रवाई करता है. एफआईए ने आधिकारिक तौर पर कोई भी जवाब नहीं दिया.

बिक जाती है जमीन और जायदाद
अराफात मजहर, 'अलायंस अगेंस्ट ब्लासफेमी पॉलिटिक्स' नामक संगठन के निदेशक हैं. यह संगठन ईशनिंदा कानूनों के बेजा इस्तेमाल का विरोध करता है. उन्होंने एएफपी से बातचीत में कहा कि ईशनिंदा के मामलों में चिंताजनक वृद्धि का कारण यह नहीं है कि "लोग एकाएक ज्यादा ईशनिंदक हो गए हैं." मजहर के मुताबिक, इसका कारण मैसेजिंग ऐप्स और सोशल मीडिया के इस्तेमाल में वृद्धि है. लोग आसानी से कॉन्टेंट शेयर या फॉरवर्ड कर पाते हैं.

ऐसे मामलों में आरोपियों और उनके परिवारजनों को बचाव के लिए वकील आसानी से नहीं मिलते हैं. कई बार तो महज आरोपों की वजह से पूरे परिवार को बहिष्कृत कर दिया जाता है. ऐसा ही नफीसा अहमद के परिवार के साथ हुआ. उनके भाई पर लगे ईशनिंदा के आरोपों के चलते पूरे परिवार को रिश्तेदारों ने बहिष्कृत कर दिया है. नफीसा अहमद ने बताया कि ऐसे मुकदमे लड़ने के लिए कई परिवारों को अपने घर और जेवर बेचने पड़े. कई पीड़ित परिवार एक सहायता समूह बनाकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. उनकी मांग है कि निगरानी समूहों और उनकी भूमिका की जांच के लिए एक स्वतंत्र आयोग बनाया जाए.

एवाई/एसएम (एएफपी)


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