अंतरराष्ट्रीय

-एमिली मैक्गार्वी
इसराइल की नई दक्षिणपंथी सरकार के न्याय व्यवस्था में बदलाव से जुड़े प्रस्तावों के ख़िलाफ़ 80 हज़ार से अधिक लोग तेल अवीव की सड़कों पर उतर आए.
स्थानीय मीडिया ने प्रदर्शनकारियों की संख्या एक लाख के आसपास बताई है.
न्याय व्यवस्था में प्रस्तावित सुधारों के लागू होने के बाद इसराइल की संसद के लिए देश के सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को पलटना आसान हो जाएगा.
प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के प्रस्तावित बदलावों को लोकतांत्रिक व्यवस्था पर हमला बताया है.
ये प्रदर्शन इसराइली इतिहास में धार्मिक तौर पर सबसे कट्टर मानी जा रही सरकार के शपथ लेने के एक महीने से भी कम समय के अंदर हो रहा है.
स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों के अनुसार यरुशलम और हाइफ़ा जैसे शहरों में प्रधानमंत्री नेतन्याहू के आवास के बाहर भी प्रदर्शन हुए हैं.
तेल अवीव में एक बड़े हाइवे को जाम करने के दौरान प्रदर्शनकारियों के एक समूह की पुलिस से झड़प की भी ख़बरें हैं.
आलोचकों का कहना है कि प्रस्तावित सुधार न्याय व्यवस्था की स्वतंत्रता को पंगु बना देंगे. इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा. ये अल्पसंख्यकों के हक में बाधा डालेंगे और इससे इसराइल की अदालती व्यवस्था में भरोसा कमज़ोर होगा.
प्रदर्शन के दौरान कुछ बैनरों में बिन्यामिन नेतन्याहू की गठबंधन सरकार को "शर्मनाक" बताया गया.
जिनका विरोध हो रहा है उनमें इसराइली सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एस्थर हयात और देश के अटॉर्नी जनरल शामिल हैं.
तेल अवीव में मौजूद बीबीसी न्यूज़ की संवाददाता समांथा ग्रैनविले ने प्रदर्शनकारियों को इसराइली झंडों में लिपटे देखा. इनके हाथ में हिब्रू भाषा के पोस्टर और नेतन्याहू की तस्वीरें थीं, जिनमें उनके मुंह पर लाल निशान बने थे.
वहां लड़कियों का एक झुंड ऐसा था, जो अपने चेहरे पर छपे लाल निशान से सरकार को ये बताना चाह रही थीं कि वो चुप नहीं रहेंगे.
आंसू पोंछ रही एक महिला ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर कहा कि उनके परिवार ने यहूदियों के साथ हुआ नरसंहार झेला है.
उन्होंने कहा, "मेरे माता-पिता एक गैर-लोकतांत्रिक सत्ता को छोड़कर यहां लोकतंत्र में रहने आए थे. वे तानाशाही शासन को छोड़कर आज़ादी से रहने के लिए आए थे. अब उसे नष्ट होते देखना दिल तोड़ने वाला है."
वो और उनकी दोस्त कहती हैं कि उन्हें नेतन्याहू की नई गठबंधन सरकार की ओर से बड़े बदलावों की उम्मीद थी लेकिन कभी नहीं लगा था कि ये सब इतना जल्दी होगा.
नेतन्याहू की नई गठबंधन सरकार बीते महीने ही बनी है. तब से ये सरकार के ख़िलाफ़ सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन है.
'द यरुशलम पोस्ट' की ख़बर के अनुसार, पूरे विरोध प्रदर्शन के दौरान भीड़ के नारों में "बीबी घर जाओ", "अपमान" और "लोकतंत्र" का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल हुआ.
नेतन्याहू को उनके समर्थक 'किंग बीबी' कहते हैं.
विपक्षी पार्टियों ने इसराइलियों से "लोकतंत्र को बचाने" और प्रस्तावित न्यायिक सुधारों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन में जुड़ने का आह्वान किया था.
बिन्यामिन नेतन्याहू को बचाने के लिए बदलाव?
जनवरी के पहले सप्ताह में इसराइल के न्याय मंत्री यारिव लेविन ने न्याय व्यवस्था में सुधार का प्रस्ताव पेश किया था.
एक बार ये सुधार लागू हो जाएंगे तो इसराइल की संसद के पास साधारण बहुमत से सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को रद्द करने की शक्ति होगी. ये मौजूदा सरकार को बिना किसी डर के कानून पारित करने में सक्षम बना सकता है.
आलोचकों को डर है कि नई सरकार इसका इस्तेमाल प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू पर चल रहे आपराधिक मुक़दमों को ख़त्म करने के लिए कर सकती है. हालांकि, सरकार ने ये नहीं कहा है कि वो ऐसा करेगी.
नेतन्याहू पर रिश्वत लेने, धोखाधड़ी और विश्वासघात के आरोपों में मुक़दमा चल रहा है. हालांकि, नेतन्याहू इन आरोपों का खंडन करते रहे हैं.
लेकिन इन आरोपों की वजह से ही जून 2021 में लगातार 12 साल पीएम रहने के बाद नेतन्याहू को अपना पद छोड़ना पड़ा था.
बीते साल नवंबर में हुए चुनावों में बिन्यामिन नेतन्याहू ने सत्ता में वापसी की थी.
आशंका ये भी जताई जा रही है कि ये सुधार जजों की नियुक्ति में नेताओं के दखल को बढ़ा देंगे.
अगर ये सुधार कानून के तौर पर पारित हो जाता है तो इससे सरकार के लिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौतियों की चिंता के बगैर कब्ज़े वाले वेस्ट बैंक में यहूदी बस्तियों के पक्ष में कानून बनाना आसान हो सकता है.
इसराइल पहले इस तरह के कदमों की अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं को दबाने के तरीके के तौर पर अपनी सरकार के ख़िलाफ़ आदेश देने की सुप्रीम कोर्ट की शक्ति को उजागर करता आया है.
जानकारों का मानना है कि प्रस्तावित सुधारों से अल्पसंख्यकों के अधिकारों को बड़ा झटका लग सकता है.
नेतन्याहू के रिश्तेदार भी विरोध में उतरे
प्रदर्शन करने वालो में न सिर्फ विपक्षी पार्टियों के नेता शामिल हैं बल्कि प्रधानमंत्री नेतन्याहू के परिवार के सदस्य भी इससे जुड़ रहे हैं.
'द यरुशलम पोस्ट' से बात करते हुए बिन्यामिन नेतन्याहू के रिश्ते के भाई डैन नेतन्याहू ने कहा कि नए सुधारों में नाज़ी जर्मनी की झलक दिखती है.
डैन नेतन्याहू ने कहा कि अगर आज बिन्यामिन नेतन्याहू की मां शोशाना नेतन्याहू, जो ख़ुद हाई कोर्ट की जज रह चुकी थीं, जीवित होतीं, तो वो भी इन सुधारों का विरोध कर रही होतीं.
वो कहते हैं, "इसराइल और दुनिया में कई लोग प्रस्तावित सुधारों और नाज़ी जर्मनी के दौर में लाए उस कानून के बीच समानता देखते हैं, जिसने उन्हें अपनी योजना के लिए किसी भी कानूनी बाधा को दूर करने में सक्षम बनाया था."
विपक्षी सांसद बेनी गांत्ज़ ने बीते सप्ताह नेतन्याहू पर देश को गृह युद्ध की ओर ले जाने का आरोप तक लगाया था.
विपक्षी नेता और आम चुनाव में नेतन्याहू से हारने वाले याएर लैपिड ने कहा, "नई सरकार देश के संवैधानिक ढांचे के लिए खतरा है."
उन्होंने ये भी कहा कि उनके सत्ता में लौटते ही ये सुधार वापस ले लिए जाएंगे.
प्रदर्शन से बेअसर नेतन्याहू सरकार
इतने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के अगले ही दिन प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने अपने कैबिनेट मंत्रियों के साथ बातचीत में ये स्पष्ट कर दिया कि सरकार प्रस्तावित सुधारों में बदलाव नहीं करेगी.
'द टाइम्स ऑफ़ इसराइल' की ख़बर के अनुसार नेतन्याहू ने रविवार को कैबिनेट मंत्रियों से कहा कि बीते साल हुए आम चुनाव के नतीजे जनता की मर्ज़ी को व्यापक तरीके से दर्शाते हैं. उन्होंने ये भी आशा जताई कि नए बदलाव न्याय प्रणाली में जनता के भरोसे को बहाल करेंगे.
वहीं, सरकार में शामिल गठबंधन के सांसद भी प्रस्तावित सुधारों में छोटे-मोटे बदलावों पर राज़ी हैं.
इसराइल के राष्ट्रपति आइज़ैक हरज़ोग ने कहा था कि वो इस मुद्दे पर दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता की कोशिश करेंगे.
लेकिन इस बीच एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इसराइल के न्याय मंत्रालय के अधिकारी अगले कुछ सप्ताह के भीतर इन सुधारों पर अपनी स्थिति स्पष्ट कर देंगे.(bbc.com/hindi)