संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : दो दिनों में दो खबरें, पुल गिरा, और शिक्षा का स्तर भी गिर गया
सुनील कुमार ने लिखा है
10-Jul-2025 6:06 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  दो दिनों में दो खबरें, पुल गिरा, और शिक्षा का स्तर भी गिर गया

गुजरात से कल यह भयानक खबर आई कि करीब एक किलोमीटर लंबे एक पुल के बीच का एक हिस्सा टूटकर नदी में गिर गया, और कई बड़ी गाडिय़ां सौ फीट से ज्यादा नीचे पानी में जा गिरीं। हादसे में 13 लोगों की मौत हुई है। इस खबर में ही कहा गया है कि 1985 में बने इस पुल में अभी पिछले चार साल में पुल के पिल्लर, और उसकी स्लैब के बीच फासला खड़ा हो गया था, और उस इलाके के एक जिला पंचायत सदस्य ने 2022 में ही कलेक्टर को इसकी शिकायत की थी। समाचार बताता है कि पुल में बड़ी खामी पाई गई थी, लेकिन इसे चालू रखा गया। पिछले चार साल में गुजरात में यह 16वां पुल टूटा है। कल के इस हादसे में मौतें और भी बहुत अधिक हो सकती थीं, अगर इसमें गिरी 9 गाडिय़ों में मुसाफिर बसें भी होतीं। अब इतनी बड़ी संख्या में अगर पुल गिरे हैं, तो यह गुजरात सरकार की साख पर भी आंच है। पिछले 25 से अधिक बरसों से वहां पर सिर्फ भाजपा की ही सरकार चल रही है, और आज देश में एक और दो नंबर के सबसे बड़े नेता, नरेन्द्र मोदी, और अमित शाह बरसों तक गुजरात को चलाए हुए हैं, और ऐसा न मानने की कोई वजह नहीं है कि आज भी गुजरात पर उनकी पैनी नजर नहीं रहती होगी। ऐसे में इस तरह के हादसे थोड़ा हैरान करते हैं।

कहने के लिए तो इस पुल की तोहमत कांग्रेस पर डाली जा सकती है जिसके राज में आज से 40 बरस पहले 1985 में यह पुल बना और चालू हुआ था। लेकिन पुल तो आधी-एक सदी के लिए बनते हैं, और सरकारें तो पांच-पांच बरस में आती-जाती रहती हैं। जो पुल 40 बरस चल गया, उसके बनने में तो कोई खामी रही नहीं होगी, वरना देश में जगह-जगह बनते-बनते पुल और फ्लाईओवर, ओवरब्रिज या मेट्रो के लिए ढांचे गिरते रहे हैं। अब 1985 के बाद से जो भी सरकारें आई हैं, उन सरकारों को अपने पहले बने हुए ढांचों का रखरखाव ठीक से करना था। आज भी भारत में अंग्रेजों के बनाए हुए हजारों पुल काम कर रहे हैं, जिनमें से बहुत से तो पत्थरों से बने हुए रेलवे ब्रिज हैं, जिन पर से लाखों रेलगाडिय़ां निकल चुकी होंगी। नदियों के ऊपर, खाई के ऊपर बने ऐसे ब्रिज अब तक काम कर रहे हैं, जिससे पता लगता है कि अंग्रेजों के वक्त नेता-अफसर-ठेकेदार का बरमूडा ट्रैंगल उस तरह काम नहीं करता था जिस तरह आज वह इस देश के हितों को डुबाने का काम करता है।

लेकिन हम अकेले पुल की बात को लेकर आज यहां चर्चा नहीं कर रहे। एक दूसरी खबर कल की है जिसमें केन्द्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय के राष्ट्रीय सर्वेक्षण परख के नतीजे आए हैं। पिछले बरस दिसंबर में 36 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के करीब पौन लाख स्कूलों में केन्द्र सरकार ने यह सर्वे कराया था, और इसमें अलग-अलग प्रदेशों में स्कूली बच्चों की पढ़ाई की हालत दिखाई गई है। दिलचस्प बात यह है कि जो तीन राज्य अलग-अलग कई पैमानों पर देश में सबसे ऊपर पाए गए हैं, उनमें पंजाब, हिमाचल, और केरल के नाम हैं। ये राज्य कल प्रकाशित खबर के हर पैमानों पर सबसे ऊपर है। केरल देश में पहले, दूसरे, या तीसरे नंबर पर है। दूसरी तरफ जिन पांच राज्यों की हालत स्कूली पढ़ाई में सबसे खराब मिली है, उनमें कुछ हैरान करने वाली बात यह है कि सबसे नीचे के पांच राज्यों में एक राज्य सबसे कमजोर साबित हुआ है, और वह गुजरात है। कक्षा 3 में बच्चों की गणित की समझ में गुजरात देश में सबसे कमजोर पाया गया है, जबकि गुजरात कारोबारियों का प्रदेश माना जाता है, जहां गणित लोगों की जुबान पर होना चाहिए था। कक्षा 6वीं में बच्चों की समझ के पैमाने पर गुजरात पूरे देश में आखिर से दूसरे नंबर पर है। और आंकड़ों का औसत निकालने के मामले में गुजरात के बच्चे देश में आखिरी पाए गए प्रदेश उत्तरप्रदेश से जरा ही ऊपर है, आखिरी से दूसरे नंबर पर। अब चूंकि यह सर्वे केन्द्र सरकार का ही करवाया हुआ है, इसलिए कोई यह भी नहीं कह सकते कि यह भारत के खिलाफ पूर्वाग्रह रखने वाली  किसी विदेशी संस्था के गलत आंकड़े हैं। गुजरात देश का एक अधिक संपन्न प्रदेश है, वहां उद्योग-व्यापार बड़े पैमाने पर विकसित है, और गुजरातियों की पूरी दुनिया में आवाजाही को भी सब अच्छी तरह जानते हैं, और देश भर गुजराती जहां जाते हैं, वहां वे सफल और संपन्न कारोबारी बनते हैं। इसके बाद भी अगर स्कूली शिक्षा के मामले में गुजरात इतना फिसड्डी साबित हुआ है, तो इसकी तोहमत हम वहां के बच्चों को नहीं देते, हम वहां की सरकार को इसके लिए जिम्मेदार मानते हैं, और हमें यह लगता है कि यह मोदी और शाह के लिए फिक्र की बात भी रहनी चाहिए। ऐसे आंकड़े किसी को भी अपने प्रदेश को सुधारने का एक मौका देते हैं।

देश के बाकी प्रदेशों को भी स्कूली शिक्षा के बारे में केन्द्र की इस सर्वे रिपोर्ट में अपनी जगह देखनी चाहिए, और कोशिश करनी चाहिए कि प्रकाशित रिपोर्ट से अधिक खुलासे अगर सर्वे के प्राथमिक-आंकड़ों में हों, तो उन्हें भी हासिल करना चाहिए, और इन सारे पैमानों पर अपने कामकाज को बेहतर बनाना चाहिए। यह देश के भीतर की बात है, और हमारा लंबा अनुभव यह कहता है कि भारत सरकार के सर्वे और अध्ययन के तरीके राजनीतिक भेदभाव के शिकार नहीं रहते, और वे ईमानदार आंकड़े सामने रखते हैं। ऐसा नहीं होता, और आंकड़ों में मिलावट रहती, तो फिर मोदी-शाह के गुजरात को कौन सा सर्वे कमजोर साबित करता? इसलिए हर प्रदेश को, और प्रदेशों के भीतर अगर जिला स्तर तक के आंकड़े हासिल हैं, तो जिलों को भी अपनी पढ़ाई-लिखाई को बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए। जहां तक स्कूली शिक्षा की बात है तो यह बिल्कुल ही बुनियाद है, बच्चों की जिंदगी की इमारत इसी नींव पर खड़ी होती है। हर राज्य को इस चुनौती को मंजूर करना चाहिए, और एक ईमानदार सुधार करना चाहिए। सरकारी स्कूलों की हालत ठीक न रहने का ही नतीजा रहता है कि लोग मजबूरी में अपनी क्षमता से बाहर जाकर भी अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजते हैं। ऐसे में हर पैमाने पर केरल अगर देश के टॉप-3 राज्यों में है, तो उससे भी बाकी प्रदेशों को कुछ सीखना चाहिए। हम इस बात को लिखते हुए अलग-अलग प्रदेशों में सत्तारूढ़ पार्टियों की चर्चा करना नहीं चाहते, और चाहे जिस पार्टी का जहां शासन हो, लोगों को अपने से बेहतर से सीखने की ईमानदार कोशिश करनी चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


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