संपादकीय

वॉट्सऐप जैसे मैसेंजर ऐप जो कि अब सोशल मीडिया की तरह भी गिना जाने लगा है क्योंकि उस पर लोगों के ग्रुप बन रहे हैं जो मुद्दों पर चर्चा करते हैं, बहस करते हैं, और तरह-तरह के फोटो, वीडियो, और लिंक एक-दूसरे के साथ साझा करते हैं। ऐसे प्लेटफॉर्म पर लोग रात-दिन एक-दूसरे से ऐसे वीडियो पोस्ट करते हैं जिसके साथ गुमनाम अपील भी लिखी रहती है कि कृपया-कृपया-कृपया आखिर तक देखें, और अधिक से अधिक लोगों को बढ़ाएं। नतीजा यह होता है कि बहुत से लोग ऐसे वीडियो या फोटो-लिंक बिना सोचे-समझे आगे बढ़ा देते हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह हाईवे पर किसी ट्रक के पीछे हॉर्न प्लीज लिखा देखकर पीछे से आ रही गाड़ी के ड्राइवर हॉर्न बजा देते हैं। ऐसे ही वॉट्सऐप पर पिछले दिनों कई नामी-गिरामी पत्रकारों के ट्वीट फैले थे जिनमें वे कह रहे थे कि किस तरह फ्रांस में चल रही हिंसा को देखते हुए लोगों ने यह अपील की है कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को फ्रांस भेजना चाहिए जहां वे एक दिन में हिंसा रोक देंगे। इसकी शुरूआत एक विदेशी दिखते हुए नाम के वेरीफाईड ट्विटर हैंडल से हुई थी जिस पर प्रो.एन.जॉन कैम ने ऐसी अपील की थी, और इस पर योगी आदित्यनाथ के ऑफिस ने लिखा था कि दुनिया में जहां कहीं भी साम्प्रदायिक दंगे भडक़ते हैं, और कानून व्यवस्था बिगड़ती है तो दुनिया उत्तरप्रदेश में महाराजजी द्वारा स्थापित योगी मॉडल की तरफ देखती है। सीएम के दफ्तर द्वारा किया गया री-ट्वीट वजन की बात होती है। बाद में कुछ फैक्ट चेकर्स ने कहा कि यह अकाऊंट ही फर्जी है, और इसके पीछे एक ऐसा हिन्दू-हिन्दुस्तानी है जिसे हैदराबाद की पुलिस अपने कर्मचारियों से धोखा करने के जुर्म में गिरफ्तार कर चुकी है। विदेशी लगते नाम वाले इस अकाऊंट को देखें तो यह जाहिर है कि यह मुसलमानों के खिलाफ हिन्दुस्तान में एक अभियान छेड़़े हुए है, और आक्रामक हिन्दुत्व को फैलाने का काम कर रहा है।
एक दूसरा वीडियो हिन्दुस्तान में चारों तरफ घूम रहा है जिसमें बिना कपड़ों की एक महिला लाठी लेकर पुलिस पर हमला करते दिख रही है, और पुलिस वाले कुछ प्रतिरोध करने के बाद मौका छोडक़र भाग रहे हैं। इसके साथ लिखा गया है कि मणिपुर में आंदोलनकारियों ने नंगी औरतों की एक ब्रिगेड बना ली है जो कि पुलिस और सुरक्षा बलों को मारकर भगा रही है। इसे लेकर तरह-तरह की बातें लिखी गईं कि भारत का यह क्या हाल हो गया है, और भारत में ऐसे दिन देखने पड़ रहे हैं। जब एक बड़े प्रकाशन के फैक्ट चेकर ने इस वीडियो की जांच की तो पता लगा कि इसका मणिपुर से कोई संबंध नहीं है, और यह अभी 2023 में उत्तरप्रदेश के म्युनिसिपल चुनावों के दौरान चंदौली में चुनाव लड़ रहे एक ट्रांसजेंडर के समर्थकों का है जो कि धांधली का आरोप लगाते हुए पुलिस से भिड़ गए थे, और वीडियो में महिला दिख रही वैसी ही एक ट्रांसजेंडर है।
किन्नरों के इस भारी विरोध-प्रदर्शन के बाद जब पुनर्गणना की गई, तो किन्नर-प्रत्याशी की जीत घोषित हुई, और पहले जीते घोषित किए गए भाजपा उम्मीदवार की हार हुई। इस वीडियो की जांच करने पर इसमें सोनू किन्नर जिंदाबाद के नारों की आवाज भी आ रही है, और इस फैक्ट चेकर ने पाया कि इसका मणिपुर से कुछ भी लेना-देना नहीं है।
अब सवाल यह उठता है कि वॉट्सऐप जैसे मैसेंजर और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तैरती बेबुनियाद चीजों को अगर किसी मुख्यमंत्री का कार्यालय अपनी तारीफ मानकर बढ़ाता है, और इस बात को गंभीरता से लेता है कि पूरी दुनिया में जहां-कहीं भी हिंसा भडक़ती है, वहां लोग योगी की तरफ देखते हैं, तो फिर बाकी अफवाहबाजों को क्या कहा जा सकता है? यूपी के सीएम के दफ्तर को शोहरत की इतनी हड़बड़ी भी क्यों होनी चाहिए कि वे ट्विटर पर विदेशी नाम वाले दिख रहे किसी व्यक्ति की लिखी गई बात को एक सर्टिफिकेट की तरह लेकर अपने मुख्यमंत्री का ढिंढोरा पीटें? फिर एक बात यह भी है कि बड़े-बड़े प्रकाशनों के, या मीडिया समूह के नामी-गिरामी पत्रकारों को अनजान नामों वाले फिरंगियों की लिखी बातों को लेकर अपने देश के किसी एक मुख्यमंत्री को महानता का दर्जा देने की इतनी हड़बड़ी क्यों है? कल ही देश के एक साइबर विशेषज्ञ ने एक लेख में लिखा है कि किस तरह इस देश की सरकारें सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों को भुगतान करके अपना प्रचार करवाने के फेर में हैं। मतलब यह कि अब जाने-माने और ईमानदार पत्रकारों की जरूरत किसी को नहीं रह गई है, और जो पेशेवर चारण और भाट की तरह स्तुति-वंदना कर सकते हों, उन्हीं की जरूरत सबको है।
हिन्दुस्तान के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जो मालिकान और नामी लोग आज चुनिंदा नेताओं के गुणगान करके फूले नहीं समाते, उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि एक-एक ट्वीट करने पर आज उन्हें जो भुगतान हो रहा है, कल वह सीधे-सीधे सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर नाम की एक नई नस्ल के पास जाने लगेगा, जो कि नेताओं को अधिक काम के दिखेंगे, सरकारों और पार्टियों के लिए अधिक असरदार ढिंढोरची साबित होंगे। हिन्दुस्तान जैसे लोकतंत्र में जहां आजादी की लड़ाई की शुरुआत से ही समर्पित और ईमानदार अखबारों की एक लंबी परंपरा रही है, वहां पर आज मामला पत्रकारिता से टीवी और डिजिटल होते हुए अब सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों तक पहुंच गया है, जिनके लिए न किसी ईमान की जरूरत है, न जिसके लिए पेशे के कोई उसूल हैं, बस उनकी पहुंच अधिक लोगों तक है, और नेताओं के लिए यही काफी है।
लेकिन जिस तरह रूस की तरफ से यूक्रेन जाकर मोर्चे पर लड़ाई लडऩे का काम वाग्नर नाम की भाड़े की फौज कर रही थी, कुछ उसी किस्म से मेहनताना पाकर किसी भी बात को आगे बढ़ाने का काम आज हिन्दुस्तान में लोग कर रहे हैं, और यह सिलसिला बढ़ते जा रहा है, और वाग्नर-लड़ाकों की तरह यहां भी अब कुछ लोग औरों के मुकाबले भी अधिक असरदार झूठ फैलाने वाले साबित हो रहे हैं। ये लोग फ्रांस में योगी की मांग खड़ी कर सकते हैं, और ये लोग उसी सांस में योगीराज की मतगणना की बेईमानी को मणिपुरी लोगों की बेशर्म संस्कृति बता सकते हैं। अपनी नालायकी या अपने जुर्म को किस आसानी से किसी और का जुर्म ठहराया जा सकता है, इसे हिन्दुस्तानी सोशल मीडिया पर भाड़े के सैनिकों में देखा जा सकता है।
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