संपादकीय
अमरीका के कई सरहदी राज्यों में वैसे तो पड़ोस के देशों से लोगों की गैरकानूनी घुसपैठ चलती ही रहती है, लेकिन अभी कुछ घंटे पहले वहां के टैक्सास में एक बड़ी लॉरी लावारिस पड़ी मिली जिसके भीतर 46 लाशें पड़ी हुई थीं। जाहिर तौर पर ये गैरकानूनी तरीके से अमरीका में आए हुए लोग थे जो कि मानव-तस्करी का कारोबार करने वाले लोगों की इस लॉरी में आगे ले जाए जा रहे थे। इसके भीतर न कोई एयरकंडीशनिंग थी, न ही पीने का पानी भी था, और इन 46 लाशों के बीच 16 लोग जिंदा भी मिले हैं जो कि लू और गर्मी की वजह से बुरी तरह तप रहे थे, और उन्हें अस्पताल ले जाया गया। अमरीका की मैक्सिको के साथ सरहद के करीब का यह हादसा वहां के पुलिस अफसरों को भी हिला गया है क्योंकि उन्होंने इतनी बड़ी संख्या में ऐसी लाशें नहीं देखी थीं। मानव तस्कर तरह-तरह के तकलीफदेह सफर से लोगों को अमरीका में लाते हैं, और सरहद से दूर ले जाते हैं, लेकिन मौतों का यह रिकॉर्ड नया है। अमरीका में मैक्सिको से आते पिछले महीने ही दो लाख 40 हजार अवैध घुसपैठियों को पकड़ा गया था, और कितने लोग आए होंगे इसका कोई अंदाज अभी नहीं है। लेकिन यह हाल सिर्फ अमरीका का हो ऐसा भी नहीं है, योरप के अधिकतर देशों में बाहर के देशों से ऐसी घुसपैठ चलती ही रहती है, और लोगों को याद होगा कि जब सीरिया, लिबिया, अफगानिस्तान जैसे देशों में गृहयुद्ध जैसे हालात थे, तो वहां के लोग भी दूसरे देशों में पहुंचते थे, और समुद्र तट पर एक छोटे बच्चे की लाश की तस्वीर लोगों को अब भी परेशान करती है।
यह हादसा उस दिन सामने आया है जिस दिन अमरीकी राष्ट्रपति जी-7 देशों के प्रमुख लोगों के साथ दुनिया की आर्थिक असमानता और मानवाधिकारों पर चर्चा कर ही रहे हैं। इस बैठक में ब्रिटिश प्रधानमंत्री भी मौजूद थे, और ब्रिटेन पिछले कुछ महीनों से अपनी एक शरणार्थी योजना को लेकर विवादों में घिरा हुआ है। ब्रिटेन पहुंचने वाले अवैध शरणार्थियों के लिए ब्रिटिश सरकार ने एक अफ्रीकी देश रवांडा के साथ एक समझौता किया है, और ब्रिटेन अपनी दिक्कतों को बढऩे से रोकने के लिए ऐसे आ रहे शरणार्थियों को अपने खर्च से रवांडा भेजेगा, और वहां पर उनके लिए बनाए गए शरणार्थी शिविरों का खर्च भी उठाएगा। यह नीति खुद ब्रिटेन में बहुत बुरी आलोचना से घिरी हुई है, और मानवाधिकार की फिक्र करने वाले लोग यह मानते हैं कि यह शरणार्थियों के प्रति जिम्मेदारी पूरी करना नहीं है, उन्हें मामूली खर्च से अपनी आंखों से, और अपनी सरहद से दूर धकेल देना भर है। खैर, ब्रिटिश सरकार के इस बारे में अपने तर्क हो सकते हैं, और हर देश की शरणार्थी नीति अपनी घरेलू फिक्रों, और वहां के खतरों को देखते हुए ही बनाई जा सकती है। कुछ मुस्लिम देशों से आने वाले शरणार्थियों को जगह देकर योरप के कई देशों में जिस तरह के सांस्कृतिक टकराव सामने आ रहे हैं, वे भी वहां स्थानीय सरकारों पर एक दबाव बने हुए हैं। इससे परे भी जब बाहर से आए हुए शरणार्थियों में से कुछ लोग धार्मिक आधार पर आतंकी हमले करने लगते हैं, तो स्थानीय आबादी के बीच भी शरणार्थियों के खिलाफ एक नाराजगी खड़ी होने लगती है। ऐसी बहुत सी बातें शरणार्थियों को जगह देने के साथ जुड़ी हुई हैं, और कुछ देशों में तो शरणार्थी नीति किसी राजनीतिक दल की जीत या हार भी तय कर देती हैं।
आज दुनिया में आर्थिक असमानताएं इतनी अधिक हैं कि बहुत से देशों में भूखे मरने के बजाय लोग जिंदगी दांव पर लगाकर किसी ऐसे देश में घुस जाना चाहते हैं जहां पर उनके जिंदा रहने की तो गारंटी रहेगी ही, हो सकता है कि उनकी अगली पीढ़ी उन विकसित देशों की पूरी संभावनाएं हासिल कर सकें। यह उम्मीद इस कदर दुस्साहस दे देती है कि लोग रबर की छोटी सी बोट पर सवार होकर समंदर पार करके ऐसे किसी देश तक पहुंचने का खतरा उठाते हैं, क्योंकि उन्हें यह तो मालूम रहता ही है कि उनके पहले ऐसी कोशिश करने वाले लोगों में से कुछ को कामयाबी भी मिली थी। और अपने देश के गृहयुद्ध के बीच, वहां की भुखमरी के बीच अपने बच्चों को हर दिन मरते देखने से बेहतर उन्हें यह लगता है कि जिंदगी के लिए एक कोशिश की जाए। आज जब जी-7 या किसी दूसरे किस्म के देशों के समूह बैठकर बाकी दुनिया की भी बात करते हैं, तो इस पर भी बात होनी चाहिए कि दुनिया के किसी भी देश के नागरिकों के कितने न्यूनतम अधिकारों की गारंटी करना संपन्न और विकसित देशों की जिम्मेदारी रहेगी। दुनिया में जब तक सबसे गरीब लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं होंगी, धार्मिक और राजनीतिक आधार पर हिंसा जारी रहेगी, गरीबों की अमीर देशों में घुसपैठ जारी रहेगी, और यह सिलसिला सरहदी सिपाहियों के रोके रूकने वाला नहीं है।
दुनिया के संपन्न और विकसित देशों को सबसे गरीब देशों की जिंदगी बेहतर बनाने के लिए अपनी वैश्विक जिम्मेदारी पूरी करनी चाहिए। आज धरती के किसी हिस्से पर कोई देश है, और किसी दूसरे हिस्से पर कोई दूसरा देश। लेकिन धरती तो एक ही है, और उसके हर इंसान का एक न्यूनतम अधिकार वैश्विक संपदा पर है ही। इस अधिकार का सम्मान करने की बात होनी चाहिए, और ऐसा किए बिना कोई भी देश अपनी इंसानियत का दावा नहीं कर सकेंगे। जब कोई हादसा एक सीमा से परे का तकलीफदेह होता है, तो ही वह सोचने पर मजबूर करता है। अमरीका में कल जितनी बड़ी संख्या में जिस हालत में लाशें मिली हैं, उन्हें देखते हुए दुनिया को एक ईकाई मानकर हालात सुधारने की कोशिश करनी चाहिए।
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