संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मुस्लिम महिलाओं की नीलामी करने वाला नौजवान किस धर्म का निकला, सोचने की जरूरत
04-Jan-2022 4:56 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  मुस्लिम महिलाओं की नीलामी करने वाला नौजवान किस धर्म का निकला, सोचने की जरूरत

इंटरनेट और कंप्यूटर पर तबाही का सामान फैलाने में कुछ पल लगते हैं, और अगर सरकार की नीयत न रहे तो उसे पकडऩे में साल भी लग जाते हैं। अभी पिछले कुछ दिनों से बुल्ली बाई नाम से एक एप्लीकेशन बनाया गया और उस पर देश की प्रमुख मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें और उनका नाम, उनका परिचय डालकर उनकी नीलामी की जा रही थी। जाहिर तौर पर यह हरकत उन मुस्लिम महिलाओं का हौसला पस्त करने के लिए थी जो कि सोशल मीडिया पर या भारत के सामाजिक जीवन में मुस्लिम समाज का एक बेहतर चेहरा हैं और जो सांप्रदायिकता के, कट्टरपंथ के खिलाफ लगातार लड़ती भी हैं। मकसद बड़ा साफ था कि इन्हें इतना बेइज्जत किया जाए कि वे डर-सहमकर घर बैठ जाएं और इनकी सक्रियता खत्म हो जाए। पिछले कुछ दिनों से यह चल रहा था और देश भर से केंद्र सरकार से यह मांग हो रही थी कि ऐसे साइबर जुर्म करने वाले मुजरिमों को तुरंत पकड़ा जाए। लेकिन केंद्र सरकार ने सिर्फ इंटरनेट पर इसके प्लेटफार्म को इस एप्लीकेशन को बंद करने के लिए कहा। सीधे कोई कार्यवाही नहीं की। दूसरी तरफ मुंबई पुलिस ने इसकी जांच करके बेंगलुरु से 21 बरस के एक इंजीनियरिंग छात्र को पकड़ा है। इस गिरफ्तारी के पहले तक सोशल मीडिया इस विवाद से उबला हुआ था कि ऐसी हरकत करने वाले लोग हिंदू हैं या मुस्लिम हैं, या कि कोई और है? दोनों तबकों के लोगों पर शक करने वाले लोगों के अपने-अपने तर्क थे, और अब जब यह मामला सामने आया तो पता लगा है कि यह विशाल कुमार झा नाम का इंजीनियरिंग छात्र है जो कि उत्तराखंड की एक महिला के साथ मिलकर यह हरकत कर रहा था। उसने मुस्लिम महिलाओं की नीलामी करने के लिए बुल्ली बाई नाम का एप्लीकेशन शुरू करके यह हरकत की थी। लेकिन इसके साथ-साथ विशाल कुमार झा ने खालसा सुपरमेसिस्ट नाम से एक सोशल मीडिया अकाउंट खोला था और उसने बहुत से और दूसरे खातों के नाम बदलकर सिख नामों से मिलते-जुलते नाम रख दिए थे और ऐसी हरकतें करने वाले लोगों को वह खालिस्तानी सिख बता रहा था। यह मामला खतरनाक इसलिए भी है कि मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ चल रहे इस अभियान के साथ-साथ यह सिखों को बदनाम करने का भी एक अभियान था, और यह तो भला हो मुंबई पुलिस का जिसने कि आनन-फानन कुछ दिनों के भीतर यह पकड़ लिया है। जबकि दूसरी तरफ मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ इसी तरह बिक्री का एक दूसरा मामला पिछले साल सामने आया था जिसमें सुन्नी डील्स नाम से मुस्लिम महिलाओं की नीलामी की जा रही थी और उस मामले में देश की सरकार ने पिछले बरस से लेकर अब तक कुछ नहीं किया था।

देश का साइबर कानून बहुत कड़ा है और देश का आईटी एक्ट ऐसे तमाम जुर्म से निपटने के लिए बनाया गया है, लेकिन सारी ताकत रहने के बावजूद देश की सरकार ने इस मामले में पता नहीं क्यों कुछ नहीं किया था। आज जब मुस्लिम महिलाएं परेशान होकर अपनी तकलीफ उजागर कर रही हैं तो फिल्मी दुनिया के एक मशहूर गीतकार और लेखक जावेद अख्तर ने कहा है कि मुस्लिम महिलाओं की ऐसी ऑनलाइन प्रताडऩा के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित केंद्र सरकार के लोगों की चुप्पी से सभी लोग हैरान हैं। एक साल के भीतर ही दूसरी बार ऐसा हो रहा है, सैकड़ों महिलाओं की ऑनलाइन नीलामी हो रही है, और ऐसे ही दौर में तथाकथित धर्म संसद का आयोजन हो रहा है सेना पुलिस और जनता को 20 करोड़ हिंदुस्तानियों को मार डालने को कहा जा रहा है, और इन तमाम मुद्दों पर प्रधानमंत्री की चुप्पी से सभी हैरान है। जावेद अख्तर ने पूछा है कि क्या यही है सबका साथ? पिछले एक हफ्ते में हिंदुस्तान के हजारों गैर मुस्लिम लोगों ने भी ऐसी हरकत के खिलाफ लिखा था, और अब जब साइबर सबूतों के आधार पर मुंबई पुलिस ने एक हिंदू नौजवान को गिरफ्तार किया है तो इस पूरी साजिश का भंडाफोड़ भी होना चाहिए किसके साथ में और कौन लोग थे। गनीमत यही है कि यह मामला मुस्लिम महिलाओं को परेशान और बदनाम करने का था इससे किसी और तरह के सांप्रदायिक तनाव को भडक़ाने की कोई कोशिश अभी तक नहीं हुई थी, वरना सिखों के नाम से सोशल मीडिया अकाउंट बनाकर इस किस्म के जुर्म करना देश में एक सांप्रदायिक तनाव भी पैदा कर सकता था। आज भी ऐसी हरकत करने वाले नौजवान के नाम से उसके हिंदू होने की जो शिनाख्त तो हो रही है उससे भी देश में एक अनावश्यक सांप्रदायिक तनाव खड़ा हो रहा है कि मुस्लिम समाज के खिलाफ और मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ आखिर किस हद तक हिंसा बर्दाश्त की जाएगी, और क्या यह मुस्लिम महिलाओं से अधिक, पूरे हिंदू समाज को बदनाम करने की हरकत नहीं है? मुस्लिम महिलाओं पर तो जाहिर तौर पर हमला हो रहा है, लेकिन हिंदू समाज को भी यह सोचना चाहिए कि एक हिंदू अगर इस किस्म की सांप्रदायिक हिंसा फैला रहा है, तो क्या उसे सचमुच ही हिन्दू कहलाने का हक़ है?

केंद्र सरकार के सूचना तकनीक मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस मामले के उठने पर कहा था कि केंद्र सरकार की एजेंसी इस मामले को देख रही है। यह एजेंसी कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम के नाम से बनाई गई है, और उसे दुनिया भर की ताकत भी दी गई है, लेकिन ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार की नजरों में यह मामला किसी इमरजेंसी का नहीं था इसलिए केंद्र की ऐसी ताकतवर एजेंसी से कोई कार्यवाही नहीं हुई, और मुंबई पुलिस ने अपने स्तर पर ही जांच करके एक आरोपी को गिरफ्तार किया है, और जैसा कि साइबर अपराधों के मामले में होता है, ये सबूत अदालत में आमतौर पर खड़े रहते हैं। अब इस मामले को लेकर उत्तराखंड की एक महिला के भी शामिल होने की बात आ रही है जिसके बारे में अभी अभी अधिक जानकारी नहीं आई है। दिल्ली पुलिस से भी इस मामले की शिकायत की गई थी लेकिन आम तौर पर सामाजिक कार्यकर्ताओं पर कहर बनकर टूट पडऩे वाली दिल्ली पुलिस ने भी इस मामले में कोई कार्यवाही नहीं की, और इस बात को लेकर दिल्ली के महिला आयोग ने पुलिस को एक नोटिस भी जारी किया है। यह पूरा सिलसिला एक बिगड़ैल या बदमाश, हिंसक और सांप्रदायिक नौजवान के किए जुर्म तक सीमित नहीं है। यह आज देश का एक मिजाज दिख रहा है, क्योंकि यह जुर्म किया तो एक, दो, या चार लोगों ने होगा लेकिन सोशल मीडिया पर ऐसे जुर्म के सामने आने के बाद मुस्लिम महिलाओं की खिल्ली उड़ाने वाले लोग हजारों की संख्या में थे। जब हजारों लोग अपने नाम और चेहरे के साथ ऐसी हिंसक और सांप्रदायिक बातें करने पर उतारू रहते हैं उनका हौसला बढा रहता है, तो यह जाहिर है कि देश की हवा में ही एक का जहर घुला हुआ है। यह सिलसिला समझने की जरूरत है कि जिस तरह प्रकृति में हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है ऐसा भी हो सकता है कि हिंदुस्तान में एक तबके के खिलाफ किए जा रहे सांप्रदायिक हमलों का किसी तरह का एक जवाबी हमला भी होने लगे, और इनके बीच देश एक पूरी तरह से अवांछित टकराव में घिर जाए। जिन लोगों को भी यह लग रहा है कि पांच राज्यों में होने जा रहे चुनाव के पहले देश में धार्मिक आधार पर एक ध्रुवीकरण हो जाना चुनावी फायदे की बात हो सकती है, उन लोगों को यह समझना चाहिए कि चुनाव तो आकर चले जाएंगे, लेकिन जिस तरह भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने का जहर आज एक चौथाई सदी बाद भी पूरी तरह खत्म नहीं हो सका है, कुछ वैसा ही सांप्रदायिक जहर पूरे देश की हवा में बचे रह जाएगा। चुनाव चले जाएगा जहर कायम रहेगा। यह भी याद रखने की जरूरत है कि किस तरह देश के रिटायर्ड कई सबसे बड़े फौजी अफसरों ने राष्ट्रपति को चि_ी लिखी है कि देश में फैलाई जा रही सांप्रदायिकता और मुस्लिमों के खिलाफ दिए जा रहे फतवों पर कार्रवाई करने की जरूरत है वरना यह देश की सुरक्षा के लिए भी एक खतरा रहेगा। जब बड़े-बड़े ओहदों पर रह चुके जनरल इस बात को कह रहे हैं तो इसकी गंभीरता को समझना चाहिए, यह सिर्फ देश के भीतर एक सांप्रदायिक हिंसा खड़ी करने की बात तक सीमित नहीं है ऐसा होने पर देश की हिफाजत भी खतरे में पड़ेगी। इस पूरे मामले में चैन से नजारा देखते हुए आरामकुर्सी पर बैठे हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और बाकी जजों को भी अपनी नैतिकता पर कुछ जोर देने की जरूरत है कि उन्होंने अब तक तथाकथित धर्म संसद के फतवों से लेकर इस तरह मुस्लिम महिलाओं की नीलामी पर मुंह भी नहीं खोला है जबकि उनकी संवैधानिक जिम्मेदारी बनती थी कि वे तुरंत ऐसे मामलों की खुद सुनवाई शुरू कर दें। अब ऐसे मामले एक-एक करके काफी संख्या में हो चुके हैं और मुस्लिमों का मानवसंहार करने के फतवे भी अच्छी तरह वीडियो पर दर्ज हो चुके हैं। अब भी अगर सुप्रीम कोर्ट देश में सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ाने की इन साजिशों की एक साथ सुनवाई नहीं करता है, तो उसका नाम भी भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में काले अक्षरों में लिखा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी आज चीख-चीखकर बोल रही है, ठीक उसी तरह जिस तरह की केंद्र सरकार की चुप्पी की आवाजें चारों तरफ गूंज रही है।
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