धमतरी

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कुरुद, 4 फरवरी। नगर सरकार चुनने के लिए होने वाले मतदान की तिथि जैसे-जैसे करीब आ रही है उम्मीदवारों की सक्रियता और बेचैनी बढ़ती जा रही है। इस बार अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से होना है। इस बार दलीय आधार पर यहाँ त्रिकोणा मुकाबला हो रहा है। कमल और पंजा के अरमानों पर ‘आप’ झाड़ू फेरने के लिए समान्य वर्ग के नराज वोटरों की घेराबंदी कर अपनी स्थिति मजबूत करने में लगी है।
नगर पंचायत कुरुद जो कि अपनी राजनीतिक जागरूकता के लिए प्रदेश भर में विख्यात है। यहाँ की माटी में जन्मे अजय चन्द्राकर ने अपने राजनीतिक कौशल से देश भर में कुरुद का नाम रौशन किया है। इस बार भी नगर एवं क्षेत्र में तीसरे इंजन की सरकार चुनने हो रहे चुनाव पर सबकी नजऱ लगी है। अबकी बार निकाय चुनाव के लिए आरक्षण का पिटारा खूला तो अध्यक्ष पद समान्य वर्ग के खाते में गया। लेकिन भाजपा और कांग्रेस ने लंबे समय से इस मौके के इंतजार में बैठे समान्य वर्ग की भावनाओं को अनदेखा कर इस बार भी ओबीसी प्रत्याशी को टिकट दे दी है।
भाजपा में जनरल कैटेगरी के कुछ लोगों ने दबी जुबान से अपनी मांग पांच जनपथ तक पहुंचाई,पर कोई रिस्पांस नहीं मिलता देख वे वापस अपने काम-धाम से लग गए। लेकिन भाजपा के मुकाबले कांग्रेस पार्टी में अधिक आंतरिक लोकतंत्र का फायदा उठा राहुल गाँधी के विचारों से प्रभावित एक पढ़े लिखे कांग्रेसी नेता ने खुलकर अपनी दावेदारी पेश की। सुनवाई नहीं होने पर उन्होंने बगावती तेवर के साथ खुद को इस चुनाव से अलग कर रखा है।
यहाँ पर यह बताना लाजमी होगा कि इस बार प्रत्याशी चयन के मामले में निवृतमान अध्यक्ष तपन चन्द्राकर ने दोनों ही पार्टियों को अपनी बनाई पीच पर खेलने के लिए विवश कर दिया। पांच साल के कार्यकाल में अपनी विशिष्ट शैली से जन-जुडाव बना खुद की पार्टी में विकल्प हिनता की स्थिति पैदा कर दी। साथ ही उन्होंने पिछली बार बुरी तरह से गच्चा खा चुकी विरोधी पार्टी को भी यह संदेश दे दिया कि मुकाबले में रहना है तो जनता में सबसे अधिक स्वीकार्य अनुभवी चेहरे को सामने लाना होगा। इस तरह कांग्रेस ने यहाँ तपन चन्द्राकर को अध्यक्ष पद के लिए रिपिट किया है। जबकि भाजपा ने दस बरस पहले नपं अध्यक्ष रही ज्योति भानु चन्द्राकर को फिर से मौका दिया है। लेकिन आम आदमी पार्टी ने समान्य वर्ग की भावनाओं का शिरोधार्य करते हुए जनरल केटेगरी के शिक्षित युवा विनोद सचदेवा को मैदान में उतारा है। वे अपने सिमित संसाधनों के साथ दिल्ली सरकार के मॉडल और केजरीवाल के विचार से मतदाताओं को जोड़ नगर सरकार के चुनाव को त्रिकोणीय बनाने दिन रात एक कर रहे हैं।