धमतरी
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
धमतरी, 26 अगस्त। परमात्मा की प्रतिमा मंत्रोच्चार से पूज्यनीय व वंदनीय बन जाती है। तप-साधना के माध्यम से हम जीवन का संशोधन कर सकते हैं। चातुर्मास के तहत इतवारी बाजार स्थित पार्श्वनाथ जिनालय में पर्यूषण पर्व के दूसरे दिन साध्वी मधु स्मिता ने यह बातें कहीं।
उन्होंने कहा कि पर्यूषण पर्व भाव प्रगट करने का पर्व है। तप-साधना से व्यक्ति जीवन को सार्थक बना सकता है। कई लोग सोचते हैं। परमात्मा की प्रतिमा से क्या मिलेगा। जब परमात्मा की प्रतिमा प्रतिष्ठित कर जागृत करते हैं, तो उनकी पूजा, दर्शन जीवन के लिए कल्याणकारी होता है। जिस प्रकार शिक्षा घर पर भी ग्रहण कर सकते हैं, लेकिन बच्चों को स्कूल-कालेज जाना पड़ता है। इसी प्रकार प्रभु की आराधना व दर्शन हेतु मंदिर जाना चाहिए। प्रतिष्ठित प्रतिमाएं हमारे जीवन में जागृति का बोध कराती है। यह सम्यक बोध हमारे जीवन का कल्याण करती है। तप साधना के माध्यम से हम जीवन का संशोधन कर सकते हैं। मिच्छामी दुक्कड़म का मतलब अपने मिथ्या कर्मों की आलोचना करना है। क्षमा याचना के लिए मानसिक तैयारी करें। क्षमा याचना का सरल उपाय है। इसके लिए 3 बातों पर ध्यान दें। पहला किसी की गलती को भूल जाए। दूसरा गलती का संग्रहण न करें। तीसरा सामने वाले की गलती पर युद्ध की स्थिति निर्मित न करें। इन बातों से हम क्षमा याचना की स्थिति में आ सकते हैं। सज्जन सज्जनता और दुर्जन दुर्जनता का परिचय देते हैं। जो हमारे कर्मो से मुक्ति में मदद करता है, उसे उपकारी माने। भूलों का प्रायश्चित परम आवश्यक है। कितना भी दान कर लें यदि प्रायश्चित न करे तो कर्मों का बंधन नहीं टूटता।
पर्यूषण पर्व में आत्मिक शुद्धि का विधान- साध्वी सुमित्रा
साध्वी सुमित्रा ने कहा कि पर्यूषण पर्व में आत्मिक शुद्धि का विधान है। परमात्मा, महापुरुषों ने समस्त जीवों के प्रति मैत्री का भाव स्थापित करने का संदेश दिया है। यह पर्व आत्मदर्शन का पर्व है। दुकानदारी, परिवार, व्यवसाय हमेशा चलता रहेगा। पर्यूषण पर्व साल में एक बार ही आता है। इस दौरान आत्मशुद्धि अवश्य करें। हमे आत्मा साधना करनी है। जिनवाणी श्रवण करने अवश्य रुप से सभी उपस्थित रहें। इससे मन शुद्ध होता है। आध्यात्म के उच्च द्वार पर पहुंच सकते हैं। आत्मा को जगाने कम से कम प्रवचन श्रवण की दशा सभी में होनी चाहिए। प्रवचन का श्रवण करने बड़ी संख्या में जैन समाजजन उपस्थित रहे।


