दलहन-तिलहन में कम पानी, आमदनी ज्यादा
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाजार, 21 मार्च। गर्मी का धान लेने से भूजल स्तर कम हो जाता है। एक अनुमान के मुताबिक 24 हजार एकड़ में गर्मी का धान लिया जा रहा है जिस पर 65 करोड़ की बिजली भी खर्च हो रही है जबकि धान का कुल उत्पादन 52 करोड़ का ही होगा। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे 5 गुना कम पानी में दलहन-तिलहन की फसल ली जा सकती है जिसके दाम भी धान से अधिक मिलेंगे और भूजल स्तर भी बचा रहेग जिससे गर्मी में पानी की किल्लत नहीं होगी।
एक एकड़ रबी फसल (धान) लेने में करीब 24 लाख लीटर पानी की खपत होती है जिसकी अपेक्षाकृत आमदनी बहुत कम है। अगर बड़े किसान फसल न लेकर पानी की बचत करते हैं तो वाटर लेवल को डाउन होने से बहुत हद तक बचाया जा सकता है।
जिले में 20 हजार पंप कनेक्शन
एक अनुमान के मुताबिक 20 हजार सिंचाई पंपों से खेतों में 65 करोड़ रुपए की बिजली खर्च करने के बाद 52 करोड़ की ग्रीष्मकालीन फसल का उत्पादन होगा। विद्युत विभाग के कार्यपालन अभियंता वीके राठिया ने बताया कि जिले में कृषि के लिए 20 हजार पंप कनेक्शन हैं, जिसमें 3 एचपी के पंप के लिए 6 हजार यूनिट तक किसानों को बिजली मुफ्त में दी जाती है। वहीं 5 एचपी पंप कनेक्शन वाले किसानों को 7500 यूनिट फ्री दी जाती है जो एक सीजन में फसल लेने के लिए पर्याप्त है। इस तरह किसान निशुल्क मिलने वाली औसतन 13 करोड़ यूनिट बिजली की खपत करते हैं। अगर 5 रुपए यूनिट के हिसाब से भी गणना की जाए तो 65 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं।
धान से 5 गुना कम पानी खर्च कर दलहन, तिलहन का उत्पादन लें
कृषि वैज्ञानिक प्रदीप कश्यप बताते हैं कि जिले के किसान गर्मी में धान की फसल के लिए सिर्फ इसलिए आकर्षित होता है क्योंकि क्षेत्र में पोहा मिल काफी संख्या में होने की वजह से उनकी उपज आसानी से बिक जाती है जबकि बहुत कम किसानों को यह जानकारी है कि धान के बाद धान की फसल लेने से फसल में बीमारी के कीटाणु लगातार विकसित होकर फसल पर बड़ी संख्या में आक्रमण करते हैं। इससे कीटनाशक दवाओं का खर्च बहुत अधिक आता है। इसके साथ ही मिट्टी की सेहत पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। धान की फसल में मिट्टी की साल में दो बार मताई से कड़ापन आ जाता है जिसकी वजह से धीरे-धीरे प्रति एकड़ उत्पादन का औसत गिरता जाता है। लगातार अत्यधिक मात्रा में भू-जल स्तर का दोहन करने की वजह से कुछ वर्षों बाद एैसी स्थिति हो जाएगी कि धान की फसल तो क्या दलहन, तिलहन की फसल के लायक भी पानी नहीं मिल पाएगा।
चना, मटर, तिवरा में कम पानी खर्च और कीमत भी ज्यादा
अगर किसान धान की फसल की जगह चना, मटर, तिवरा, सरसों, अलसी की खेती करता है तो उसे उससे कम खर्च में ही धान के बराबर का मुनाफा होता है। धान की जिस फसल पर एक एकड़ के पीछे 24 लाख लीटर भू-जल खर्च होता है, वहीं चना, तिवरा, मटर, सरसों, अलसी में प्रति एकड़ मात्र 4 लाख लीटर भू-जल ही खर्च हो पाता है जो ग्रीष्मकालीन धान में खर्च होने वाले पानी से 5 गुना कम है और बाजार में इनके रेट भी ज्यादा मिलेंगे।
कृषि विभाग ने भी किया है पानी की बचत का आंकलन
कृषि उपसंचालक सतराम पैकरा के अनुसार इस बार लगभग 24 हजार एकड़ में ग्रीष्मकालीन फसल ली जा रही है। प्रति एकड़ 14 क्विंटल औसत धान उत्पादन के हिसाब से जिले में कुल 3 लाख 36 हजार क्विंटल ग्रीष्मकालीन धान का उत्पादन होगा। अब अगर कृषि विभाग से मिली इस जानकारी के अनुसार ही देखा जाए तो धान का औसत मूल्य प्रति क्विंटल 1550 रुपए है। ऐसे में कुल उत्पादित फसल 52 करोड़ की होगी जबकि इतने उत्पादन में सिर्फ बिजली पर ही 65 करोड़ खर्च हो रहे हैं।
एक एकड़ फसल पर 24 लाख लीटर पानी
कृषि विज्ञान केंद्र भाटापारा के विशेषज्ञ डॉ. प्रदीप कश्यप के अनुसार एक एकड़ जमीन में धान की खेती के लिए करीब 60 सेंटीमीटर पानी की जरूरत होती है। इतना पानी करीब 24 लाख लीटर होता है और उपज 14-15 क्विंटल होती है। जिले के किसान इस वर्ष 9600 हेक्टेयर यानी करीब 24 हजार एकड़ जमीन में ग्रीष्मकालीन धान की फसल ले रहे हैं। इसमें करोड़ों लीटर पानी की खपत हो रही है। एक बार पंप का बटन ऑन करने के बाद पंप तभी बंद होता है जब बिजली गुल होती है। कभी-कभी किसान भी बटन चालू करके भूल जाते हैं जिससे करोड़ों लीटर पानी व्यर्थ ही बह जाता है।
इन गांवों में 300 फीट नीचे जा चुका है भूजल स्तर
मौजूदा समय में जलस्तर कुछ क्षेत्रों में 300 फीट के नीचे तक जा पहुंचा है। जिले में सबसे अधिक खराब स्थिति ग्राम धाराशीव, बगबुड़ा, बम्हनपुर, सीतावर, परसापाली, भालूकोना, ढाबाडीह, खैंदा, अमलडीहा, पैदा, खैरा, कोतरगढ़, कुम्हारी, अहिल्दा, चंगोरी, पैसर, अमलीडीह, बाजार भाठा, करदा, कोरिया, तिल्दा, लाटा, सिरियाडीह, डोंगरी, चिचिरदा, पड़रिया, पैजनी, जुरा, लाहोद, ढनढनी, मुण्डा, लवनबन, चैराभाठा, गिंदोला, कारी, सरवाडीह, कोसाही, जामडीह, कोहरौद, दतरेंगी, सुमा, कडार, दतरेंगा, टेहका, बुधवा, कोनी, बंजर, बगबुड़वा, परसवानी, धौराभाठा, पेंड्री, बोरतरा, तरेंगा, सूरजपूरा, बुचीपार, रोहरा, मनोहरा, हरिनभ_ा, टिमनी, चकरवाय, डेकुना, खर्वे, कोवाताल, संकरा, मानाकोनी, मिरगिदा आदि ग्रामों में पेयजल संकट अभी से खड़ा हो चुका है। इस तरह जिले के 40 से 50 गांवों में पानी की विकट समस्या हैं।