गरियाबंद
छत्तीसगढ़ी भूली बिसरी गीतों को सुनकर झूमे श्रोता
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजिम, 1 मार्च। राजिम माघी पुन्नी मेला के दूसरे दिन सांस्कृतिक मुख्यमंच पर लोककला मंच दुर्ग के कुलेश्वर ताम्रकार की टीम द्वारा ने लगातार गीतों कि बौछार किये। इन गीतों को सुनकर बुजूर्ग अपनी युवा अवस्था में चले गए तथा युवा अपने बचपने में चले गए और अभी वर्तमान के बच्चे गीत को सुनकर उलझन में पड़े दिखाई दिए।
इसी मंच पर गरियाबंद जिले के जिलाधीश नीलेश क्षीरसागर भी उपस्थित थे। लोककला मंच के कलाकार छत्तीसगढ़ी वेशभूषा में नजर आ रहे थे। सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरूआत अरपा पैरी के धार, गणेश वंदना, आकाशवाणाी से प्रसारित होने वाले को जब दर्शकों ने सुना तो ऐसा प्रतीत हुआ कि वे अपने रेडियों का जमाना याद आ गया। हाय डारा लोर गेहे रे...... इस गीत ने दर्शको को बांध रखने में सामर्थ दिखाई। अपने समय में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध गीत जो रायपुर दूरदर्शन और रेडियों में कते जंगल कते झाड़ी कते बनमा ओ.......।
इस गीत के माध्यम से धु्रव जाति में ममा फूफू के लडक़ी -लडका के विवाह के संबंध की जानकारी दिया गया है। इसके बाद स्वरगायक कुलेश्वर ताम्रकार का सबसे प्रसिद्ध गीत लहर मारे बुंदिया....., जिंदगी के नई हे ठिकाना लहरगंगा ले लेतेन जोड़ी...., कईसे दिखत हे आज उदास रे कजरी मोर मैना..... ये छत्तीसगढ़ी गीत का शान बना हुआ है। उसके बाद पंथी गीत तेहा बरत रईबे बाबा.....और फाग गीत गाकर मुख्यमंच को होली मय कर दिया । अंतिम प्रस्तुति ओम जय जगदीश..... थी।
मुख्य मंच पर पद्मश्री डॉ. ममता चंद्रकार कुलपति खैरागढ़ विश्वविद्यालय ने एक नया आयाम स्थापित किया। कला की साधना से लोककला के क्षेत्र में सतत् ऊंचाईयों की ओर अग्रसर रहीं उनके इस साधना में प्रेम चंद्रकार के मार्गदर्शन में लोककला मंच चिन्हारी बड़े-बड़े मंचों पर सफर कर रहीं है। उनकी टीम के द्वारा राजकीय गीत अरपा पैरी के धार...... गीत के साथ इसी के साथ एक के बाद एक झमाझम प्रस्तुति दी गई। नवदुर्गा भवानी तोरे शरण में हो..... इस भक्तिमय जसगीत से पूरा माहौल भक्ति के सागर में डुब गया मॉ दुर्गा के जयकारों से मंच गुंज उठा। छत्तीसगढ़ की संस्कृति को उजाकर करती और अपनी परम्परा को बनयें रखने के लिए बिहाव गीत काकर घर मड़व गड़ाव...... नदिया तीर के पटवा भाजी पट पट पट पट करथे रे.....राजिम के टुरा मन मट मट करथें.... गीत में छत्तीसगढ़ में होने वाले बिहाव के रीति-रिवाजों का बहुत सुन्दर वर्णन किया गया। जिसमें छत्तीसगढ़ की सौंधी माटी की झलक दिखाई दी जिसे सुन कर दर्शक दीर्घा झुम उठे। कर्मा नृत्य में सा.. रिलो रे रिलो रे गेंदा फुल.... की मनमोहर प्रस्तुति दी गई। माते रहिबे माते रहिबे माते रहिबे अलबेला मोर... गीत को सुनकर तालियों की गूंज से पूरा परिसर झुम उठा। आदिवासियों की बोली-भाषा और उनके रहन-सहन को दर्शाता यह गीत ढोलक और मंजिरो की थाप पर कलाकारों की एक लय स्वर और ताल में नृत्य देखकर दर्शकों ने दांतो तले उंगली दबा ली।
प्रेम चंद्राकर के द्वारा भात रांधेव साग रांधेव.... तोर मया के मारे... इस गीत में गॉव रहने वाले भोले-भाले लोगों की आभाव को दर्शाया गया है। कि पहले वाद्य यंत्रों की कमी होने के कारण कलाकार खड़े होकर गीत गाया करते थे और नृत्य करते थे। इसे बहुत ही सुन्दर ढंग से दर्शाया गया। कलाकारों ने मशाल लेकर बहुत की आकर्षक नृत्य प्रस्तुत किया जिसने ने समां बांध दी। मोला कैसे लागे राजा मोला कैसे लागे जोड़ी मोला कैसे लागे ना... इसमें देवार संस्कृति को दर्शाया गया है जिसमें बताया गया है कि वे अपने आजीविका किस प्रकार अर्जित करते है। ममता और प्रेम की युगल जोड़ी ने ददरिया प्रस्तृत किया जिसे छत्तीसगढ़ के गीतों का राजा कहा जाता है। यह एक प्रेम गीत है उनकी जोड़ी ने बहुत ही सुमधूर गीत की प्रस्तृति दी जिसे दर्शकों ने बहुत ही पसंद किया।
मैं होंगेव दिवानी रे का मोहनी खवाये ंना..... की प्रस्तृति ने लोगों को अंत तक बांधे रखा। इसके बाद गौरी-गौरा गीत की प्रस्तुति मंच पर दी गई तब उस समय गीत को सुनकर दर्शकों कई महिलाएं और पुरूष भी झूम उठे। मुख्यमंच में संचालन पुरूषोत्तम चन्द्राकर, मनोज सेन, महेन्द्र पंत द्वारा किया जा रहा है। लोककला मंच के कलाकारों कों कलेक्टर निलेश क्षीरसागर, पुलिस अधीक्षक भोजराम पटेल, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सुखनंदन राठौर, अपर कलेक्टर जेआर चौरसिया एवं जनप्रतिनिधियों के द्वारा स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया।