वनवास काल में राजिम पहुंचे रघुनंदन ने भगवान शिव के लिंग विग्रह का नाम रखा कुलेश्वर महादेव
लीलाराम साहू
नवापारा-राजिम, 11 फरवरी(‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता )। वनवास काल में प्रभु श्रीराम छत्तीसगढ़ के राजिम पहुंचे। कुल के ईश्वर की नित्य पूजा करने श्रीराम ने यहां के त्रिवेणी संगम में शिवलिंग की स्थापना की। रेत से बने शिवजी के लिंग विग्रह का नाम रघुनंदन ने कुलेश्वर (कुल के ईश्वर) महादेव रखा। महानदी, पैरी और सोंढ़ूर नदियों के संगम में स्थित मंदिर के आठवीं शताब्दी में निर्मित होने के प्रमाण मौजूद हैं।
पुरा विशेषज्ञों ने भी कुलेश्वर महादेव शिवलिंग की स्थापना का काल त्रेतायुग के दूसरे अवशेषों से मिले प्रमाणों के आधार पर किया है। किवदंतियों और पुरावेत्ताओं की मानें तो इस मंदिर से ही पंचकोषी यात्रा की शुरुआत होती है। यहां के भू-गर्भ से निकली गुफा को छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध शिवधामों से जुड़ा हुआ है। यह भी कहा जाता है कि प्रभु श्री राम की मुलाकात इसी स्थल पर लोमश ऋषि से हुई। मंदिर से कुछ ही दूरी में नदी तट पर आज भी लोमश ऋषि के आश्रम का प्रमाण है।
जिज्ञासा का केंद्र है कुलेश्वर महादेव मंदिर की नींव: राजिम के त्रिवेणी संगम में पैरी,सोंढुर एवं महानदी,तीन नदियों की धारा के बीच में सदियों से स्थापित कुलेश्वर महादेव मंदिर स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। मंदिर, प्राचीन भवन निर्माण का अनोखा उदाहरण है। तीन नदियों के तीव्रवेग के संगम में स्थापित इस मंदिर का मनोरम दृश्य बारिश के दिनों में जनमानस के कौतुहल का विषय रहता है। छत्तीसगढ़ की राजधानी नवा रायपुर से सटे राजिम के इस मंदिर की नींव आज भी वास्तुशास्त्रियों के शोध का बड़ा केंद्र हैं।
देशभर के दर्शनार्थियों में आस्था का प्रमुख केंद्र : सनातन धर्म के अनुयायी और पुरा संपदा में दिलचस्पी रखने वाले लोग यहां देश-विदेश से आते हैं। नदियों के संगम तट पर मौजूद मंदिर और उसके निर्माण से जुड़े प्रमाण वनवास काल में भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी की यहां होने की याद दिलाते हैं। यहां राजीव लोचन भगवान का मंदिर आज भी धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र है। कहा जाता है कि यहां के मंदिरों में रिश्तों के अटूट बंधन का प्रतीक मौजूद है। दोनों मंदिरों को स्पर्श करने के बाद भी नदियों की जलधारा तट छोड़ती है।
तराशे गए पत्थरों से निर्मित है यहां के मंदिर: कुलेश्वर मंदिर का आकार 37.75 गुना 37.30 मीटर है। इसकी ऊंचाई 4.8 मीटर है मंदिर का अधिष्ठान भाग तराशे हुए पत्थरों से बना है। रेत एवं चूने के गारे से चिनाई की गई है। इसके विशाल चबूतरे पर तीन तरफ से सीढिय़ां बनी हैं। इसी चबूतरे पर पीपल का एक विशाल पेड़ भी है। चबूतरा अष्टकोणीय होने के साथ ऊपर की ओर पतला होता गया है। मंदिर निर्माण के लिए लगभग 2 किलोमीटर चौड़ी नदी में उस समय निर्माताओं ने ठोस चट्टानों का भूतल ढूंढ निकाला था।
माण्डव्य ऋषि आश्रम में भी प्रभु राम के प्रमाण : राजिम से फिंगेश्वर रोड में माण्डव्य ऋषि का आश्रम है, यहां ऋषि दर्शन के लिए प्रभु श्रीराम के पहुंचने के प्रमाणों की आज भी पूजा होती है। मांडव्य ऋषि के निर्देश पर प्रभु राम और लक्ष्मण ने सरगी की जलधारा में अपने तीरों का जलाभिषेक किया था। कहा जाता है कि सरगी की धारा में अस्त्रों का अभिषेक करने के बाद यहां का जल लेकर प्रभु राम ऋषि दर्शन को जाते थे। भगवान राम राजिम आए थे, इसी याद में प्रभु के विष्णु रूप की राजीव लोचन नाम से यहां पूजा की जाती है।