बिलासपुर

लिव-इन रिलेशन में छिपाई शादी, महिला को मिलेगा गुजारा भत्ता
19-Oct-2024 12:26 PM
लिव-इन रिलेशन में छिपाई शादी, महिला को मिलेगा गुजारा भत्ता

 हाईकोर्ट ने पति की याचिका खारिज की 

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 19 अक्टूबर।
अपनी शादी और तीन बच्चों की जानकारी छिपाकर एक व्यक्ति ने एक महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में कई साल बिताए, जिससे उनकी एक बेटी भी हुई। महिला का आरोप है कि इस दौरान पुरुष अक्सर शराब के नशे में उसके साथ मारपीट करता था। थक-हारकर महिला ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और खुद के साथ-साथ बच्ची के लिए भी गुजारा भत्ते की मांग की। ट्रायल कोर्ट ने महिला के हक में फैसला सुनाया था, लेकिन पुरुष ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है।

मनेंद्रगढ़ की एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने बताया कि वर्ष 2015 में उसकी मुलाकात वन विभाग में कार्यरत राजेंद्र से हुई थी, जिसके बाद उन्होंने शादी की। दोनों साथ रहे और उनकी एक बेटी का जन्म हुआ। महिला का आरोप है कि शादी के बाद राजेंद्र नियमित रूप से शराब के नशे में उसके साथ मारपीट करता था, जिसके चलते उसने पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई थी। इसके बाद उसने घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत कोर्ट में भरण-पोषण के लिए आवेदन किया।

अगस्त 2024 में सेशन कोर्ट ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाते हुए राजेंद्र को आदेश दिया कि वह महिला को हर महीने 4 हजार रुपये और बेटी को 2 हजार रुपये गुजारा भत्ता दे। इसके अलावा, उसे पांच किस्तों में 50 हजार रुपये क्षतिपूर्ति भी देने का निर्देश दिया गया।

राजेंद्र ने हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की थी, जिसमें उसने दावा किया कि वह पहले से ही शादीशुदा है और उसके तीन बच्चे हैं। उसने तर्क दिया कि उसकी और महिला की शादी नहीं हुई थी, और इस कारण बच्ची के जन्म का सवाल ही नहीं उठता। उसने यह भी आरोप लगाया कि महिला ने फर्जी दस्तावेज तैयार किए हैं और वह आंगनबाड़ी कार्यकर्ता होने के बावजूद भत्ता मांग रही है।

महिला ने कोर्ट में कहा कि राजेंद्र ने अपनी पहली शादी और तीन बच्चों की जानकारी छिपाई थी। उसने यह भी बताया कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में उसे जो मानदेय मिलता है, उससे वह अपने और बच्ची का गुजारा नहीं कर सकती।

हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि वे एक साथ रह रहे थे, जिससे बच्ची का जन्म हुआ। ट्रायल कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि बच्ची के पिता के तौर पर राजेंद्र का नाम दर्ज है, इसलिए भरण-पोषण का आदेश सही है। कोर्ट ने राजेंद्र की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी।
 

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