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रायपुर, 14 फरवरी। जैन मुनि आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने अपने उपदेश में कहा कि भोग, उपभोग परिणाम व्रत- जो वस्तु एक बार भोगने में आती है जैसे रोटी, फल, आदि, उसे भोग कहते हैं। जो वस्तु बार-बार भोगने में आती है जैसे वस्त्र, आभूषण, मकान, आदि उसे उपभोग कहते हैं! भोग वस्तुएं अनंत है।कोई प्राणी अनंत बार भी जन्म धारण करें, तो भी इन सब को वह भोग नहीं कर सकता!
हम सबकी अनावश्यक इच्छाएं बहुत हैं जैसे कि - स्टेटस मेंटेन करना है, 2 आईफोन, 4 लग्जरी कार है फिर भी मार्केट में कोई नई डिजाइन आई उसे खरीदें बिना नहीं रह सकते। *परंतु बुढ़ापे में जब सारी शक्ति क्षीण होने लगती है क्या हम इन्हें भोग सकते हैं?
भोग और उपभोग के साधनों को कुछ समय या जीवन पर्यंत के लिए त्याग करना रहता है। इससे गृहस्थ अनावश्यक खर्च संग्रह और परेशानी से बचता है। कपड़ों ,आभूषण ,भोजन लेना, स्नान लेना, द्रव्य लेना, कार में बैठने की संख्या का नियम लेना या सीमा करना, व्रत से इच्छाओं को संयमित करने का अभ्यास होता है!
सुख शांति से जीवन निर्वाह करने के लिए हर मानव भोजन, वस्त्र, मकान, आदि आवश्यक पदार्थ अपनाना चाहता है। यदि यही तक सीमा का निर्धारण होता तो दुनिया में कलह और अशांति नहीं होती। परंतु मानव मन की लालसा अनियंत्रित होती है। वह बस मालिक बनना चाहता है, कब्जा करना चाहता है। जिसने संग्रह किया वह बचाने की चेष्टा करता है और जिसके पास नहीं है वह उसे किसी भी स्थिति में लेना चाहता है। परिग्रह अशांति का लड़ाई झगड़े का मूल कारण है यह व्रत इसी अशांति को दूर करने का सर्वोत्तम साधन पेश करता है।
मन पर थोड़ा काबू रखने से व्रत को अपनाया जा सकता है और अपना जीवन सुखमय एवं शांतिपूर्ण बनाया जा सकता है।


