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रायपुर, 10 दिसंबर। भारतीय सांस्कृतिक निधि, रायपुर अध्याय एवं मानव विज्ञान अध्ययन शाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में बस्तर का सांस्कृतिक वैभव विषय पर दृश्य-श्रव्य माध्यम से प्रस्तुतिकरण किया गया। संस्कृति एवं पुरातत्व अध्येता राहुल कुमार सिंह ने प्रमुख वक्तव्य दिया। कार्यक्रम का संचालन इन्टैक रायपुर अध्याय के संयोजक राजेन्द्र चांडक ने किया। आभार प्रदर्शन मानव विज्ञान अध्ययन शाला के अध्यक्ष अशोक प्रधान ने किया।
श्री सिंह ने बताया कि सांस्कृतिक वैभव की जब भी चर्चा होती है तो उसके प्ररिप्रेक्ष्य व संदर्भ का उल्लेख होता है। दक्षिण छत्तीसगढ़ बस्तर में सात जिले हैं। रायबहादुर हीरालाल द्वारा यहां के शिलालेख पर काम किया गया है। उन्होंने छत्तीसगढ़ प्रदेश के पौराणिक इतिहास को समझाते हुये कहा कि गढ़ धनोरा में विष्णु की प्रतिमा मिली है। बस्तर की संस्कृति को देखते हुये उस विविधता को देखना चाहिये कि वह कितनी समन्वित है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में बोलने वाली भाषा जैसे-आर्य, छत्तीसगढ़ी, भतरी, हल्बी, द्रविण, परजी, धुरवी, गोंडी, दोरली, मुरिया, अबुझमाडिय़ा के बारे में उन्होंने जानकारी दी। दंतेश्वरी मंदिर में मेरिया नरबलि की प्रथा रही है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. शिव कुमार पांडेय ने अपने उद्बोधन में बताया कि ललित सुरजन के माध्यम से इन्टैक ने रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में प्रवेश किया। उन्होंने विभिन्न धरोहरों जैसे-नैसर्गिक, मानव निर्मित, मूर्त-अमूर्त, वास्तुकला, कला-शिल्प आदि का उल्लेख किया तथा इसे सहेजने हेतु युवाओं की भूमिका को प्रतिपादित किया।


