बीजापुर

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भोपालपटनम, 24 मई। आए दिन सुर्खियों में बने रहे फारेस्ट विभाग के ऊपर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। सीमा क्षेत्र तीमेड और तारलागुडा जाँच नाके सवालों के घेरे में है इन नाको को लांदकर बड़ी आसानी से तस्कर अपनी तस्करी को अंजाम देने में सफल हो रहे है।
आए दिन ऐसी खबरे निकलकर सामने आती है जाँच नाके शो पीस बनकर रह गए है। जाँच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति कि जा रही है इसका फायदा उठाते हुए अंतरराज्यीय तस्कर बड़ी घटनाओं को अंजाम दे रहे है। वन्य जीव सहित सागौन कि बेशकीमती लकडिय़ां इन नाको से होकर गुजरती है। जिसकी भनक नाके में बैठे कर्मचारियों को नहीं लगती।
जंगल में बाघ और तेंदुए की लगातार मौत हो रही है, लेकिन आश्चर्य की बात है कि जानवरों के जंगल से मारकर उसे मोटी कीमत में बेच देते है। इसकी कोई खबर भी वन विभाग के अधिकारियों को नहीं लग पाती है। जंगली जानवरों की मौत के बाद वन विभाग के अधिकारी इस तरह से चौंकते हैं जैसे उन्होंने पहली बार सुना हो और यह जवाब आता है कि अभी जानकारी मिली है। हाल ही मारे तेंदुए कि मौत के बाद तो यह पूरी तरह से साफ हो गया है कि रेंजर और दूसरे अधिकारी फील्ड में बिल्कुल सक्रिय नहीं हैं, जिसके कारण उनका खुफिया तंत्र फेल हो चुका है। अगर अधिकारी फील्ड में सक्रिय रहते तो उन्हें पता रहता कि जंगल में कहां क्या हो रहा है, और उस पर किस तरह का खतरा हो सकता है।
विभाग कि मौन सहमति जंगलों में मंडरा रहा खतरा
जंगलों मे वन्य जीव और बेशकीमती लकडिय़ों पर खतरा मंडरा रहा है। इसकी सीधे जिम्मेदारी विभाग कि मौन सहमति है। रिजर्व फॉरेस्ट के इन जंगलों में किस कदर बागो कि हत्या हो रही है उसके खाल को उधेडक़र अंतरराज्यीय तस्करी की जा रही है बार्डर के इस इलाके में सीमावर्ती राज्य के अंतरराज्यीय गिरोह सक्रिय है, लेकिन विभाग को इसकी जानकारी नहीं है।
किस कदर हो रहा जंगलों का सफाया अंतरराज्यीय गिरोह सक्रिय
अंतरराज्यीय गिरोह से संपर्क में स्थानीय कुछ लोग सम्मिलित है। चंद पैसों के लालच में तस्करों के लिए काम करते है। इन्हें जानवरों को खत्म कर उसके खाल को उधेड़ कर देने में आपको कुछ ज्यादा पैसे दिए जाते है। ताजा मामला लिंगापुर वरदल्ली का है तेंदुए कि खाल को बेचने ले जा रहे 2 युवकों को तेलंगाना पुलिस पकड़ कर कार्रवाई करती है और यह का अमला गहरी नींद में है।
नाम की बनी वन समितियां
वन मंडल के सभी रेंज में ग्राम वन समिति बनाई गईं हैं जिनका काम ही जंगल की रखवाली की जिम्मेदारी निभाना है, लेकिन यह समितियां इसलिए निष्क्रिय हैं, क्योंकि वन विभाग के अधिकारी फील्ड में काम ही नहीं कर रहे हैं। बेजुबान जानवरों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है।