बेमेतरा

छत्तीसगढ़ी परंपरा की झलक दिखाता सुआ नृत्य, गांव की युवा पीढ़ी संजो रही धरोहर
15-Oct-2025 3:18 PM
छत्तीसगढ़ी परंपरा की झलक दिखाता सुआ नृत्य, गांव की युवा पीढ़ी संजो रही धरोहर

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

 बेमेतरा, 15 अक्टूबर। दीपावली पर्व नजदीक आते ही छत्तीसगढ़ की पारंपरिक संस्कृति एक बार फिर जीवंत हो उठी है। शहर व गांव की गलियों व घरों में महिलाओं और स्कूली बच्चों की टोलियां सुआ नृत्य करते हुए देखी जा रही हैं।

पारंपरिक गीतों की मधुर धुनों पर झूमती इन टोलियों का स्वागत लोग हर्ष और उल्लास के साथ कर रहे हैं तथा उपहार स्वरूप भेंट भी दे रहे हैं। दीप पर्व खुशियों का प्रतीक माना जाता है, जिसकी तैयारी पखवाड़ेभर पहले से ही शुरू हो जाती है। इन दिनों गांव व शहरों के विभिन्न गलियों व घरों में सुआ नृत्य की धुनें गूंज रही हैं।

नृत्य प्रस्तुत कर रही अमृत ध्रुव ने बताया कि हर वर्ष दीपावली से पहले वे पारंपरिक रूप से सुआ नृत्य के लिए निकलती हैं, जिससे इस लोक परंपरा को जीवंत रखा जा सके। 60 वर्षीय मिलवंतीन निषाद का कहना है कि अब पहले की तुलना में सुआ नाचने वाली टोलियों की संख्या कम हो गई है, लेकिन बच्चों और युवतियों में इस लोकनृत्य को लेकर उत्साह बरकरार है। बच्चे अलग-अलग छत्तीसगढ़ी पारंपरिक गीतों के साथ लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं। गांव की दुकानों के अलावा घरों-घर इन दिनों सुआ नृत्य करने वाली महिलाओं की टोली पहुंच रही है। स्कूली बच्चे भी सुआ नाचने पहुंच रहे हैं।

महिलाएं और बच्चियां करती हैं सुआ नृत्य

राजो ध्रुव ने बताया कि महिलाएं अपने सिर पर घुंघरू बांधती हैं। पारंपरिक वेशभूषा में सजती हैं, जो उनकी संस्कृति की झलक को प्रदर्शित करता है। गीतों के माध्यम से महिलाएं अपने जीवन के पहलुओं और पारिवारिक जीवन की भावनाओं को व्यक्त करती हैं। सुआ नृत्य की प्रस्तुति के दौरान गाए जाने वाले गीत ना केवल मनोरंजन के लिए होते हैं, बल्कि उनमें जीवन की कठिनाइयों, प्रेम, विरह होता है।

 

परंपरा बचाने पढऩे वाली बच्चियों की मुहिम

आरती यादव ने बताया कि हमारे छत्तीसगढ़ के लोक सांस्कृतिक सुआ नृत्य हैं। यह हमारी परंपरा है। इसे आगे बढ़ाने का एक छोटा सा प्रयास हैं। सुआ नृत्य सुआ के लिए ही होता हैं। सुआ जिसे हिंदी में तोता कहते है। इससे होने वाली आय से हम गौरा-गौरी, जिसमें हम शिव और पार्वती की शादी करते हैं, अपना कमाया हुए धन को इसी में लगाते हैं। इसके अलावा गांव और बाहर से आए लोगों को भोजन कराने में खर्च करते हैं।

सुआ हमारी सांस्कृतिक और पारंपरिक नृत्य-अमृत

समिति क ी प्रमुख अमृत ध्रुव का कहना है कि सुआ हमारी सांस्क़ृतिक और पारंपरिक नृत्य है। ज्यादातर इसे गांव के लोग करते हैं। गांव में ही आयोजन किया जाता हैं।

अभी के लोग ज्यादा जानते नहीं हैं, इस परंपरा को हम आगे बढ़ा रहे हैं ताकि आगे की पीढ़ी भी इसे अपनाएं। गीतों में प्राकृतिक सौंदर्य, पशु-पक्षियों की विशेषता तथा आदिवासी जीवन की सरलता और संघर्ष का भी उल्लेख होता है।


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