बेमेतरा

पितरों को किया याद : कुश से जल, तिल व उड़द दाल अर्पित किए
19-Sep-2024 2:11 PM
पितरों को किया याद : कुश से जल, तिल व उड़द दाल अर्पित किए

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बेमेतरा, 19 सितंबर।
पूर्वजों के तर्पण के लिए पितृपक्ष की शुरुआत बुधवार से हुई। प्रथम तिथि पर कुश से जल, तिल, जौ अैार उड़द दाल अर्पित कर हुए पितरों की अराधना की गई। शहर के बांधा तालाब व अन्य तालाबों में सुबह से ही तर्पण करने के लिए लोग पहुंचने लगे, जिसके बाद घर पहुंचकर पितरों की स्मृति में पूजा-अर्चना की गई। 

घरों के ओरिया में चौक बनाकर फूल चढ़ाए गए। पं. श्रीनिवास द्विवेदी ने बताया कि पूर्व में मृत हुए वंशजों की आत्मा की शांति व मुक्ति के लिए आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रथमी से पितृपक्ष की शुरुआत होती है, जो पूरे पखवाड़े तक जारी रहता है और आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या को पितृपक्ष का विसर्जन होगा। लोंग अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि के अनुसार पितृपक्ष की तिथि में पितृ तर्पण करते हैं। महिला पूर्वजों की मृत्यु किसी भी तिथि में हो, उन्हें पितृतर्पण पितृपक्ष की नवमी तिथि को ही किया जाता है।

पितृपक्ष में घर के आंगन को गाय के गोबर से लिपकर चावल आटे से चौक बनाकर जिसे ओरिया लिपना भी कहते हैं। उसमें रंग बिरंगे फूल भी डाले जाते हैं। तालाब में हाथों में कुश लेकर जल, जौ, तिल अर्पित करने के बाद घर में होम दिया जाता है।
मान्यता है कि पितृपक्ष में पितरों को श्राद्ध नहीं करने पर पितर नाराज हो जाते हैं। पितरों के नाराज होने पर मनुष्य के जीवन पर कई विपदाएं आ सकती हैं। श्राद्ध में इनका है विशेष महत्व है। श्राद्ध में कुश, जौ, तिल व चावल का सर्वाधिक महत्व है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित करने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रुप में अर्पित करना चाहिए। पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है। साथ ही पितरों के श्राद्ध का अधिकार पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, भाई व महिलाओं को भी होता है।

पं. रूपेन्द्र प्रसाद पुरोहित ने बताया कि पूर्वजों की अराधना का पक्ष है। हिंदू ज्येातिष के अनुसार पितृदोष को सबसे जटिल माना जाता है। पितरों की शांति के पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य करना चाहिए ।
पितृपक्ष में तालाबों में तर्पण कर आने के बाद घर में होम में उड़द दाल, बड़ा एवं चावल आटे से बनी गुरहा चिला होम में अर्पण करते है। मान्यता है कि कौंआ पितर का रूप होता है। पितर श्राद्ध ग्रहण करने के लिए कौंएं के रूप में नियत तिथि को हमारे घर पहुंचते हैं। अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह नाराज हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौंओ को दिया जाता है।
 


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