बलौदा बाजार

निजी स्कूल प्रबंधन की मनमानी, कॉपी किताब के नाम पर कट रही पालकों की जेब
15-Apr-2023 2:15 PM
निजी स्कूल प्रबंधन की मनमानी, कॉपी किताब के नाम पर कट रही पालकों की जेब

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाजार, 15 अप्रैल।
बलौदाबाजार कई निजी विद्यालयों में कॉपी किताब का स्कूली ट्रेंड के नाम पर जारी गोरखधंधा थमने का नाम नहीं ले रहा है। शासन के निर्देशानुसार सभी निजी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों से ही पढ़ाई की जानी है।
इस निर्देश को ताक पर रखकर कई निजी स्कूल प्राइवेट प्रकाशकों की किताबों को खरीदने के लिए पालकों पर दबाव बना रहे हैं। बताया जाता है कि प्राइवेट शासकों द्वारा अपनी किताबों को स्कूल में चलाने के बदले अच्छा खासा कमीशन दिया जाता है। जिसके चलते किताबों के दाम ज्यादा होने से लोगों का किताब में ही दो ढाई गुना अधिक खर्च करना पड़ रहा है। नए शिक्षा सत्र के साथ ही प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने वाले  चालकों की परेशानी बढ़ गई है।

नए शिक्षण सत्र के साथ ही प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने वाले बालकों द्वारा बताया गया है कि कई प्राइवेट स्कूलों में एनसीईआरटी की जगह निजी प्रशासकों की किताब खरीदवायी जा रही है। जबकि शासन से स्पष्ट निर्देश है कि सभी प्राइवेट स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों से ही पढ़ाई की जानी है। एक प्राइवेट स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने वाले बालक ने बताया कि अधिकांश पालक बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। इस कारण में प्राइवेट स्कूलों की इस मनमानी का विरोध नहीं कर रहे हैं कुछ फलकों के अनुसार इस मामले की जानकारी शिक्षा विभाग को होने के बावजूद इस बारे में किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की जा रही है। अब पालक संगठित कर मामले को लेकर कलेक्टर जन चौपाल में शिकायत करने का निर्णय लेंगे।

कमीशन का खेल
निजी प्रकाशन दुकानदारों को किताबों के बदले मोटी कमीशन देता है। इसमें स्कूलों का भी हिस्सा शामिल रहता है स्कूलों द्वारा तय है। निजी प्रकाशकों की किताबें एनसीईआरटी की किताबों से 5 गुना महंगी है। यही नहीं हर साल किताबों को बदल दिया जाता है। ऐसे में पुरानी पुस्तकों को पा लोगों को रद्दी में बेचना पड़ता है। और फिर महंगी किताब में नई किताबें खरीदनी पड़ती है। इसी तरह निजी स्कूलों में ड्रेस कोड निर्धारित कर किसी दुकान विशेष को प्रत्यक्ष रूप से अधिकृत किया जाता है, तथा पालक को मजबूरी में ज्यादा कीमत होने के बावजूद वहां से बच्चों के लिए स्कूली ड्रेसेस खरीदना पड़ता है।
 


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