बलौदा बाजार

खिलोरा में आज भी मातम, पीडि़त परिवारों के चेहरे पर खामोशी
27-Feb-2023 2:41 PM
खिलोरा में आज भी मातम, पीडि़त परिवारों के चेहरे पर खामोशी

  सडक़ हादसे में हुई थी 11 मौतें  

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाजार, 27 फरवरी।
हिर्मी सुहेला भाटापारा रोड पर साहू परिवार से चौथिया गए 11 लोगों की घर लौटते वक्त सडक़ हादसे मैं हुई मौत ने कई परिवार को सडक़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। किसी का जवान बेटा, पति, किसी का मासूम बेटा तो किसी के घर का मुखिया इस हादसे में अपनी जान गवा चुके हैं। नौ लोग आज भी अस्पताल में जीवन और मौत के बीच जूझ रहे हैं। सडक़ हादसे में मृत अधिकांश लोग गरीब मजदूर किसान परिवार के हैं। जिनका एकमात्र सहारा मजदूरी और खेती है। जिससे अपना परिवार का भरण पोषण करते थे। मगर इस हादसे ने परिवार का मुखिया क्या छीन लिया जिससे लोगों का जीवन ही सडक़ पर आ गया है।

ज्ञात हो कि पीडि़त परिवार के पास ना छत है, ना जमीन और ना ही कोई कमाने वाला, जो परिवार का पालन पोषण करते थे, अब इस दुनिया में नहीं है। वहीं लोग अस्पताल में घायल पड़े हैं, उनके भी इलाज की चिंता गरीबों परिवार वालों को सताने लगी है। क्योंकि सरकार की घोषणा ने घायलों को डेढ़ लाख रुपए और मृतक के परिजनों को 6 लाख की मुआवजा राशि देने की घोषणा तो की मगर यह राशि उन पीडि़त परिवार के लिए ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। क्योंकि बहुत से घायलों के इलाज में लाखों रुपए खर्च होंगे उनके बाद ठीक हो भी गए तो पूरा जीवन पर परश्रित हो जाएंगे। ऐसे में गरीब परिवार के सामने जीवकोपार्जन की बड़ी समस्या उत्पन्न होगी।

खिलोरा गांव में आज भी मातम पसरा हुआ है। पीडि़त परिवार के लोगों के चेहरे पर अजीब सी खामोशी है। जो कहना तो बहुत कुछ चाहते हैं मगर कुछ बोल नहीं पा रहे हैं। किसी घर के मासूम बच्चे को पिता, भाई, दादा तो किसी को पति और पुत्र के आने का इंतजार है। वे इस सच को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं कि अब जिनका उन्हें इंतजार है वो लौट कर नहीं आएंगे।

एक ही परिवार के 11 सदस्यों की हुई थी सडक़ दुर्घटना में मौत 9 घायल लोगों का अस्पताल में उपचार चल रहा। परिवार के 5 लोगों की जिम्मेदारी अब निर्मला के कंधों पर।

इस हादसे ने नरोत्तम यादव (40) की मौत के बाद पत्नी निर्मला का सब कुछ छीन लिया है। पति की मौत से तीन मासूम बच्चों खेमेश्वरी (11), दुलेश्वर (7), सीमा (6) और बुजुर्ग सास मैना यादव की जिम्मेदारी उसके कंधों पर आ गई है। जिसके पास ना तो कोई रोजगार है और ना ही कोई जमीन। पति मजदूरी कर परिवार का पेट पालता था। गांव में नियमित रोजगार भी निर्मला को नहीं मिलेगा। बच्चों और सास का पालन पोषण कैसे करेगी इसकी चिंता उसे अंदर ही अंदर खाने लगी है।

निर्मला इतनी गरीब है कि उनके घर पर 30 रुपए महीने का जल कर देने की व्यवस्था नहीं है। इसके घर में सरकार की योजना के अंतर्गत आज भी नल जल योजना एकल बत्ती कनेक्शन भी नहीं है। यह भूमिहीन गरीब परिवार है वही मृत भूषण साहू (52) का पुत्र भुवन, पुत्री शारदा साहू 11वीं में पढ़ाई करती है। पत्नी प्रेमिला साहू (42)के पास भी कोई आवास नहीं है। भूमिहीन परिवार खेती-किसानी मजदूरी कर जीवन यापन करता है। घर के मुखिया की मृत्यु हो जाने पर परिवार के लालन-पालन की जिम्मेदारी पत्नी पर आ गई है। मृत जितेंद्र यादव के पिता लोकनाथ यादव चरवाहा है। जितेंद्र उनके कामों में हाथ बटाता था। लोकनाथ को माता कुमारी बाई (65) पत्नी भारती (35), दाउवा (14),  दामिनी (16) की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी।

दादा और पोते की मौत
मृतक बिरझूराम साहू 52 वर्ष के तीन लडक़े हैं दो लडक़े पुणे खाने कमाने के लिए गए हैं तीसरा गुपचुप ठेला लगाकर अपने परिवार का लालन पालन करता है। परिवार में कुल 10 सदस्य बचे हैं बिरझू के पोते होमन साहू 9 वर्ष की भी मृत्यु हो गई है। और दो बच्चों का अभी भी अस्पताल में इलाज चल रहा है जिसका नाम पायल साहू (10) दीपक साहू (13)है। बिरझू और उसके पोते होमन की मौत हादसे में हो चुकी है। और होमन का पिता लोकनाथ साहू तभी पुणे से घर नहीं लौटा है। मृत होमन 9 वर्ष जिसका पिता घनश्याम 35 वर्ष अभी भी अस्पताल में भर्ती है। जिसका एक पैर कट चुका है। जो सब्जी बेचकर अपने जीवन चलाता है इसके परिवार में कुल 5 सदस्य हैं। बच्चों की मृत्यु और मुखिया का पैर कट चुका है, इसके सामने जीवकोपार्जन की बड़ी समस्या आ गई है।

मृतक राजाराम की मौत के बाद पत्नी फुलेश्वरी, बेटा नारायण, दिव्यांग गेंद राम और दादी दुलारी है। नारायण घर पेंटिंग कर अपने परिवार का पालन पोषण करता है। परिवार का पूरा बोझ पत्नी फुलेश्वरी और पुत्र नारायण के ऊपर आ गया है। इसी तरह अन्य परिवार की स्थिति देनी है, जो इस हादसे के बाद सब कुछ अपना खो चुका है। शायद इस पल भूल पाना पीडि़त परिवार के लिए पूरा जीवन संभव नहीं होगा।
 


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